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माननीय अखिलेश यादव यदि यह सोच रहे हैं कि पत्रकारों की भरी प्रेस कान्फ्रेंस में अपनी समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा पिटाई करा कर वह राज्य में 'खाली पड़े' विपक्षी स्थान को भर सकते हैं तो बहुत बड़ी गलती पर हैं क्योंकि उत्तर प्रदेश उस दौर को तिलांजिली दे चुका है जब अपराधी और अराजकतावादी मिल कर शासन को कानून से चलाने के बजाय अपने इशारों पर चलाया करते थे। 1989 के बाद से इस राज्य की राजनीति को जिस तरह जातियों के खेमों में बांट कर कबायली अन्दाज में सामाजिक कलह को पैदा किया गया उसने उत्तर प्रदेश को पचास साल पीछे फैंक दिया और आम लोगों की सोच को कबीलों की संकीर्णता में धकेल दिया। मगर 2017 के चुनावों में जिस तरह राज्य की जनता ने भाजपा को तीन चौथाई से अधिक बहुमत देकर यह सिद्ध किया कि राजनीति में वैचारिक लगाव मुख्य भूमिका निभाता है उससे इसी आधार पर आगे के चुनाव लड़े जाने का मार्ग प्रशस्त हुआ।
यह कोई तर्क नहीं हो सकता कि इन चुनावों में साम्प्रदायिक आधार पर जबर्दस्त गोलबन्दी हुई जिसकी वजह से भाजपा को एेतिहासिक सफलता मिली। भाजपा की इस विजय को उसके उस राष्ट्रवादी सिद्धांत की विजय के रूप में ही देखा जायेगा जिसका खाका उसने आम लोगों के सामने प्रस्तुत किया था मगर इसी परिवर्तन से राज्य की राजनीति के सिद्धान्त परक होने का मार्ग निकलता है जिसमें अब अपराध प्रवृत्ति की राजनीति के लिए कोई खास जगह नहीं बचती है।