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भूपेंद्र सिंह| लोकतंत्र भारत की जीवनशैली है। संविधान की उद्देशिका में राष्ट्र राज्य की शक्ति का मूल स्रोत 'हम भारत के लोग हैं।' उद्देशिका में भारत के लोगों की सर्वोच्च प्रभुता की घोषणा है। भारत के लोगों ने प्रभुत्व संपन्न संविधान सभा में अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से देश का संविधान बनाया था। भारत के लोग अपनी प्रभुता का प्रयोग केंद्र में संसद और राज्य में विधानमंडल के माध्यम से करते हैं। कार्यपालिका विधायिका के प्रति जवाबदेह है। संविधान में स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका है। इसे संसद या विधानमंडल द्वारा अधिनियमित विधि की संवैधानिकता जांचने के अधिकार भी हैं। तीनों संस्थाएं संविधान से शक्ति पाती हैं। चुनाव के माध्यम से नागरिक अपने मन की सरकार चुनते हैं। चुनाव संवैधानिक जनतंत्र का महत्वपूर्ण अधिकार हैं, लेकिन गत सप्ताह सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमन्ना ने एक कार्यक्रम में कहा, 'चुनाव से सत्ता में आए लोगों को बदलने का अधिकार निरंकुश शासन से बचे रहने की गारंटी नहीं है।' उन्होंने राजनीतिक आलोचना और विपक्ष की आवाज को आदर्श लोकतंत्र प्रक्रिया का हिस्सा बताया है। यहां तक सब ठीक है, लेकिन उनके वक्तव्य में न्यायपालिका के कामकाज पर कोई सारवान् चर्चा नहीं है।