सम्पादकीय

यह बड़ी उपलब्धि है

Gulabi
30 Nov 2021 4:30 AM GMT
यह बड़ी उपलब्धि है
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राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों से कुल मिला कर भारत के लिए चिंताजनक खबरें सामने आईं
देश की कुल प्रजनन दर घटकर 2 हो गई है। 2016 में यह दर 2.2 थी। इसका मतलब है कि देश की जनसंख्या की वृद्धि दर स्थिर होने का संकेत है। हालांकि आदर्श दर 2.1 को माना जाता है, लेकिन अभी देश की आबादी का जो स्तर है, उसे देखते हुए 2 की दर भी संतोष देने वाली है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) के आंकड़ों से कुल मिला कर भारत के लिए चिंताजनक खबरें सामने आईं। जब देश में कुपोष ग्रस्त बच्चों की कुल संख्या बढ़ रही हो और एनिमिया से पीड़ित महिलाओं की संख्या ज्यादा हो, तो जाहिर है सवाल यही उठेगा कि आखिर देश कहां भटक गया है? कुपोषण की स्थिति पहले भी अच्छी नहीं थी। लेकिन आजादी के बाद कुल रुझान इसमें गिरावट का था। जबकि ताजा आंकड़ों ने इसमें वृद्धि के संकेत दिए हैँ। स्पष्टतः विकास संबंधी नीति में कहीं बड़ा भटकाव आया है। बहरहाल, इस सर्वे रिपोर्ट से एक अच्छी खबर सामने आई। वह यह कि देश की कुल प्रजनन दर (टीएफआर) घटकर दो हो गई है। 2016 में यह दर 2.2 थी। इसका मतलब है कि देश की जनसंख्या की वृद्धि दर स्थिर होने का संकेत है। हालांकि आदर्श दर 2.1 को माना जाता है, लेकिन अभी देश की आबादी का जो स्तर है, उसे देखते हुए 2 की दर भी संतोष देने वाली है। गौरतलब है कि आबादी नियंत्रित करने की ये उपलब्धि बिना जोर-जबर्दस्ती के हासिल की गई है।
इस सफलता ने यह बताया है कि सही जनसंख्या नीति विकास, शिक्षा का प्रसार और महिला सशक्तीकरण पर जोर डालना है। इन्हीं उपायों से भारत ने यह कामयाबी हासिल की है। सर्वेक्षण से पता चला है कि मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड और उत्तर प्रदेश को छोड़कर सभी फेज-2 राज्यों ने प्रजनन क्षमता का रिप्लेसमेंट रेट (2.1) को हासिल कर लिया है। गर्भनिरोधक प्रसार दर (सीपीआर) लगभग सभी चरण-2 राज्यों-केंद्र शासित प्रदेशों में 54 प्रतिशत से बढ़कर 67 प्रतिशत हो गई है। लगभग सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में गर्भ निरोधकों के आधुनिक तरीकों का उपयोग भी बढ़ा है। एनएफएचएस-5 सर्वेक्षण देश के 707 जिलों के लगभग 6.1 लाख सैंपल परिवारों में किया गया। इससे जिला स्तर तक अलग-अलग अनुमान लगाना संभव हुआ है। सर्वे में दावा किया गया है कि बच्चों के पोषण में प्रतिशत के लिहाज से मामूली सुधार हुआ है। लेकिन आबादी बढ़ने के साथ कुल कुपोषण ग्रस्त बच्चों की संख्या बढ़ी है। इसलिए अब इस समस्या पर सघन ध्यान दिया जाना चाहिए। बच्चों को पौष्टिक भोजन मिले, इसके लिए आंगनबाड़ी जैसे कार्यक्रमों के लिए बजट बढ़ाने की जरूरत है। मिड-डे मील जैसी योजनाओं में नई जान फूंकी जानी चाहिए। कोरोना महामारी के बाद ऐसे कदम उठाना और जरूरी हो गया है।
नया इण्डिया
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