सम्पादकीय

आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट की अस्वीकृति के बावजूद जगन मोहन रेड्डी की तीन राजधानियों वाली राय में दम दिखता है

Rani Sahu
5 March 2022 1:29 PM GMT
आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट की अस्वीकृति के बावजूद जगन मोहन रेड्डी की तीन राजधानियों वाली राय में दम दिखता है
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आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट (Andhra Pradesh High Court) द्वारा वाय एस जगन मोहन रेड्डी (Jagan Mohan Reddy) सरकार की तीन-राजधानियों वाली योजना को खारिज करने और अमरावती (Amravati) को ही राजधानी बनाने के आदेश देने से, प्रगतिशील कदमों झटका लगेगा

के वी रमेश

आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट (Andhra Pradesh High Court) द्वारा वाय एस जगन मोहन रेड्डी (Jagan Mohan Reddy) सरकार की तीन-राजधानियों वाली योजना को खारिज करने और अमरावती (Amravati) को ही राजधानी बनाने के आदेश देने से, प्रगतिशील कदमों झटका लगेगा. कोई भी राजधानी सरकार का मुख्य केंद्र होती है, जहां सरकार बैठती है. प्राचीन समय में कोई राजा या शासक वर्ग, भूमि, जल, उपजाऊ मिट्टी और प्राकृतिक रूप से सुरक्षित स्थान, जिसे किलेबंदी के जरिए बचाया भी जा सकता था, को बतौर राजधानी चुना जाता था.
आधुनिक राजधानियां, पुराने तौर तरीकों का विकसित रूप ही होती हैं. बीती सदियों के दौरान नए समाजों के विकास के साथ एक राजधानी सत्ता के केंद्र का संकेत बन गई. राजधानियां अब बड़े शहर के रूप में तब्दील हो चुकी है, जहां बड़ी संपत्तियां केंद्रित होती हैं और बड़े-बड़े उद्योग होते हैं. इससे ये दूसरे क्षेत्र, राज्य या देश से दूर हो जाती हैं और इससे दूरदराज के इलाकों में असमानता पैदा होती है, साथ ही इन क्षेत्रों पर राज्य का अधिक ध्यान नहीं जा पाता.
जगन मोहन रेड्डी की योजना के अपने फायदे थे
जब मुख्यमंत्री बनने के तत्काल बाद जगन ने तीन राजधानियों की योजना पेश की तो इसे गलत तरीके से देखा गया और नाराजगी भी व्यक्त की गई. पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने भी इस पर नाराजगी जताई. 2009 में तेलंगाना के निर्माण के लिए आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद हैदराबाद, बतौर राजधानी तेलंगाना के हिस्से में चला गया. इसके बाद, चंद्रबाबू नायडू ने एक बड़ी योजना तैयार करते हुए अमरावती के नाम से एक नई राजधानी बनाने का काम शुरू किया. इसके लिए गुंटूर और कृष्णा जिलों के 29 गांवों में जमीन का अधिग्रहण किया गया. स्थायी राजधानी के लिए मास्टर प्लान तैयार करना एक शानदार अवधारणा थी. लेकिन आलोचकों ने यह शिकायत की कि चंद्रबाबू और उनके टीडीपी नेताओं ने इन इलाकों में हजारों एकड़ जमीन खरीद लिया था और यहां राजधानी की योजना बनाकर करोड़ों का मुनाफा कमाने के फिराक में हैं.
