सम्पादकीय

झारखंड: कल, आज और कल

Rani Sahu
3 July 2022 5:56 PM GMT
झारखंड: कल, आज और कल
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21 वर्ष का युवा, 22वें की डगर पर. राजनीति और सामाजिक चुनौतियों से भरी डगर. आंखों में सुनहरे भविष्‍य के सपने. कुछ पा लेने, कुछ कर दिखाने का जुनून. यही तो है आज का झारखंड. आंदोलन के गर्भ में ही इसने चुनौतियों से जूझना सीख लिया था. अंग्रेजी हुकूमत को भी थका-हरा देने वाली इस धरती का इतिहास अन्‍याय, अत्‍याचार और अनाचार के खिलाफ संघर्ष करने वाले वीरों की गाथा से भरा हुआ है

Priyesh Kumar Sinha

by Lagatar News
21 वर्ष का युवा, 22वें की डगर पर. राजनीति और सामाजिक चुनौतियों से भरी डगर. आंखों में सुनहरे भविष्‍य के सपने. कुछ पा लेने, कुछ कर दिखाने का जुनून. यही तो है आज का झारखंड. आंदोलन के गर्भ में ही इसने चुनौतियों से जूझना सीख लिया था. अंग्रेजी हुकूमत को भी थका-हरा देने वाली इस धरती का इतिहास अन्‍याय, अत्‍याचार और अनाचार के खिलाफ संघर्ष करने वाले वीरों की गाथा से भरा हुआ है. इन वीरों के नाम आज भी झारखंड ही नहीं पूरे देश में श्रद्धा के साथ लिए जाते हें. ऐसा कोई कोना नहीं जहां के लोगों ने अंग्रेजों को धूल न चटाई हो. आजादी के छह दशक बाद अलग राज्‍य भी मिला लेकिन कई कुर्बानियों के बाद. अब ऐसी धरती के बाशिंदे भ्रष्‍टाचार के खिलाफ घुटने टेक देंगे, यह तो यहां की 'जीन' में ही नहीं है. सबसे बड़ा कलंक जो इस धरती के माथे पर चंद लोगों ने लगाया है वह भ्रष्‍टाचार ही तो है. मुख्‍यमंत्री जैसे पद पर रहे राजनेता भी भ्रष्‍टाचार के इस खेल में जेल जा चुके हैं. राजनेताओं की तरह शीर्ष प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों की भी इस कलंक गाथा में लंबी सूची है. बस, इसी को लेकर शुरू हो जाता है रुदन–झारखंड का कुछ नहीं हो सकता. मैं नहीं मानता इसे.
यह एक ऐसा युवा है जो लालन-पालन में आधिपत्‍य की लड़ाई-झगड़े के बीच कभी इस गोद में तो कभी उस गोद में बड़ा होता रहा. जो खुराक इसे मिलनी चाहिए थी उसका बड़ा हिस्‍सा उसके पालनहार चट करते रहे. फिर भी यह आज सीना तान कर खड़ा है और तमाम चुनौतियों से जूझने लड़ने को तैयार है. कैसे? 'जीन' में रची बसी आंतरिक ऊर्जा के सहारे यह बड़ा होता रहा. यही आंतरिक ऊर्जा आज भी भरोसा दिलाती है कि यह युवा कुछ बन कर दिखाएगा. तस्‍वीर का दूसरा पहलू भी है. इस युवा झारखंड की पहचान भी आज के युवा ही बनेंगे. वह भी इसी राज्‍य की तरह तमाम झंझावतों के बीच पले बढ़े हैं. कृषि, वानिकी, खेल, सामाजिकता, राजनीति, प्रशासन, तकनीक, विज्ञान, साहित्‍य, सिनेमा… ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जहां आज झारखंडी अपना परचम नहीं लहरा रहे हैं. अब इस उपलब्धि को तो कतई स्‍थानीयता के विवाद में न ही घसीटें. भ्रष्‍टाचार के बाद यह एक ऐसा दूसरा मसला है जिसने इस राज्‍य को बचपन में ही ऐसा झुलसाया कि इसका दर्द अब भी गाहे-बगाहे छलक ही पड़ता है. इस आग को भड़काकर अपनी रोटी सेंकने की मंशा रखने वाले आज भी कई लोग राजनीति से लेकर समाज के हर तबके में मौजूद हैं. मगर इस आग की तपिश झेल चुका 21 साल का युवा इसे दुबारा भड़कने देगा ऐसा लगता नहीं. वह इन झमेलों से अब दूर ही रहना चाहता है.
उसे आगे बढ़ना है. हाथी की तरह उसे अपने रास्‍ते की पहचान है तो बाघ की तरह झपटना भी जानता है, हिरण की तरह कुलांचे भरना भी उसे आता है. जुड़ा तो आज भी प्रकृति से ही है. उद्योग कल-कारखाने जरूरी हैं, पर उनकी भी एक सीमा है. प्राकृतिक संपदा से संपन्‍न झारखंड के विकास की संभावनाएं भी इसी प्रकृति में ही रची बसी है. इससे अलग होकर तो यह मर जाएगा. प्रकृति के दोहन की जगह प्रकृति से सामंजस्‍य बनाकर चलने पर ही इसे सही मंजिल मिलेगी. जल, जंगल और जमीन यहां का सर्वमान्‍य नारा है. और विकास के लिये यही अवधारणा ही काम आएगी. पर्यटन, शिक्षा, चिकित्‍सा और कृषि ऐसे क्षेत्र हैं जिनके लिये इस रत्‍नगर्भा धरती के आंचल में अपार संभावनाएं हैं. इसी राह पर तो झारखंड के साथ-साथ पला बढ़ा युवा भी बढ़ रहा है. तो फिर, यह राज्‍य भी इसी दिशा में कैसे नहीं आगे बढ़ेगा. जिस राजनीति को लोग कोसते नहीं थकते वही इसका रास्‍ता भी निकालेगी. जंगल का रास्‍ता है, जो जानकार हैं उन्‍हें घुप अंधेरे में आसमान के तारे भी राह दिखा देंगे. अगर यह घुप अंधेरा वर्तमान के निराशा भरे माहौल का है तो हमारे पूर्वज जिन्‍होंने कभी हारना नहीं सीखा वे भी तो आसमान में तारे समान चमक रहे हैं. उनकी जिजीविषा ही हमारे आगे बढ़ने का मूल मंत्र होगा. हमारे होनहार युवा देश दुनिया में र्स्‍वणिम छटा बिखेर रहे हैं. यह उजाला भरा पथ भी तो है हमारे सामने.
संघर्षपूर्ण अतीत और चुनौतियों से भरे वर्तमान के सामने एक सुनहरा कल पलक-पांवड़े बिछाए खड़ा है. बस कदम सही पड़ें और मजबूती से. रास्‍ता कल भी कांटों से भरा हुआ था, आज भी ऊबड़-खाबड़ है. हम इतनी बुलंदी से कदम रखें कि यह पथरीला रास्‍ता भी समतल बन जाए, कांटे और पत्‍थर तो हमारे पूर्वज निकाल चुके हैं. हमें तो बस वे कलंक के निशान मिटाने हैं जो चंद लोगों ने झारखंड के माथे पर लिख डाला है. जल की तरह निश्छल निरंतरता, जंगल की तरह हर झंझावत व दावानल से निकलकर फिर से हरा-भरा होने का निश्‍चय, जमीन की तरह अडिग अविचल रहने की हिम्‍मत सहनशीलता. इसी जल, जंगल, जमीन में छुपा है झारखंड को पहाड़-सी बुलंदियों पर ले जाने का मंत्र.
Rani Sahu

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