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- जयशंकर की दो टूक
नवभारत टाइम्स: विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दिल्ली में हो रहे रायसीना डायलॉग के दौरान मंगलवार को विभिन्न देशों के विदेशमंत्रियों की मौजूदगी में न केवल भारत के रुख को पूरी बेबाकी से सामने रखा बल्कि यूरोपीय देशों के ढुलमुल रवैये को भी सामने रखने से नहीं चूके। इस लिहाज से देखा जाए तो रायसीना डायलॉग के इस सातवें सीजन की टाइमिंग बड़ी अहम रही। यह ऐसे समय में हुआ, जब यूक्रेन युद्ध के दुष्परिणाम दुनिया भर में आम लोगों के जीवन को भी प्रभावित कर रहे हैं। ऐसे में अस्वाभाविक नहीं कि युद्ध पर विभिन्न देशों के स्टैंड को लेकर चलने वाली आपसी रस्साकशी इस कार्यक्रम के जरिए सार्वजनिक विमर्श की शक्ल में बाहर आ गई। अमेरिका और यूरोपीय देशों का शुरू से आग्रह रहा है कि भारत इस युद्ध पर उनके सुर में सुर मिलाते हुए रूस की खुली निंदा करे। मगर भारत ने राष्ट्रहित और मूल्यों पर आधारित अपनी स्वतंत्र विदेश नीति की परंपरा कायम रखी। उसने तत्काल युद्ध बंद करके शांति स्थापित करने और बातचीत से विवाद सुलझाने की अपील की, लेकिन रूस या यूक्रेन से अपने संबंधों पर आंच नहीं आने दी।
इसी संदर्भ में मंगलवार को रायसीना डायलॉग के इंटरएक्टिव सेशन में जब कुछ यूरोपीय देशों के विदेश मंत्रियों ने अपने सवालों के जरिए भारत को घेरने की कोशिश की तो विदेश मंत्री जयशंकर ने साफ कहा कि 'जब एशिया में कानून आधारित व्यवस्था पर संकट आया था तो यूरोप से हमें सलाह मिली थी कि और ज्यादा व्यापार करें। हम आपको कम से कम ऐसी सलाह तो नहीं दे रहे।' जयशंकर ने नाम भले न लिया हो, उनका स्पष्ट इशारा चीन-भारत सीमा विवाद की ओर था। उन्होंने अफगानिस्तान की घटनाओं का जिक्र करते हुए याद दिलाया कि वहां साल भर पहले एक तरह से पूरी सिविल सोसाइटी को तालिबान के हाथों मरने के लिए छोड़ दिया गया था। जाहिर है, यूक्रेन युद्ध के बहाने भारत को जगाने की कोशिश कर रहे यूरोपीय देशों को यह बताना जरूरी था कि जागने की जरूरत दरअसल उन्हें है जो एशिया की समस्याओं की ओर से आंखें मूंदे रहते हैं। ध्यान रहे, भारत के रुख में यह सख्ती न तो अचानक आई है और न ही ऐसा है कि पहली बार रायसीना डायलॉग के मंच पर दिखी। पिछले कुछ हफ्तों से विदेश मंत्री यूरोप को लेकर तीखी टिप्पणियां करते रहे हैं। वॉशिंग्टन में उन्होंने पिछले दिनों कहा कि जहां तक रूस से ईंधन लेने का सवाल है तो भारत पूरे महीने भर में उससे जितनी ऊर्जा लेता है, उतनी ऊर्जा यूरोप आधे दिन में ले लेता है। यही नहीं ब्रिटिश विदेश मंत्री के सामने प्रतिबंधों के बारे में उन्होंने कह दिया था कि वे अभियान जैसे लगते हैं। आम तौर पर ऐसे तीखेपन से बचते हैं, लेकिन कूटनीति में भी कभी-कभी आईना दिखाना जरूरी हो जाता है।