सम्पादकीय

CAG की सहमति के बाद ही जवाहरलाल नेहरू 1951-52 में चुनाव प्रचार के लिए सरकारी विमान का इस्तेमाल कर सके थे

Gulabi
29 Jan 2022 5:58 AM GMT
CAG की सहमति के बाद ही जवाहरलाल नेहरू 1951-52 में चुनाव प्रचार के लिए सरकारी विमान का इस्तेमाल कर सके थे
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जवाहरलाल नेहरू 1951-52 में चुनाव प्रचार के लिए सरकारी विमान का इस्तेमाल कर सके थे
सुरेंद्र किशोर।
प्रधानमंत्री चुनाव प्रचार (Election Campaign) के लिए भी सरकारी विमान का इस्तेमाल कर सकते हैं, यह परंपरा तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू (PM Jawaharlal Nehru) ने 1951 में डाल दी थी. पर, उसके लिए उन्होंने सी.ए.जी. (CAG) की सहमति ली थी. क्योंकि उससे पहले इस संबंध में कोई नियम नहीं था. इस मुद्दे पर सी.ए.जी. ने तब कहा था कि "विशेष परिस्थिति में सिर्फ जवाहरलाल नेहरू ही उचित भाड़ा देकर चुनाव प्रचार के लिए वायु सेना के विमान का इस्तेमाल कर सकते हैं. पर इसे पूर्व उदाहरण नहीं माना जाएगा. अगले किसी प्रधानमंत्री को इसकी छूट नहीं रहेगी."
प्रथम आम चुनाव के समय यह सवाल उठा था कि क्या प्रधानमंत्री चुनाव दौरे के लिए सरकारी विमान का इस्तेमाल कर सकते हैं? जवाहर लाल नेहरू ने इस मामले में खुद कोई फैसला नहीं किया. उन्होंने पहले तो अफसरों की उच्चस्तरीय कमेटी बना दी. पर बाद में उन्होंने सी.ए.जी. से राय मांगी. हालांकि सहमति देते हुए सी.ए.जी.ने तब यह भी कहा था कि विशेष परिस्थिति में सिर्फ जवाहर लाल नेहरू ही उचित भाड़ा देकर चुनाव प्रचार के लिए वायु सेना के विमान का इस्तेमाल कर सकते हैं. पर इसे पूर्व उदाहरण नहीं माना जाएगा. अगले किसी प्रधानमंत्री को इसकी छूट नहीं रहेगी.
'सी.ए.जी. सरकारों का कोई मुनीम मात्र नहीं है'
सी.ए.जी. से नीति विषयक राय मांगने के पीछे नेहरू जी की यही मंशा थी कि सी.ए.जी. सरकार का सिर्फ मुनीम नहीं है. याद रहे कि खुद जवाहर लाल नेहरू संविधान सभा के सदस्य थे और वह सी.ए.जी. की भूमिका के बारे में संविधान सभा की राय जानते थे. एक प्रसंग में सुप्रीम कोर्ट ने भी 1 अक्तूबर 2012 को कहा था कि सी.ए.जी. सरकारों का कोई मुनीम मात्र नहीं है.
प्रथम आम चुनाव 1951 के अक्तूबर और दिसंबर तथा 1952 की फरवरी में हुए थे. चुनाव में करीब छह महीने लगे थे. प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू कांग्रेस के सबसे बड़े व सर्वाधिक लोकप्रिय नेता थे. पूरे देश में प्रचार के लिए विमान जरूरी था. इस सवाल पर इसलिए भी माथापच्ची हुई क्योंकि इस संबंध में पहले से कोई नियम था ही नहीं.
आई.बी. के निदेशक ने चुनाव से कुछ महीने पहले ही प्रधानमंत्री के निजी सचिव एम.ओ.मथाई से कहा कि प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री की सुरक्षा को लेकर हम चिंतित हैं. याद रहे कि तीन ही साल पहले महात्मा गांधी की हत्या हो चुकी थी. निदेशक ने कहा कि हमें चिंता होगी, यदि प्रधानमंत्री नियमित कमर्शियल फ्लाइट से यात्रा करेंगे. वैसे भी उन दिनों इस देश में विमान सेवा शैशवावस्था में ही थी. निदेशक चाहते थे कि सरकार ऐसी कोई व्यवस्था कर दे ताकि भुगतान के एवज में प्रधानमंत्री प्रचार के लिए भारतीय वायु सेना के विमान का इस्तेमाल कर सकें.
