सम्पादकीय

जयंती विशेष : स्वतंत्र, समृद्ध और समाजवादी लोकतंत्र के पक्षधर थे शास्त्री

Gulabi
2 Oct 2021 2:09 PM GMT
जयंती विशेष : स्वतंत्र, समृद्ध और समाजवादी लोकतंत्र के पक्षधर थे शास्त्री
x
जय जवान, जय किसान का नारा देने वाले लालबहादुर शास्त्री एक ऐसे शख्सियत थे

जय जवान, जय किसान का नारा देने वाले लालबहादुर शास्त्री एक ऐसे शख्सियत थे, जिनके बारे में बहुत ही कम बात होती है। शास्त्रीजी गरीबी और बेरोजगारी को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानते थे। वे कहते थे " आर्थिक मुद्दे हमारे लिए सबसे ज्यादा जरूरी है और यह बेहद महत्वपूर्ण है कि हम अपने सबसे बड़े दुश्मन 'गरीबी और बेरोजगारी' से लड़ें"। दूसरे प्रधानमंत्री के रूप में अपने 18 महीने के कार्यकाल में उन्होंने ऐसे काम किए जिसके लिए वे हमेशा याद किए जाएंगे।

दुबले-पतले शरीर और पांच फीट दो इंच लंबाई वाले शास्त्री को करीब से नहीं जानने वाले एक कमज़ोर प्रधानमंत्री मानते थे। उनकी छोटी कदकाठी की वजह से ही पाकिस्तान के तत्कालीन फील्ड मार्शल अय्यूब खां ने कराची एयरपोर्ट पर उनका मज़ाक उड़ाया था। जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद अयूब खां ने दिल्ली दौरा रद्द कर दिया था। तब शास्त्री ने कहा था आप दिल्ली आने की कष्ट न करें हम खुद चहलकदमी करते हुए लाहौर तक आ जाएंगे। शास्त्री को कमजोर समझने की भूल का नतीजा ही था कि 1965 में पाकिस्तान ने दोबारा भारत पर आक्रमण कर दिया।
तब शास्त्री ने पाकिस्तान को उसकी हद याद दिलाई थी। लालबहादुर शास्त्री शारिरिक रूप से जितने कमज़ोर दिखते थे मानसिक रूप से वे उतने ही मजबूत और महत्वकांक्षी थे। 1965 के युद्ध के दौरान जब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन बी. जॉनसन ने धमकी दी कि अगर भारत, पाकिस्तान के साथ युद्ध नहीं रोकता है तो वह पीएल-80 समझौते के तहत गेहूं की आपूर्ति रोक देगा। लेकिन, शास्त्री जी अमेरिका की धमकी से नहीं डरे। उन्होंने देशवासियों से एक अपील की कि सभी लोग सप्ताह में एक वक्त खाना नहीं खाएंगे।
लाल बहादुर शास्त्री
इस अपील से पहले शास्त्री जी ने इसका प्रयोग खुद अपने घर में किया। जब प्रयोग खुद पर सफल पाया तो उन्होंने देशवासियों से भी एक वक्त का खाना छोड़ने की अपील की। उनकी अपील का यह असर हुआ कि देशवासियों ने सप्ताह में एक वक्त का खाना छोड़ दिया। यहां तक कि सोमवार की शाम को होटल और भोजनालय भी बंद रहने लगे।
रेल मंत्री के पद से दे दिया था इस्तीफा
नेहरू मंत्रिमंडल में शास्त्री को रेल मंत्री बनाया गया। लेकिन, एक रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने 1956 में त्यागपत्र दे दिया। 1961 में उन्हें दोबारा मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है और वे गृहमंत्री बने। शास्त्री जी ने ही सबसे पहले भ्रष्टाचार रोकने की दिशा में कदम उठाया। इसके लिए के. संथानम की अध्यक्षता में उन्होंने एक कमेटी गठित की। इसी कमेटी की अनुशंसा पर केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की स्थापना की गई।
नेहरू के बाद देश को दी नई दिशा
