सम्पादकीय

जय हाटी, जय माटी

Rani Sahu
15 Sep 2022 6:58 PM GMT
जय हाटी, जय माटी
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By: divyahimachal
सिरमौर की माटी और माथे का सबसे बड़ा सवाल अंतत: गिरिपार के लोगों को जनजातीय दर्जा मिलने से हल हो गया। वर्तमान जयराम सरकार की पहल और केंद्र के दखल से हाटी समुदाय को मिला ट्राइबल दर्जा आगामी चुनाव की भाषा और भाषण बदल सकता है और इसलिए सिरमौर की राजनीतिक रीढ़ पर भाजपा का सवार होना स्वाभाविक है। निर्णय के सामाजिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक व आर्थिक पहलू हैं और इस तरह राजनीति के एक बड़े भूखंड पर आधी सदी से तैर रही मांग अब भाजपा की राज्य व केंद्र सरकारों का धन्यवाद कर रही है। गिरिपार की करीब पौने दो लाख आबादी को मिला जनजातीय अधिकार, 154 पंचायतों की संरचना की नई पैरवी व ऊर्जा समाहित करता है। यह सामाजिक जीत के साथ-साथ नई राजनीति का उद्घोष तो है, लेकिन इसके साथ-साथ सामान्य वर्ग आयोग के लिए उठे आंदोलन व उसके आसपास खड़ी सियासत को भी काफी हद तक ध्वस्त करता है। हिमाचल में ट्राइबल समाज बढ़ रहा है और इसके तमाम पहलुओं का विश्लेषण प्रादेशिक जागृति में नागरिक समाज को विशेषाधिकार सौंपता है। आजादी के बाद किन्नौर, लाहुल- स्पीति, भरमौर और पांगी जनजातीय इलाके घोषित हुए थे, लेकिन इसके बाद गद्दी-गुज्जर जैसे समुदायों को जनजातीय घोषित किया गया जिसका सीधा लाभ कांगड़ा में बसे गद्दियों को मिल रहा है। एक विश्लेषण बताता है कि कांगड़ा के गद्दी समुदाय ने पिछले दो दशकों में अपनी श्रेष्ठ पहचान बनाते हुए न केवल आरक्षण के जरिए नौकरियों में विशिष्ट स्थान हासिल किया, बल्कि राजनीतिक रूप से भी इन्हें चंबा के बाहर कांगड़ा में खासी अहमियत मिली है। यही वजह है कि धर्मशाला और पालमपुर जैसे नगर निगमों में क्रमश: दो व एक सीट जनजातीय आरक्षण के तहत आती है।
भाजपा की वर्तमान सत्ता के दौरान धर्मशाला से संबंध रखने वाले गद्दी समुदाय से किशन कपूर सांसद, विशाल नेहरिया विधायक व ओंकार नेहरिया नगर निगम के मेयर चल रहे हैं। इन्हीं अर्थों में सिरमौर की लगभग आधी आबादी अगर ट्राइबल घोषित हो रही है, तो जिला के सियासी व सामाजिक समीकरण इससे भी बढक़र हाटी समुदाय की उपलब्धियों का अनुपात बदल देंगे। 'जय हाटी, जय माटी' के उद्घोष व संघर्ष के साथ बदला परिदृश्य, समाज की रगों को उत्साहित करता रहा है और इसके साथ एक सामाजिक एकता का निरूपण भी हुआ है। जाहिर है इससे हिमाचल में आरक्षण की पूर्व व्यवस्था तथा व्यस्तता की तासीर बदलेगी और अब तक लाभान्वित आबादी में पौने दो लाख नए सदस्य जुड़ जाएंगे। यह सामाजिक उत्थान की नई प्रतियोगिता व प्रतिस्पर्धा है जिसके चलते राष्ट्रीय व राज्यीय संसाधनों-अवसरों में आइंदा हाटी समाज भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले सकेगा, लेकिन ट्राइबल परिस्थितियों में हिमाचल के अन्य अनेक हिस्से भी अब कदमताल कर सकते हैं। शिमला व कांगड़ा के कई इलाकों जैसे डोडराक्वार तथा छोटा-बड़ा भंगाल के लोग भौगोलिक विषमताओं और सांस्कृतिक जीवन शैली के कारण भीषण परिस्थितियों से जूझ रहे हैं। हाटी समुदाय के लंबे संघर्ष व सामाजिक एकजुटता से ट्राइबल घोषित होने की मुहिम का अनुसरण हम कई अन्य क्षेत्रों में देख सकते हैं। देश भर की एससी और एसटी की कुल 25 प्रतिशत आबादी के आधार पर लोकसभा व राज्य विधानसभाओं की सीटों के लिए आरक्षण प्राप्त है। जनजातीय क्षेत्रों के आधार पर आरक्षित 47 संसदीय क्षेत्र अहम हैं। ऐसे में अब करीब सात लाख आबादी को जनजातीय दर्जा मिलने के आधार पर हिमाचल में अलग से पांचवीं लोकसभा सीट को एसटी आरक्षण मिलना चाहिए। लक्षद्वीप की मात्र पचास हजार आबादी को ट्राइबल संसदीय सीट का 1957 से आरक्षण प्राप्त है, तो अब हिमाचल में अलग से ट्राइबल संसदीय सीट का परिसीमन होना चाहिए। बहरहाल 2014 के मुकाबले 2019 के संसदीय चुनावों में भाजपा ने देश की 47 ट्राइबल संसदीय सीटों पर आधे से ज्यादा कब्जा जमा कर अपनी स्थिति मजबूत की है और इसी आधार पर विधानसभा चुनाव के लिए यह फैसला अहम व निर्णायक हो सकता है।
Rani Sahu

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