इसके बाद भाग्य ने अपना खेल दिखाया और चंद्रबाबू का राजनीतिक किस्मत फूट गई और अमरावती को राजधानी बनाने का उनका सपना धूल में मिल गया. यह बदला लेने की इच्छा ही थी जिसकी वजह से जगन ने तीन राजधानियों का प्रस्ताव पेश किया और अमरावती को खेल से बाहर कर दिया. जगन की योजना के अनुसार, अमरावती को केवल राज्य विधायी राजधानी बनाया जाना था, जहां केवल राज्य की विधानसभा होती. उत्तरी इलाके में स्थिति विशाखापटनम को कार्यकारी राजधानी बनाया जाता, जहां सरकार बैठती. जबकि करनूल न्यायिक राजधानी होती, जहां राज्य का हाईकोर्ट स्थित होता. इस प्रकार, आंध्र प्रदेश के तीनों क्षेत्रों, उत्तर में सीमांध्र, राज्य का तटीय इलाका और दक्षिण में रायलसीमा में अलग-अलग राजधानियां होतीं, जो लोगों की जरूरतों को पूरा करतीं.
भले ही इसका मकसद कुछ भी हो लेकिन जगन की योजना के अपने फायदे थे. यह तीनों क्षेत्रों को महत्व देने और सरकार में उनकी हिस्सेदारी देने का प्रयास था. इस तरह की योजना को दूसरे बड़े राज्यों में भी अपनाया जा सकता है, जहां अलगाववादी प्रवृतियां भीतर ही भीतर मौजूद होती हैं. भारत में बड़े राज्य, जिनकी शक्ति और धन उनकी राजधानियों में केंद्रित होता है, दूरदराज के इलाकों की उपेक्षा करते हैं, इससे एकतरफा महत्वाकांक्षाओं को बल मिलता है.
राज्यों में कई राजधानी बनाने से क्षेत्रीय असमानता को दूर किया जा सकता है
भारत में कई राज्यों में ऐसे इलाके हैं जिनकी विशिष्ट सामाजिक-सांस्कृतिक और भाषाई विशेषताएं है. यहां विकास, नौकरियों और संपत्ति निर्माण में काफी असमानताएं देखी जाती हैं. राज्यों की राजधानियों से दूर होने के कारण इनमें से कुछ क्षेत्र विकास से वंचित होते हैं. यहां प्रशासनिक कमी देखी जाती है और इनकी उचित शिकायतें भी होती हैं. कनार्टक के उत्तरी इलाके, उत्तर प्रदेश के पूर्वी यूपी, महाराष्ट्र के विदर्भ में हमेशा अलगाववाद की मशालें जलती रहती हैं, हाल ही में तमिलनाडु में कोंगू नाडु की मांग देखी गई.
इन इलाकों में नया या अतिरिक्त राजधानी बनाना बेहतर विकल्प हो सकता है और इससे क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने में मदद मिलेगी. उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य जहां प्रबंधन में करने में मुश्किल होती है वहां अंबेडकरनगर या सुल्तानपुर जैसे पिछड़े पूर्वी इलाकों के लिए नई राजधानी बनाई जा सकती है. यहां तक कि पश्चिमी यूपी में मेरठ में भी राजधानी बनाई जा सकती है. इसी तरह कर्नाटक भी हुब्बल्ली-धारवाड़ या बेलगवी में अपनी दूसरी राजधानी बना सकता है. तमिलनाडु में भी कोवई (Coimbatore) में अपनी दूसरी राजधानी बना सकता है और नागुपर में भी महाराष्ट्र की एक और राजधानी बनाई जा सकती है.
कई राजधानी होने पर, प्रत्येक राजधानी में हर साल विधानसभा का एक सत्र आयोजित किया जा सकता है और वहां हाई कोर्ट की एक बेंच स्थापित की जा सकती है, ताकि सामान्य लोगों के लिए कानूनी खर्च को कम किया जा सके. इसके अलावा, गैर-जरूरी सरकारी विभागों को नई राजधानी में शिफ्ट किया जा सकता है. राज्यों में कई राजधानी बनाने से क्षेत्रीय असमानता को दूर किया जा सकता है और इससे क्षेत्रीय निवेश और इंफ्रा विकास को बल मिलेगा, साथ ही इससे विभिन्न सरकारी कामकाज और कोर्ट जाने के लिए राजधानी जाने के लिए लोगों के खर्च को कम किया जा सकता है. देखा जाए तो यह एक उपयोगी विचार है. अपनी तमाम कमियों को दूर करने के शायद जगन ने यह योजना बनाई हो. हालांकि, अफसोस की बात है कि हाई कोर्ट ने इसे दूसरे नजरिए से देखा.
Rani Sahu

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