जवाहरलाल नेहरू के अचानक निधन होने के बाद कांग्रेस के भीतर उथल पुथल मच गई थी। काफी मंथन के बाद 9 जून 1964 को दूसरे प्रधानमंत्री के रूप में शास्त्री जी ने शपथ ली। प्रधानमंत्री बनने के बाद देश को पहली बार संबोधित करते हुए शास्त्री ने कहा था " प्रत्येक राष्ट्र के सम्मुख जीवन में एक ऐसा समय आता है जब वह इतिहास के चौराहे पर खड़ा होता है और उसे आगे बढ़ने के लिए एक रास्ता चुनना होता है। हमारे लिए इसमें कोई संकोच नहीं है और न ही दाएं-बाएं देखने की आवश्यकता है। हमारा सीधा और स्पष्ट रास्ता है- सभी के लिए स्वतंत्रता एवं समृद्धि के साथ आंतरिक रूप से समाजवादी लोकतंत्र का निर्माण करना और सभी राष्ट्रों के साथ विश्व शांति एवं मित्रता बनाये रखना"। शास्त्री जी ने कहा था " यह हमारे देश की अद्वितीय विशेषता है कि यहां हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी और जैन धर्म के लोग रहते हैं। यहां मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और चर्च सभी है लेकिन हम इनका इस्तेमाल राजनीति में नहीं करते"।
हरित और श्वेत क्रांति के जनक
लाल बहादुर शास्त्री ने 'जय जवान जय किसान' का नारा भारत-पाकिस्तान के युद्ध के समय दिया था। उनका मानना था कि खेत में किसान द्वारा खाद्य उत्पादन का कार्य देश सेवा में सैनिक की आहुति के बराबर है। शास्त्री जी ने चौतरफा विरोध के बावजूद 1965 में मेक्सिको में नॉर्मन बोरलॉग की टीम द्वारा विकसित उच्च पैदावार वाली गेहूं के 250 टन बीज आयात करने की मंजूरी थी। उन्हीं के समय में कृषि मूल्य आयोग (एपीसी) और भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) अस्तित्व में आए। राष्ट्रीय बीज और केंद्रीय भंडार निगम भी इसी समय अस्तित्व में आएं।
श्वेत क्रांति को गति देने के लिए शास्त्री जी ने अमूल के जनरल मैनेजर वर्गीज कुरियन से गुजरात से बाहर दूध सहकारिता में मदद करने की इच्छा जाहिर की। इसी का नतीजा था कि 1965 में गुजरात के आणन्द में नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (एनडीडीबी) की स्थापना हुई।
नवंबर 1964 में चेन्नई में केंद्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मार्च 1965 में आंध्र प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय (हैदराबाद), इलाहाबाद में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान की स्थापना हुई। चेन्नई में जवाहर डॉक का उद्घाटन भी शास्त्री ने ही किया। 1965 में ट्राम्बे में प्लूटोनियम प्रसंस्करण की शुरुआत की। डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा की पहल पर शास्त्री ने स्टडी ऑफ न्यूक्लियर एक्सप्लोजन फ़ॉर पीसफुल परपजेस (एसएनईपीपी) का गठन किया। 11, जनवरी 1966 को ताशकंद घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करने के अगले ही दिन हृदयाघात से उनका संदेहास्पद निधन हो गया। उनकी मृत्यु पर काफी विवाद भी हुआ।
इसमें अमेरीका की सेंट्रल इंटेलीजेंस एजेंसी (सीआईए) पर भी शक की सुई गई लेकिन अब तक उनकी मौत के कारणों का सही पता नहीं चल सका। 'साउथ एशिया पर सीआईए की नजर' नामक पुस्तक लिखने वाले अनुज धर द्वारा 2009 में सूचना के अधिकार के तहत जनकारी मांगने पर भारत सरकार द्वारा कहा गया कि " शास्त्री जी के मृत्यु दस्तावेज सार्वजनिक करने से हमारे अंतरराष्ट्रीय संबंध खराब हो सकते हैं, देश में उथल पुथल मचने के साथ संसदीय विशेषाधिकार को भी ठेस पहुंच सकती है, इसलिए इसका जवाब नहीं दिया जा सकता"।
उनके बारे में पी.एन. धर कहते हैं कि " शास्त्री जी ने किसी प्रकार का वैचारिक चश्मा नहीं पहना, उन्होंने तथ्यों को उनके परिप्रेक्ष्य में देखा। यदि वे और अधिक समय तक जीवित रहते तो 25 वर्षों बाद उठाए गए आर्थिक सुधारों के कदमों को काफी पहले उठा लिया गया होता।


अमर उजाला
Next Story