सम्पादकीय

जम्मू-कश्मीर डीडीसी चुनाव: लोगों का बढ़-चढ़कर भाग लेना देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में दर्शाता है पूरा भरोसा

Neha Dani
23 Dec 2020 1:54 AM GMT
जम्मू-कश्मीर डीडीसी चुनाव: लोगों का बढ़-चढ़कर भाग लेना देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में दर्शाता है पूरा भरोसा
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जम्मू-कश्मीर में जिला विकास परिषद के चुनाव नतीजों का यदि कोई सबसे उल्लेखनीय पक्ष है

जम्मू-कश्मीर में जिला विकास परिषद के चुनाव नतीजों का यदि कोई सबसे उल्लेखनीय पक्ष है तो यही कि उनके जरिये इस केंद्र शासित प्रांत के लोगों की लोकतंत्र के प्रति आस्था प्रदर्शित हुई। इसकी एक झलक इन चुनावों के दौरान दर्ज किए गए मतदान प्रतिशत से भी मिली थी। उस कश्मीर घाटी में भी ठीक-ठाक मतदान हुआ था, जहां के बारे में यह माहौल बनाया जा रहा था कि अनुच्छेद 370 और 35-ए खत्म किए जाने के कारण लोग इन चुनावों से दूर रहना पसंद कर सकते हैं। ऐसा कुछ नहीं हुआ। जम्मू की तरह कश्मीर की जनता ने भी इन चुनावों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेकर यही साबित किया कि उनका भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में पूरा भरोसा है। शायद लोगों के इसी रुख को भांपकर गुपकार गठबंधन वाले दलों और खासकर इस गठजोड़ की अगुआई कर रहे नेशनल कांफ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने इन चुनावों में भाग लेने का फैसला किया, जबकि पहले वे भड़काऊ बयानबाजी करने के साथ उनके बहिष्कार की बात कर रहे थे।

हो सकता है कि जिला विकास परिषद के चुनाव नतीजों के बाद गुपकार गठबंधन के नेता नए सिरे से अनुच्छेद 370 की वापसी की अपनी मांग पर जोर दें, लेकिन बेहतर होगा कि वे इस जमीनी हकीकत से दो-चार हों कि ऐसा कभी नहीं होने वाला। इसलिए नहीं होने वाला, क्योंकि यह अस्थायी अनुच्छेद विभाजनकारी होने के साथ ही राष्ट्रीय एकता में बाधक भी था। इसके अतिरिक्त यह अलगाववाद को हवा देने के साथ-साथ कश्मीरियत को नष्ट-भ्रष्ट करने का भी काम कर रहा था। गुपकार गठबंधन को इसकी भी अनदेखी नहीं करनी चाहिए कि उसके तमाम नकारात्मक प्रचार के बाद भी घाटी में भाजपा अपनी जड़ें जमाने में सफल रही। अच्छा होगा कि गुपकार गठबंधन के नेता इस मुगालते से बाहर आएं कि कश्मीर उनकी निजी जागीर है। जम्मू-कश्मीर में जिला विकास परिषद चुनावों का एक अन्य महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि कुछ समय पहले पंचायत चुनावों के समय घाटी में कई स्थानों पर एक से अधिक प्रत्याशी ही नहीं थे। इस बार ऐसी स्थिति नहीं दिखी।


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