- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- Jammu&Kashmir: बिहार...
x
बिहार के बेकसूर मजदूरों
पटना. बिहार के लाखों लोग देश के अलग-अलग हिस्सों में मजदूरी का काम करते हैं. कोई बढ़ई का काम करते हैं, कोई राज मिस्त्री का काम करते हैं, कोई खेतों में काम करता है. ये सिलसिला दशकों से चलता आ रहा है. चाहे मुंबई हो, केरल हो, तेलंगाना हो, पंजाब हो दिल्ली हो, ये मजदूर अर्थव्यवस्था के इंजन को गति देते हैं. विगत दो दशकों में बिहार और झारखंड के हजारों मजदूर कश्मीर भी गए और वहां मेहनत करके अपनी जगह बनाई लेकिन बिहार के लोगों की जिस कायराना तरीके वहां हत्या की गई उससे यही स्पष्ट होता है कि आतंकियों का खेल अब खत्म हो गया है.
कश्मीर में बिहार के मजदूरों और कारीगरों पर आतंकी हमले पहली बार सिलसिलेवार तरीके से हो रहे हैं. पहले एक समुदाय के लोगों को इस तरह से कभी भी निशाना नहीं बनाया गया. बिहार के लोगों का जम्मू और कश्मीर से नाता कम से कम 25-30 वर्ष पुराना है. भले ही 90 के दशक में घाटी से कश्मीरी पंडित पलायन कर गए हों लेकिन बिहार के कर्मठ मजदूरों ने कभी भी घाटी नहीं छोड़ी.
बिहार के कर्मठ मजदूरों की कोई सानी नहीं
मेरा पहली बार कश्मीर जाना वर्ष 2000 के शुरुआती दशक में शुरू हुआ जब वहां आतंकवाद अपने चरम पर था. शाम के छह बजते-बजते ही दुकानों के शटर गिरा दिये जाते थे उसके बाद लोग रात भर के लिए अपने आप को अपने घरों में कैद कर लेते थे. ये हालात न सिर्फ श्रीनगर में बल्कि वहां अन्य इलाकों जैसे अनंतनाग, बारामूला, कुपवाड़ा, पुलवामा, डोडा और किश्तवाड़ का भी था लेकिन इन मुश्किल हालातों में वहां आपको बिहार के मजदूर सड़कों पर काम करते हुए, कन्स्ट्रकशन साइट पर काम करते हुए नज़र आ जाते थे. वर्ष दो हज़ार के बाद बिहार से जाने वाले नागरिकों की संख्या बढ़ी, इसकी वजह यह भी थी आतंकी सामान्य नागरिकों या आप सैलानियों को कभी अपना निशाना नहीं बना रहा था. इसकी एक बड़ी वजह यह भी थी कि भारत के अन्य हिस्सों से आने वाले लोग घाटी में पर्यटन को बढ़ावा दे रहे थे, जिससे वहाँ के लोगों की रोज़ी-रोटी भी चल रही थी.
मजदूर मजबूत करते हैं इकॉनमी
बिहार के बांका जिले से गए अरविंद साह, जिनकी श्रीनगर में आतंकियों ने हत्या की, उन्हीं के गांव से दर्जनों लोग कश्मीर वर्षों से कश्मीर में रहकर काम कर रहे थे. कोई वहां होटल चला रहा था, कोई वहां मिठाई बनाकर बेच रहा था और कोई वहां गोलगप्पे बेच रहा था. इन मजदूरों का भरपूर योगदान वहां की अर्थव्यवस्था के इंजन को आगे बढ़ाने में रहा है. कश्मीर में इस तरह की स्थिति पिछले दो वर्ष की शांति के बाद अचानक पैदा हुई. 2019 के बाद जम्मू और कश्मीर के इलाकों में राजनीतिक गतिविधियां शुरू हो गईं थीं, आम लोगों का घाटी से बाहर आना-जाना संभव हो रहा था.
खतरा ओवर ग्राउंड लोगों से ज़्यादा
सेना भले ही दावा कर रही हो कि घाटी के बड़े आतंकियों को ठिकाने लगा दिया गया लेकिन वैसे लोग सक्रिय हैं जो कुछ समय के लिए अंडरग्राउंड हो गए थे. घाटी में शांति के लिए खतरा वैसे लोग हैं, जिन्हें ओवर ग्राउंड वर्कर्स (ओजीडबल्यू) कहते हैं, वो मुश्किल हालातों में आतंकी संगठनों को हर संभव मदद देते हैं, जैसे कि उन्हें लंबे समय तक शरण देना, भोजन देना और पुलिस और सेना की नज़रों से बचना. ऐसे लोगों की पहचान आम तौर पर बहुत मुश्किल से हो पाती है. कश्मीर पुलिस, सेना और इंटेलिजेंस के लोगों का यही काम होना चाहिए कि ये संदेहास्पद लोगों की पहचान करें और उनके खिलाफ ठोस कार्रवाई करें.
जब आतंकी अपनी पहचान छिपा किसी परिवार के साथ रह रहा हो तो ऐसे लोगों के खिलाफ कदम उठाना मुश्किल हो जाता है, ये एक सच्चाई है. ऐसे लोग पुलिस और सेना से सीधा-सीधा मुक़ाबला नहीं करते बल्कि वो आम लोगों और निरपराध लोगों को अपना निशाना बनाते हैं. कश्मीर में इस आज यही हो रहा है जहां आतंकी अपनी पहचान छिपाकर किसी एजेंडे के तहत गैर-कश्मीरी, कश्मीरी हिंदुओं और अल्पसंखयक सिखों के ऊपर के ऊपर हमले कर रहे हैं.
बिहार के मजदूरों पर हमला करने वाले कायर
बिहार के मजदूरों पर हमले तब किए जा रहे हैं, जब वो सैन्य बलों से सीधे-सीधे मुक़ाबला करने की स्थिति में नहीं हैं. ऐसे में सेना और अर्धसैनिक बालों के ऊपर ज़िम्मेदारी बढ़ जाती है कि वो कोई ऐसी कार्रवाई न करें जिससे आम लोगों का नुकसान हो. प्रशासन के सामने सबसे बड़ी चुनौती ये है कि वो बेगुनाह लोगों को बुजदिल आतंकियों के हमले से बचाए और दोबारा कश्मीर में 1990 जैसे हालात न बनने दें, जब लाखों कश्मीरी पंडितों को घाटी छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था. बिहार के हजारों मजदूरों को अगर पलायन करने से नहीं रोका गया तो हालत फिर से बदतर हो जाएंगे. इन्हें हर हाल में सुरक्षित रखना सरकार की ज़िम्मेदारी है.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
ब्रज मोहन सिंह, एडिटर, इनपुट, न्यूज 18 बिहार-झारखंड
पत्रकारिता में 22 वर्ष का अनुभव. राष्ट्रीय राजधानी, पंजाब , हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में रिपोर्टिंग की.एनडीटीवी, दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका और पीटीसी न्यूज में संपादकीय पदों पर रहे. न्यूज़ 18 से पहले इटीवी भारत में रीजनल एडिटर थे. कृषि, ग्रामीण विकास और पब्लिक पॉलिसी में दिलचस्पी.
Gulabi
Next Story