सम्पादकीय

जयप्रकाश नारायण ने 1978 में ही कह दिया था कि मौजूदा प्रशासनिक पद्धति भ्रष्टाचार के लिए बहुत हद तक जिम्मेदार

Rani Sahu
31 May 2022 8:52 AM GMT
जयप्रकाश नारायण ने 1978 में ही कह दिया था कि मौजूदा प्रशासनिक पद्धति भ्रष्टाचार के लिए बहुत हद तक जिम्मेदार
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जयप्रकाश नारायण (Jayaprakash Narayan) ने कहा था कि मौजूदा प्रशासनिक पद्धति भ्रष्टाचार के लिए बहुत हद तक जिम्मेदार है

सुरेंद्र किशोर

जयप्रकाश नारायण (Jayaprakash Narayan) ने कहा था कि मौजूदा प्रशासनिक पद्धति भ्रष्टाचार के लिए बहुत हद तक जिम्मेदार है. इसे बदलने की जरूरत है. पर, उसे ना तो तब बदला गया और ना ही आज उसे छूने के लिए मौजूदा राजनीतिक कार्यपालिका तैयार है. हालांकि, यह संकेत है कि इस मामले में मौजूदा नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) सरकार की समझ भी कमोबेश वैसी ही है जैसी जेपी की थी. बीजेपी (BJP) ने मार्गदर्शक मंडल बहुत बाद में बनाया, जयप्रकाश नारायण ने तो इसकी सलाह सन 1978 में ही सत्तारूढ़ जनता पार्टी को दे दी थी. एल.के. आडवाणी-मुरली मनोहर जोशी वाले मार्ग दर्शक मंडल के सदस्य गण भी सक्रि नहीं हो सके. तब की सरकार ने जेपी की बात नहीं मानी.
जयप्रकाश नारायण ने जनता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष चंद्रशेखर को भेजे गए लंबे पत्र में लिखा था कि सत्तारूढ़ जनता पार्टी के "पुराने लोगों को पदों की जिम्मेदारी से मुक्त होकर मार्ग दर्शक की भूमिका अदा करना आवश्यक है." याद रहे कि उन दिनों केंद्र में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार थी. वहां अन्य प्रमुख सत्ताधारी नेता थे, चरण सिंह और जगजीवन राम. तीनों नेता काफी बुजुर्ग थे. क्या जेपी का इशारा इन्हीं तीन नेताओं की ओर था? वैसे पत्र में किसी नेता का नाम नहीं है. जयप्रकाश नारायण भावनात्मक रूप से जनता पार्टी को अपना ही अंग मानते थे. उनकी ही जिद पर चार गैर कांग्रेसी दलों को मिलाकार जनता पार्टी का गठन हुआ था.
'राजनीतिक जीवन में नया खून आता रहे'
इमरजेंसी की पृष्ठभूमि में जेपी ने उन दलों से कह दिया था कि यदि आप दलों का विलयन नहीं करेंगे तो तो मैं नया दल बना लूंगा. नतीजतन उन्हें विलयन करना पड़ा. सन 1977 के लोक सभा चुनाव में इंदिरा सरकार अपदस्थ हो गई. इमरजेंसी से पीड़ित लोगों को राहत मिली. जेपी और कृपलानी ने मिलकर नव निर्वाचित जनता पार्टी के सांसदों की राय ली. फिर मोरारजी देसाई की प्रधानमंत्री पद पर ताजपोशी हुई. पर, समय बीतने के साथ जयप्रकाश नारायण मोरार जी सरकार की उपलब्धियों से निराश रहने लगे. उन्होंने प्रधानमंत्री को भी पत्र लिखे. किंतु मोरारजी देसाई जेपी के पत्रों में दी गई सलाह के प्रति उत्साहित नहीं रहते थे. उसे वे सरकारी काम में गैर सरकारी दखल मानते थे. फिर जेपी ने जनता पार्टी के अध्यक्ष को लंबा पत्र लिखा.
जेपी ने अपने पत्र में कई ऐसी समस्याओं की चर्चा की जिनका हल आज तक नहीं हुआ है. उन्होंने भूमि सुधार और प्रशासन में भ्रष्टाचार की चर्चा खास तौर पर की. जेपी ने लिखा कि "पिछले जनांदोलन में ऐसे बहुत से नए लोग, खास कर नौजवान युवक-युवतियां शरीक हुए थे, जिनका तत्कालीन किसी दल से संबंध नहीं था. उन्हें राजनीतिक प्रवाह में दाखिल करने की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए. राजनीतिक जीवन में नया खून आता रहे, ताकि वह हमेशा ताजा रहे."
जेपी ने लिखा कि पिछले एक साल में आपलोगों ने जो कुछ किया है, वह कम नहीं है. पर इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए कि 1977 के चुनाव के समय जनता में जो अभूतपूर्व उत्साह था और आशा का संचार हुआ था, वह कुल मिलाकर ठंडा पड़ गया है. जनता में निराशा की भावना बढ़ रही है. इसके कारणों में जाना चाहिए. जेपी ने ग्रामीण क्षेत्र में व्यापक पैमाने पर लघु सिंचाई की योजनाओं के निर्माण व विकास की रूरत बताई. उन्होंने जनता पार्टी अध्यक्ष को लिखा कि हमने केवल बड़ी सिंचाई योजनाओं पर ध्यान दिया. अब लघु सिंचाई योजनाओं को प्राथमिकता देने की जरूरत है.
चुनाव की मौजूदा प्रणाली के कारण भ्रष्टाचार बढ़ गया है
जनतंत्र को मजबूत बनाने की आवश्यकता की चर्चा करते हुए जयप्रकाश नारायण ने लिखा कि "यह जरूरी है कि केवल चुने हुए प्रतिनिधियों और प्रशासनिक तंत्र पर ही आधार न रख कर उत्तरोत्तर ज्यादा से ज्यादा लोगों को इस सारी प्रक्रिया में शरीक किया जाए. जनतंत्र को इस प्रकार लोक सम्मति और लोक सहकार का व्यापक आधार देना आवयक है. ऐसा हो सकने के मार्ग में जो पुराना प्रशासनिक दृष्टिकोण, नियम और कार्य पद्धति आड़े आतें हों, उन्हें हमें बदलना चाहिए." भ्रष्टाचार पर चिंता व्यक्त करते हुए जेपी ने लिखा कि "विकास और निर्माण की योजनाएं तो पिछले वर्षों में बहुत बनीं, पर भ्रष्टाचार उनकी सफलता में सबसे बड़ी बाधा बन गया है. हमारी मौजूदा प्रशासनिक पद्धति और तंत्र भी भ्रष्टाचार के लिए बहुत हद तक जिम्मेदार है. भ्रष्टाचार कम करने के लिए यह आवश्यक है कि अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही मौजूदा शासन पद्धति और नियमों में विकास और निर्माण के लक्ष्य की पूर्ति को सामने रख कर आवश्यक परिवर्तन किया जाए. राजनीतिक रीति-नीति और चुनाव की मौजूदा प्रणाली के कारण भ्रष्टाचार बढ़ गया है. भ्रष्टाचार के इन विभिन्न रूपों पर ध्यान देकर उनका निराकरण करना जरूरी है."


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