तीन सदस्यीय समिति बना दी गई
कैबिनेट सचिव एन.आर. पिल्लई को मथाई ने यह बात बताई. पिल्लई के सामने समस्या यह थी कि सरकारी काम के अलावा किसी अन्य काम के लिए भारतीय वायु सेना के विमान का इस्तेमाल नियमतः नहीं हो सकता था. पिल्लई ने सलाह दी कि इस मुद्दे पर विचार के लिए एक उच्चस्तरीय सरकारी कमेटी बना दी जाए. तीन सदस्यीय समिति बना दी गई. कैबिनेट सचिव उसके अध्यक्ष बने. रक्षा सचिव को सदस्य और आई.सी.एस. अधिकारी तारलोक सिंह को सदस्य सचिव बनाया गया.
इस समिति ने रिपोर्ट में कहा कि प्रधानमंत्री यदि किसी गैर सरकारी काम से भी कहीं जाते हैं तो उतने समय के लिए प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी से वे मुक्त तो नहीं हो जाते, विमान में भी वे अनेक सरकारी काम कर सकते हैं. समिति ने यह राय प्रकट की कि प्रधानमंत्री जब गैर सरकारी दौरे पर जाएंगे तो वे वायु सेना के विमान का उपयोग कर सकते हैं. पर इसके लिए वे अपनी जेब से सरकार को भाड़े का भुगतान करेंगे.
नेहरू ने कैबिनेट सेक्रेटरी से कहा कि वे इस रिपोर्ट को मंत्रिमंडल के सदस्यों के बीच वितरित करा दें. इसी बीच किसी समझदार व्यक्ति ने नेहरू को सलाह दी कि यदि कैबिनेट से भी इसे आप मंजूर भी करा लेंगे तो भी इस सरकारी खर्चे का सार्वजनिक रूप से औचित्य साबित करने में दिक्कत होगी. क्योंकि न सिर्फ उस कमेटी के सदस्य आपके मातहत हैं, बल्कि कैबिनेट भी आपके प्रभाव में है.
1951 में वायु सेना के पास सिर्फ कुछ डकोटा विमान ही थे
इसलिए चुनाव प्रचार के लिए वायु सेना के विमान के इस्तेमाल की मंजूरी ऐसे किसी प्रतिष्ठान की तरफ से होनी चाहिए जिस पर दिन प्रति दिन के कामों में सरकार का सीधा असर नहीं रहता हो. जवाहरलाल नेहरू सहमत हो गए. इस सलाह के बाद इस मामले को सी.ए.जी. को सौंप दिया गया. इस संबंध में तब तक तैयार सारे कागजात सी.ए.जी. को सौंप दिए गए. सीएजी ने उन पर गौर किया. उसके बाद उन्होंने प्रधानमंत्री सचिवालय को बताया कि अभी देश की स्थिति असामान्य है.
प्रधानमंत्री की सुरक्षा का ध्यान रखना जरूरी है. इस पृष्ठभूमि में मैं सुरक्षा के आधार पर अपना नोट तैयार करूंगा. मेरी नजर में इसी आधार पर उन्हें वायु सेना के विमान के उपयोग करने की सलाह दी जा सकती है. सी.ए.जी.नरहरि राव ने यही किया. उन्होंने कैबिनेट सचिव की सिफारिश को मंजूर कर लिया. पर सी.ए.जी. ने एक शर्त लगा दी. उन्होंने फाइल में लिखा कि यह सहूलियत सिर्फ जवाहर लाल नेहरू के लिए ही दी जा रही है. किसी अगले प्रधानमंत्री के लिए यह पूर्व उदाहरण नहीं बनेगा. सन् 1951 में वायु सेना के पास सिर्फ कुछ डकोटा विमान ही थे. जवाहर लाल नेहरू ने तब उसी का इस्तेमाल किया था.
(डिस्क्लेमर: लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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