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- जयकिशन 50वीं पुण्यतिथि...
अजीत कुमार।
फिल्म बरसात (Barsaat) की मेलॉडिकल रवानगी से शुरू हुई शंकर-जयकिशन (Shankar Jaikishan) की धुनों की इस यात्रा का अगला पड़ाव थी फिल्म आवारा (1951) . जहां फिल्म संगीत को एसजे ने यूं कहे तो आख्यान में बदल दिया. फिल्म की बुनावट में संगीत (चाहे वह बैकग्राउंड/पार्श्व संगीत हो या गीतों की रचना) जिस हद तक शामिल था, शायद ही हिन्दी फिल्मों के इतिहास में कोई दूसरा उदाहरण मिले. तभी तो इस फिल्म के बैकग्राउंड म्यूजिक के टुकड़ों का इस्तेमाल अन्य फिल्मों में भी कई बार किया गया. यहां पर आवारा के एक गीत का जिक्र जरूरी है. राजकपूर को फिल्म बावरे नैन का राग दरबारी पर आधारित एक गीत, तेरी दुनिया में दिल लगता नहीं वापस बुला ले …..काफी पसंद था. अपने उस्ताद केदार शर्मा की इस फिल्म में राजकपूर गीता बाली के साथ मुख्य भूमिका में थे जबकि संगीत रौशन का था. राज साहब चाहते थे कि फिल्म आवारा में इस गीत को हूबहू ले लिया जाए. लेकिन इसकी इजाजत उन्हें केदार शर्मा से नहीं मिली. तब उन्होंने शंकर जयकिशन को इसी गीत को ध्यान में रखकर एक गीत रचने की जिम्मेदारी दी. और एसजे ने जो बेमिसाल गीत रचा वह था, हम तुझसे मोहब्बत करके सनम रोते भी रहे हंसते भी ……. आवारा के ड्रीम सीक्वेंस (स्वप्न दृश्य) के बगैर तो बात पूरी हो ही नहीं सकती. इस सीक्वेंस को एसजे ने तीन गीतों से पूरा किया. सीक्वेंस का शुरुआती गीत था ….तेरे बिना आग ये चांदनी, दूसरा गीत था …. मुझको चाहिए बहार… और इस सीक्वेंस की समाप्ति होती है, ….घर आया मेरा परदेसी से. हिंदुस्तानी फिल्मों के इतिहास में ऐसा ड्रीम सीक्वेंस फिर कभी देखने को नहीं मिला. हालांकि इस सीक्वेंस का अंतिम गीत घर आया मेरा परदेसी को लेकर एसजे पर नकल/कापी के आरोप भी लगते हैं. हां यह बात सही है कि इस गीत की संगीत रचना एसजे ने मिस्र की गायिका उम्म कुलथुम (कुलसुम) के एक गीत के आधार पर ही की थी. लेकिन अगर आप ध्यान से सुनेंगे तो आपको यह जरूर लगेगा कि मैंडोलिन के गजब के इस्तेमाल और अपने जादुई ऑर्केस्ट्रेशन से एसजे ने इस गीत को अपने विशिष्ट रंग के साथ हीं अपने प्रिय राग भैरवी में भी ढाल दिया है. एसजे हमेशा कहते थे कि हमें बाहर की धुनों से प्रेरणा लेने में कोई दिक्कत नहीं है बशर्ते हम उसकी हूबहू कॉपी न करें.