सम्पादकीय

लोगों के धन के साथ किया गया मजाक

Rani Sahu
20 Aug 2022 6:45 AM GMT
लोगों के धन के साथ किया गया मजाक
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आज यह विवाद प्रारंभ करते हुए मेरा मन विद्रोह कर रहा है, जब सार्वजनिक निधि का दुरुपयोग हो रहा हो, तो चुप रहना पाप है
आज यह विवाद प्रारंभ करते हुए मेरा मन विद्रोह कर रहा है, जब सार्वजनिक निधि का दुरुपयोग हो रहा हो, तो चुप रहना पाप है। आज हमें बड़ी शक्तिशाली वित्तीय संस्था की निधियों के दुरुपयोगों का परीक्षण करना है। आश्चर्य तो इस बात का है कि किस प्रकार जीवन बीमा निगम इस प्रकार के सौदों में फंस गया?
इसलिए मैं आज कुछ कड़ी चोटें करने जा रहा हूं और मुझे पता है कि दूसरा पक्ष भी पूरी तरह तैयार है। मेरा कहना है कि जीवन बीमा निगम ने संसद के विशेषाधिकार का उल्लंघन किया है कि उसे मुंदड़ा से किए गए सौदे की जानकारी ही नहीं दी गई। मैं पूछ सकता हूं कि इसे गुप्त क्यों रखा गया? 29 नवंबर को वित्त मंत्री ने कहा था कि विनियोजन से ही बीमा कराने वालों तथा निगम को अंतत: लाभ रहेगा, इस विचार से ही यह सौदा किया गया था, किसी का पक्षपात करने के लिए नहीं। क्या इसी नीति को कार्यान्वित करने के लिए मुंदड़ा के 1,25,00,000 के शेयर 25 जून, 1957 को खरीद लिए गए थे और 19 बार इसी के शेयर खरीदे गए और यह राशि 1,26,00,000 की हो गई? क्या यह पक्षपात नहीं है? एक बार तो यह सौदा उस दिन किया गया, जब कलकत्ता और बंबई, दोनों के स्टॉक एक्सचेंज बंद थे। और मैंने प्रश्न पूछा था, क्या कुछ महीने पूर्व कुछ शेयर बाजार दर से ऊंची दरों पर खरीदे गए थे? वित्त मंत्री ने उत्तर दिया था कि ऐसा कुछ नहीं हुआ।
मंत्री महोदय के अपने वक्तव्य से पता चलता है कि 25 को 77,000 रुपये की अधिक अदायगी हुई...। कहा गया कि यह सौदा बाजार दर के अनुसार किया गया। यह बात गलत है। मेरा मत यह है कि मुंदड़ा आर्थिक संकट में थे, तो हमारी सरकार उनकी सहायता के लिए पहुंच गई और लोगों के पैसे से जुआ खेल दिया।
अब मैं शेयरों की खरीद का परीक्षण करूंगा। कुल खरीद 1,24,44,000 की हुई। खेद है कि इन कंपनियों में से कुछ ऐसी भी हैं, जिन्होंने 1955 से अपनी बैलेंस शीट तक तैयार नहीं की है। और इस बात का आश्चर्य है कि बैलेंस शीट के बिना उनके शेयरों की कीमत का निर्णय कर लिया गया। साथ ही, मामले का अध्ययन करने से पता चलता है कि यदि यह सौदा 24 के स्थान पर 21 को होता, तो 10,73,000 निगम को कम देना पड़ता। ...कितने आश्चर्य की बात है?
...25 जून को मंडी को ऊपर उठाकर कीमतें ऊंची की गईं और सौदा कर लिया गया। बाद में रुख नीचे का हुआ। 13 दिसंबर को 1,24,44,000 रुपये की निगम की विनियोजना का मूल्य 20 लाख कम हो गया। बीमा कराने वालों को कितनी हानि उठानी पड़ी? ऐसी कंपनियों के शेयर खरीदे गए, जिनकी आर्थिक अवस्था कभी भी ठीक नहीं कही जा सकती। 25 जून को विनियोजन से पहले निगम के विनियोजन बोर्ड के सदस्यों का भी परामर्श नहीं लिया गया। क्या बोर्ड के सभापति को यहां तक अधिकार है कि बिना परामर्श के अपनी मर्जी से विनियोजन कर दे? ...कई कंपनियों को आर्थिक अस्थिरता के कारण भारत के राज्य बैंक अथवा रक्षित बैंक से कर्ज प्राप्त नहीं हुआ था, परंतु जीवन बीमा निगम ने इन कंपनियों में जनता का धन विनियोजित किया। 23 मार्च के दिन मुंदड़ा गुट की अर्थिक स्थिति दरअसल इतनी खराब थी कि उसे कहीं और से कर्ज नहीं मिल रहा था। 10 जून को कपड़ा आयुक्त की रिपार्ट में भी यही कहा गया, परंतु ठीक 15 दिन बाद निगम की निधि को बुरी तरह से उससे विनियोजित कर दिया गया। यदि सारी स्थिति का अध्ययन कर लिया जाता, तो ऐसी भूल कभी भी न की जाती। साथ ही, जाली शेयरों पर ही अदायगी कर दी गई। मैं इस मामले का स्पष्टीकरण चाहता हूं।
मैंने यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि किस प्रकार लोगों के धन के साथ मजाक किया गया है।... मेरी मांग है कि सरकार को इस मामले की पूरी जांच करनी चाहिए। जब औद्योगिक वित्त निगम के विरुद्ध इस प्रकार के आरोप थे, तो उस समय के वित्त मंत्री देशमुख ने एक विरोधी पक्ष के सदस्य के सभापतित्व में जांच समिति नियुक्त की थी। क्या हमारे वित्त मंत्री वही रास्ता अपनाएंगे?
मैं राष्ट्रीयकरण का पक्षपाती हूं, इसलिए हमें जांच से डरना नहीं चाहिए और तह तक पहुंचने का यत्न करना चाहिए। आशा है, वित्त मंत्री महोदय मेरे इस छोटे से सुझाव की ओर ध्यान देंगे और उस पर विचार करेंगे।
(लोकसभा में दिए गए भाषण का अंश)
Hindustan Opinion Column
Rani Sahu

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