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यह सिर्फ अपराध नहीं है…मज़हबी नफरत का उन्मादी वहशीपन नहीं है…यह तालिबानी आतंकवाद का प्रतिरूप भी नहीं है…धर्मान्धता भी नहीं है…यह सिर्फ दरिंदगी है, राक्षसी फितरत है। इसके साथ जघन्य, बर्बर, वीभत्स, निर्मम सरीखे कितने भी शब्द जोड़े जा सकते हैं
By: divyahimachal
यह सिर्फ अपराध नहीं है…मज़हबी नफरत का उन्मादी वहशीपन नहीं है…यह तालिबानी आतंकवाद का प्रतिरूप भी नहीं है…धर्मान्धता भी नहीं है…यह सिर्फ दरिंदगी है, राक्षसी फितरत है। इसके साथ जघन्य, बर्बर, वीभत्स, निर्मम सरीखे कितने भी शब्द जोड़े जा सकते हैं। वे भी इस दानवी प्रवृत्ति की व्याख्या करने में असमर्थ होंगे। दिन-दहाड़े और भरे-पूरे बाज़ार में एक जि़ंदा व्यक्ति का गला रेत डाला। सिर काट कर धड़ से अलग कर दिया। यह कौन-सा समाज और परिवेश है? कौन सुरक्षित है यहां? ये हत्यारे कौन हैं? क्या ऐसे दरिंदे भी पैगंबर के अनुयायी हो सकते हैं? किसी राजनीतिक शख्स ने पैगंबर को अपमानित किया था, उसकी भर्त्सना पूरे देश ही नहीं, दुनिया ने भी की थी। उस शख्स के खिलाफ आपराधिक केस दर्ज हैं। पुलिस अपना काम कर रही है। उस शख्स का भी सरकलम नहीं किया जा सकता, क्योंकि रसूल और नबी के इस्लाम में ऐसी दरिंदगी की कोई जगह नहीं है। पैगंबर के अपमान का बदला लेने वाले ये हत्यारे कौन हैं?
क्या भारत का लोकतंत्र इतना कमज़ोर पड़ गया है कि हत्यारे सरेआम राक्षसी करते घूम रहे हैं! हत्यारों ने बाकायदा वीडियो जारी कर प्रधानमंत्री मोदी को भी धमकी दी है कि खंजर उन तक भी पहुंच सकता है! मोदी सुन ले! आग तुमने लगाई है, हम उसे बुझाएंगे। बहरहाल यह तो पराकाष्ठा है। अभी तक प्रतिक्रिया में पत्थरबाजी, आगजनी और हिंसा की जा रही थी और वह भी उप्र में ज्यादा दिखाई दे रही थी, लेकिन सांप्रदायिक नफरत, उन्माद और बर्बरता राजस्थान सरीखे राज्य में भी फैल रही है! करौली और जोधपुर के तनाव अभी हम भूले भी नहीं थे कि झीलों के खूबसूरत शहर उदयपुर में दो हत्यारों ने एक मासूम दर्जी का सरकलम करके मौत के घाट उतार दिया। उसने तो पैगंबर साहेब का अपमान नहीं किया था। क्या भारत में सांप्रदायिक न्याय अब इस तरह किया जाएगा? कमाल है कि बीती 17 जून को वीडियो जारी कर एक हत्यारे ने हत्या का ऐलान किया था और 11 दिन बाद सरेआम हत्या कर भी दी गई। यहां दो सवाल महत्त्वपूर्ण हैं। सवाल है कि ऐसे वीडियो सोशल मीडिया पर प्रसारित क्यों किए जाते हैं? प्रधानमंत्री को धमकी देने वाले वीडियो भी जारी होते रहेंगे क्या? यह अभिव्यक्ति की कौन-सी आज़ादी है? क्या ऐसे वीडियो को रोकने या संपादित करने की कोई भी नीति नहीं है? ऐसी हरकतों पर भारत सरकार क्या सोचती रहती है? क्या सोशल मीडिया बिल्कुल बेलगाम, निरंकुश है?
क्या मजबूरी है भारत सरकार की? सवाल हर बार, हरेक हादसे या घटना के बाद, यही उठता है कि पुलिस कर क्या रही थी? जब पहले धमकी सार्वजनिक की जा चुकी थी और दर्जी थाने तक पहुंचा था गुहार लेकर, तो पुलिस ने संज्ञान लेकर कार्रवाई क्यों नहीं की? पुलिस हत्यारों को जानती थी, नहीं तो दरिंदगी के कुछ घंटों बाद ही, उदयपुर से कुछ किलोमीटर दूर राजसमंद में, हत्यारों को कैसे दबोच लिया गया? क्या पुलिस के पास कोई खुफिया लीड है कि इन हत्यारों का आईएसआईएस, तालिबान या किसी अन्य आतंकवादी गुट से कोई संबंध, संपर्क है अथवा नहीं? बहरहाल यह अच्छा संकेत है कि भाजपा से कांग्रेस तक, 'आप' से एमआईएम तक, नेताओं और मुख्यमंत्रियों ने इस दरिंदगी को 'कायरता', 'नपुंसकता' करार दिया है और घोर भर्त्सना की है। घटना का सांप्रदायिक विस्तार कम हो, लिहाजा पूरे राजस्थान में 24 घंटे के लिए इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गईं। उदयपुर के कई थाना-क्षेत्रों में कर्फ्यू चस्पा किया गया और धारा 144 एक महीने तक जारी रहेगी। यह कारगर शासन का सबूत है। हत्यारे पकड़ लिए गए हैं, तो यथाशीघ्र न्यायिक फैसला भी सुनिश्चित कराया जाना चाहिए। सरकार कोशिश करे कि ऐसे हत्यारों को फांसी पर जरूर लटकाया जाए। अहिंसक मुद्राएं त्यागनी पड़ेंगी, तभी ऐसी दरिंदगी से लड़ा जा सकता है। हम कानूनन अतिवाद की बात नहीं कर रहे हैं। लोकतंत्र का मतलब शराफत या भोलापन नहीं है। लोकतंत्र में उसकी बुनियादी ईकाई नागरिक की जान जरूर सुरक्षित रहनी चााहिए।

Rani Sahu
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