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- नौकरी बनाम उद्यम
जीवन है तो उतार-चढ़ाव भी होंगे ही, और अक्सर ऐसे कि हमारे होश गुम हो जाएं, समझ ही न आए कि क्या करें, कैसे करें, किधर जाएं। कोरोना का दौर ऐसा ही एक दौर है जब हम कुछ विशेष कर पाने में असमर्थ हैं। कोरोना का दौर एक ऐसी स्थिति है जिसके लिए न तो हम तैयार थे और न ही ऐसा कोई पहले का उदाहरण हमारे पास था जिससे सबक लेकर हम कुछ कारगर तैयारी कर पाते। कोरोना से बचाव के लिए दुनिया का कोई देश, कोई संस्था या कोई व्यक्ति तैयार नहीं था, यहां तक कि चीन भी, जहां से इसका उद्भव हुआ, इसके परिणामों के लिए तैयार नहीं था। कोरोना के कारण विश्व भर में हुए लॉकडाउन का व्यापक असर पड़ा। बड़ी-बड़ी कंपनियों को अपना काम बंद करना पड़ा, कर्मचारियों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा। व्यवसाय बंद हुए तो नौकरियां चली गईं, कमाने वाले हाथ बेरोज़गार हो गए और परिवार के परिवार सड़क पर आ गए। एक दिन पहले तक जो मौसम खुशगवार था, अचानक वो तबाही का मंज़र बन गया। कहते हैं कि गलती वह होती है जो पहली बार हो। पहली बार की गलती हमारा अज्ञान हो सकती है, पर दूसरी बार की गलती हमारा आलस्य है, जो कि अपने आप में एक अपराध है। इसी तरह किसी बड़ी अनपेक्षित घटना के लिए तैयारी न हो पाना क्षमा योग्य हो सकता है, पर उससे सबक न लेना भी हमारे आलस्य का प्रतीक है जो अक्षम्य है। आज हमें यह देखना है कि हमने कोरोना के इस दौर से क्या सीख ली है, ताकि जीवन में ऐसी किसी परिस्थिति या इससे मिलती-जुलती स्थिति होने पर हम अपना बचाव कर सकें। कोरोना के कारण विश्व भर में मंदी का एक ऐसा दौर आया जिसने बहुत से व्यवसाय निगल लिए, नौकरियां खलास कर दीं और दुनिया भर में करोड़ों की संख्या में लोग बेरोज़गार हो गए। यहां एक अंतर मुख्य है जिसकी तरफ अक्सर हमारा ध्यान नहीं गया है।