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By लोकमत समाचार सम्पादकीय
बंगाल और पूर्वी भारत के असम, ओडिशा व त्रिपुरा में रविवार को लक्ष्मी पूजा का आयोजन हुआ, जिसे कोजागिरी पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। पूरब में आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष में पूर्णिमा के दिन लक्ष्मी का आह्वान किया जाता है, जबकि उत्तर और पश्चिम भारत में कृष्ण पक्ष में अमावस्या को दीपावली पर लक्ष्मी पूजन किया जाता है और पूरे परिसर को दीयों से सजाया जाता है।
दक्षिण में कुछ दिन पहले नवरात्रि की 9 में से 3 रातों के दौरान लक्ष्मी पूजन करने की परंपरा है। भारत में एकता के बीच अनेक सहस्राब्दियों से विविधता इसी तरह फलती-फूलती रही है। बंगाल और पूर्व के हिस्सों में लक्ष्मी पूजा उसी तरह विशाल पंडाल में आयोजित की जाती है जैसे दुर्गा पूजा और विजयादशमी धूमधाम से मनाई जाती है। लेकिन पंडालों में होने वाली पूजा से कहीं अधिक उत्साह घर में होता है।
महिलाएं और पुरुष अपने घरों में लक्ष्मी का स्वागत करने और उनका दिव्य आशीर्वाद लेने के लिए सुबह जल्दी स्नान करते हैं। घरों की महिलाएं सफेद या लाल रंग में भगवान के पैरों के निशान बनाती हैं। लक्ष्मी पूजा के दौरान, पैरों के निशान बनाना अनिवार्य है, जो धन की देवी का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि देवी रात में हर घर में जाती हैं और उन कमरों में प्रवेश करती हैं जहां पैरों के निशान बने होते हैं। इसलिए पूरे घर में पैरों के निशान बने होते हैं, यहां तक कि सीढ़ी को भी नहीं छोड़ा जाता है।
चावल के आटे से बनाई जाने वाली अल्पना की कला बंगाल में महिलाओं के बीच एक शुभ परंपरा और कलात्मक अभ्यास दोनों है- जैसे अन्य जगहों पर कोलम, रंगोली, अरिपन और मांडना हैं। दिलचस्प बात यह है कि आधुनिक समय में, अल्पना ने धीरे-धीरे कर्मकांड के संदर्भ से बाहर आते हुए एक अधिक धर्मनिरपेक्ष स्वरूप हासिल कर लिया है, खासकर स्ट्रीट आर्ट के रूप में।
रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा निर्मित विश्वविद्यालय, विश्व भारती परिसर में आपको मौसमी त्योहारों के दौरान भव्य अल्पनाएं नजर आएंगी। यह पहले हमेशा सफेद रंग की होती थी लेकिन आधुनिक समय में यह रंगीन रंगोली से काफी प्रभावित हुई हैं। बंगाल की लक्ष्मी कमल पर विराजमान हैं और उनकी गोद में धन का घड़ा होता है।
लक्ष्मी पूजा के दिन, दो मांगलिक कलश या घड़े नारियल से ढके होते हैं, जो घर के प्रवेश द्वार पर एक शुभ हिंदू परंपरा के रूप में रखे जाते हैं। कई जगहों पर मीठा हलवा बनाया जाता है और पवित्र प्रसाद के रूप में उज्ज्वल चांदनी के नीचे रखा जाता है, जिसे अगले दिन परिवार के सभी सदस्यों के बीच बांटा जाता है। पहले लक्ष्मीर पांचाली-देवी के प्रार्थना गीत-सुनने के लिए परिवार मां के चारों ओर इकट्ठा होते थे-लेकिन ये अनुष्ठान आजकल धीरे-धीरे लुप्त हो रहे हैं।
Rani Sahu
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