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By: divyahimachal
कुछ तो पांव चादर से बाहर निकले हुए, कुछ सफर की थकान ने हुलिया बदल दिया। कुछ ऐसा ही मंजर हिमाचल का हुलिया बयां कर रहा है, जहां एक ओर सरकारी नौकरी की खिदमत में दरियां बिछाई जा रही हैं और दूसरी ओर बजट की सांकल से लटके प्रदेश के फटेहाल नजर आ रहे हैं। फिर भी एक आशावाद हर नई सरकार की कोशिश को दिन दूना, रात चौगना तरक्की करते हुए देखना चाहता है। नौकरियों की अर्जियां सपनों के दर पर माथा रगड़ रहीं और इधर कई कॉडर अपनी भूमिका में निरस्त होकर फांसी के लिए खड़े हैं। सरकारी नौकरी की जिरह पड़ताल पर उतरती है, तो 18542 पद डाइंग कॉडर बनकर अलविदा कह रहे हैं। सरकार ने अपने ढांचे में इतनी महत्त्वाकांक्षा भर ली है कि अगर सारे हाथी दौड़ाने हों, तो कुल 308894 पदों पर सरकारी मुलाजिम रखने पड़ेंगे। इस तरह एक ईमानदारी तो यही थी कि पता लगाया जाए कि आखिर सरकारी नौकरी की बस्ती में कितने घर खाली हैं और दूसरी ओर वादों की खेती के लिए नौकरी के नाम ऐसे इंतजाम हों कि प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष और तरह-तरह के उपनामों से लोग भर्ती कर लिए जाएं। हिमाचल का शीर्षासन है भी यही कि सरकारें बदलते ही नौकरी की पर्चियां कुछ इस कद्र बंटें कि सारा तामझाम उदार नजर आए। फिलहाल 70 हजार रिक्त पदों का खालीपन नए रोजगार का एहसास और सरकारी नौकरी का स्पेस तैयार कर रहा है। हर विभाग तंबू लगाकर खड़ा है और इस तरह नौकरी का आश्रयस्थल बनकर सरकार को अपनी महफिल जमानी है। मिलकर बैठेंगे कितने बेरोजगार, जहां हम, तुम और कोई न कोई विभाग होगा। मोटे तौर पर 70 हजार रिक्त पद अमानत हैं उस दरियादिली की जो कंगाली में गीले आटे की गर्मागर्म सियासी रोटी बेल सकती है। इन सत्तर हजार नौकरियों के कई दर्पण हैं और कई ऐसे विभाग भी हैं जो बेरोजगारों को भाग्य रसीद करते हैं। कई डिग्रियां यूं ही पैदा नहीं होती, बल्कि अभिभावकों के सपनों को कंधों पर उठाकर हर परिवार का कोई न कोई बच्चा निरंतर इंतजार में पिटारा खुलने की आहट के लिए अपने कानों पर भरोसा कर रहा है। हर चुनाव में कान से आती नौकरी का दीदार और क्या होगा कि फिलवक्त हिमाचल को 70 हजार पद भरने हैं। इनमें कितनी दिहाडिय़ां, कितने अनुबंध और कितने ऐसे पद भी होंगे जो सरकारी मुलाजिम बनने की नई शर्तों के साथ नए पैबंद ही तो हैं। खाली पदों पर नजर दौड़ाएं तो 19 विभागों में शिखर पर पीडब्ल्यूडी में 15816 पद और इसके बाद एलिमेंटरी एजुकेशन में ही 13383 पद रिक्त है, जबकि उच्च शिक्षा में 9591 पद खाली हैं। कुल मिला कर सामाजिक सुरक्षा की उच्च प्राथमिकताओं के बीच शिक्षकों के ही बीस हजार से ऊपर पदों का रिक्त होना, बहुत कुछ बयान कर रहा है। इसी शृंखला में स्वास्थ्य विभाग में खाली रह गए 10199 पदों का अर्थ हर स्वास्थ्य केंद्र पर चस्पां है। कमोबेश हर विभाग की कार्यशैली में कर्मचारियों की आवश्यकता के मानदंड तय हैं और इस लिहाज से न्यूनतम स्तर पर भी अधिकतम उपस्थिति के लिए कई पदों पर रिक्तियों का नासूर पूरी व्यवस्था को मनोरोगी बना सकता है। बेशक यह परिदृश्य उस लापरवाही या वाहवाही का भी है, जहां सरकारों ने जरूरत से कहीं ज्यादा संस्थान व कार्यालय खोल दिए।
देखना यह होगा कि सरकार इन रिक्तियों को रोजगार के विकल्प के रूप में भरना चाहेगी या सेवाओं में गुणवत्ता लाने के आधार पर किफायत से निर्णय लेगी। सुक्खू सरकार अपने नारे के मुताबिक अगर व्यवस्था परिवर्तन को तवज्जो देगी, तो कई विभागों और पदों का युक्तिकरण सामने आ सकता है। देखना यह भी होगा कि इन पदों में स्थायी नियुक्तियों की दिशा में कदम उठाए जाते हैं या किसी न किसी तरह कर्मचारियों की संख्या बढ़ाई तथा बेरोजगारों को नौकरी के अप्रत्यक्ष अवसर दिखाए जाते हैं। जो भी हो, सत्तर हजार पदों की भर्ती घाटे की अर्थव्यवस्था पर भारी पडऩे वाली है। इसी साल के बजट का लेखा-जोखा बता रहा है 56683 करोड़ में से विकास पर केवल 9524 करोड़ ही व्यय होंगे। यह धन विभिन्न विभागों की सूरत में सुरमा डालने के लिए भी शायद पूरा हो और उसके ऊपर अगर नई सरकारी नौकरियों का तिलक भी लगाना है, तो विभागीय कसरतों में उधार की मालिश के लिए कर्ज उठाना ही एकमात्र रास्ता होगा। नौकरी के लपेट में बजट की ईमानदारी और वादों की गवाही का सबूत सरकार से फिलहाल माथापच्ची तो खूब कराएगा।
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Rani Sahu
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