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- जूही की झूठी याचिका
आदित्य चोपड़ा| जनहित याचिकाओं की शुरूआत का श्रेय भारत के ख्याति प्राप्त न्यायाधीश जस्टिस पी.एन. भगवती को जाता है, जिन्होंने साधारण पोस्टकार्ड पर लिखी गई बात को भी याचिका के तौर पर स्वीकार करने को कहा था। देश में 80 के दशक में जनहित याचिकाओं के जरिये समाज में दबे-कुचले वर्गों को न्याय दिलाने के अभियान ने जोर पकड़ा। इस दौर में विचाराधीन कैदियों, लावारिस बच्चों, वेश्याओं, बाल मजदूरों और पर्यावरण के मुद्दों पर तमाम लोगों ने जनहित याचिकाएं दायर कीं। अदालतों ने इन्हें प्रोत्साहित भी किया और इनके जरिये मसले सुलझाये भी गए। जनहित याचिका भारतीय संविधान या किसी कानून में परिभाषित नहीं है, यह तो सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक व्यवस्था से जन्मी है। इन याचिकाओं का सबसे बड़ा योगदान यह रहा है कि इसने कई तरह के नवीन अधिकारों को जन्म दिया। उदाहरण के तौर पर इसने तेजी से मुकदमे की सुनवाई का अधिकार, यौन उत्पीड़न के विरुद्ध अधिकार, गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, स्वास्थ्य सुरक्षा का अधिकार तथा ऐसे ही कई अन्य अधिकारों को अस्तित्व प्रदान किया।