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स्वामी अवधेशानंद गिरि] प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उपलब्धियों में शुक्रवार को एक उपलब्धि और जुड़ गई। उनके द्वारा भारत की आध्यात्मिक चेतना के केंद्र बिंदु हिमालय पर्वत में अवस्थित श्री केदारनाथ धाम में भगवान आदि शंकराचार्य की समाधि एवं भव्य-दिव्य प्रतिमा प्रतिष्ठित की गई। सनातन संस्कृति के लिए आदि शंकराचार्य जी का योगदान अमूल्य रहा है। वह हिंदू धर्म-संस्कृति और उसमें अंतर्निहित दिव्य जीवन मूल्यों को युगानुकूल रूप से प्रस्तुत और पुन:परिभाषित करने वाले भाष्यकार थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत यूं तो हमारे राष्ट्र में निर्वाचित सरकारों द्वारा विकास के अनेक कार्य संपादित हुए हैं, किंतु प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह आध्यात्मिक पुरुषार्थ विशेष रूप से प्रशंसनीय है। भगवतपाद आचार्य शंकर भारतीय आध्यात्मिक जगत की नाभिकीय सत्ता हैं। उन्होंने 32 वर्ष की अल्पायु में ही वेदादि समस्त धर्म शास्त्रों का मंथन कर उनसे जिस ज्ञानामृत की निष्पत्ति की, वह मनुष्य मात्र के लिए अनुकरणीय है। धर्म-संस्कृति के रक्षणार्थ उन्होंने जो श्रेष्ठ कार्य संपादित किए, वे किसी सामान्य मनुष्य की सामथ्र्य, यहां तक कि परिकल्पनाओं की परिधि से भी बाहर हैं। आचार्य शंकर जैसी प्रखर प्रतिभा, पांडित्य, प्रचंड-पुरुषार्थ, त्याग और योगैश्वर्य अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलता। संभवत: इसीलिए हम सनातन हिंदू मतावलंबी उन्हें शिव का अवतार मानते हैं। हमारी यह मान्यता कपोल कल्पना नहीं है, अपितु शास्त्रों द्वारा प्रमाणित है।