सम्पादकीय

केजरीवाल के लिए केरल में दिल्ली-पंजाब मॉडल को दोहराना बड़ी चुनौती साबित होगी

Gulabi Jagat
22 May 2022 4:53 PM GMT
केजरीवाल के लिए केरल में दिल्ली-पंजाब मॉडल को दोहराना बड़ी चुनौती साबित होगी
x
दिलचस्प है कि यह सुनकर यूरोपियन सिवलाइज़िंग मिशन के बारे में रूडयार्ड किपलिंग द्वारा दिए गए बयान की याद आ जाती है
– डॉ. जे प्रभाष : आखिरकार दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) राज्य की राजनीति को भ्रष्टाचार से मुक्त करने और इसके वेलफेयर प्रोग्राम को सरल, कारगर और मजबूत करने के लिए अपनी झाड़ू लेकर केरल आए. उनका कहना है कि वह केरल में दिल्ली-पंजाब मॉडल को दोहराना चाहते हैं. दिलचस्प है कि यह सुनकर यूरोपियन सिवलाइज़िंग मिशन (civilising mission) के बारे में रूडयार्ड किपलिंग (Rudyard Kipling) द्वारा दिए गए बयान की याद आ जाती है! केजरीवाल ने इस बात की घोषणा कोच्चि के निकट किजक्कमबलम (Kizhakkambalam) में आयोजित रैली में की, जो ट्वेंटी-20 पार्टी की राजनीतिक गतिविधियों का गढ़ है और बेशक साबू एम. जैकब (Sabu M. Jacob) इस पार्टी के नेता हैं. गौरतलब है कि KITEX समूह की कंपनियों के निदेशक के तौर पर मूल रूप से साबू जैकब एक कॉर्पोरेट लीडर से राजनेता बने हैं. दोनों नेताओं ने मिलकर यह घोषणा की और कहा कि उन्होंने एक नया राजनीतिक संगठन पीपुल्स वेलफेयर एलायंस (PWA) बनाने का फैसला किया है. वर्तमान परिस्थितियों में यह चौथा राजनीतिक मोर्चा है जो राज्य में राजनीतिक जमीन की तलाश में है, अन्य तीन लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (LDF), यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (UDF) और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) हैं.
दो 'गैर-राजनीतिक' नेताओं का राजनीतिक गठबंधन बनाना विरोधाभासी
दिलचस्प है कि आम आदमी पार्टी के नेता इतना गुपचुप तरीके से स्वीकार करते थे कि उन्हें 'राजनीति के बारे में कुछ भी पता नहीं है और जो कुछ भी हुआ, वह भगवान की कृपा से हुआ'. ऐसे समाज में जहां राजनीति की जड़ें गहरी हैं, दो 'गैर-राजनीतिक' नेताओं का राजनीतिक गठबंधन बनाना विरोधाभासी लगता है. केजरीवाल के किजक्कमबलम में दिए गए भाषण से दो महत्वपूर्ण बिंदु निकलते हैं: आप (AAP) अपने राजनीतिक अश्वमेध (ashvamedha) के लिए बुनियादी तौर पर ट्वेंटी-20 पर निर्भर है; लोगों की ख़ुशहाली और भ्रष्टाचार की रोकथाम चारा (fodder) बनने जा रहा है जो उनके राजनीतिक अश्व यानि घोड़े को बढ़ावा देगा. साथ ही इन बातों से यह स्पष्ट हो जाता है कि अरविंद केजरीवाल और साबू जैकब दोनों अपने 'गैर-राजनीति' चेहरे को अपनी राजनीतिक दौलत मानते हैं. यह उनकी महत्वाकांक्षा में किस हद तक मदद करेगा, यह मिलियन डॉलर का सवाल है. क्या केरल उनके राजनीतिक योजना को विफल करेगा?
यह बिना कहे समझने वाली बात है कि ट्वेंटी-20 सीएसआर (CSR) राजनीति यानि कॉर्पोरेट सोशल रिस्पान्सबिलिटी (Corporate Social Responsibility) की राजनीति में माहिर है. कॉर्पोरेट शैली में राजनीति चलाने वाले बिज़नेस कारपोरेशन का यह सबसे अच्छा उदाहरण है. इसमें न तो कोई विचारधारा से जुड़ा कंटेंट है और न ही केरल के भविष्य के विकास के बारे में कोई खाका तैयार किया गया है. मुख़्तसर तौर पर, साबू जैकब की राजनीति पूरी तरह से राजनीतिक विचारधारा की कमी और कभी-कभी अपने राजनीति विरोधी हमलों के लिए भी जानी जाती है. इसके अलावा, एर्नाकुलम जिले में कुछ स्थानीय निकायों की सीमाओं से बाहर केरल में कहीं भी ट्वेंटी-20 का प्रभाव नहीं है. कहीं और इसकी संगठनात्मक उपस्थिति भी नहीं है.
केजरीवाल की ट्वेंटी-20 पर निर्भरता
इन बातों को देखते हुए, यह संदेहास्पद है कि क्या केजरीवाल की ट्वेंटी-20 पर निर्भरता निकट भविष्य में उनके लिए अच्छी स्थिति होगी. इसके अलावा, जहां तक केरल के लोगों का सवाल है, आम आदमी पार्टी अपने आप में दूर क्षितिज (horizon) में एक छोटी सी बिंदी है. हालांकि मलयाली पूरे देश में और दुनिया भर में बड़े पैमाने पर फैले हुए हैं, लेकिन उनकी राजनीति हमेशा स्थानीय रहती है और सीखने या नए प्रयोग करने में यकीन नहीं करती है, यानि वे शायद ही दूसरों से राजनीतिक सबक लेते हैं. इसका मतलब यह है कि आम आदमी पार्टी ने दिल्ली या पंजाब में जो किया है, वह केरलवासियों को बहुत कम राजनीतिक अपील करेगा.
किसी बात के लिए देश के इस हिस्से में कल्याणकारी उपायों की कमी की समस्या नहीं है. सच है कि यहां की रियलिटी उल्टी दिशा की तरफ इशारा करती है. भारतीय राज्यों में कुछ भी हो, लेकिन केरल में ऐसे उपायों की संख्या सबसे अधिक है, जो अपने बजटीय आवंटन का अच्छा खासा हिस्सा जनहित की योजनाओं पर किए जाने वाले खर्च को पूरा करने के लिए निर्धारित करते हैं. इतिहास बताता है कि एलडीएफ (LDF) और यूडीएफ (UDF) दोनों इसमें मजे करते हैं. हालांकि केरल में भ्रष्टाचार की उपस्थिति से इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन यह यहां एक गंभीर मुद्दा नहीं है क्योंकि यह कई अन्य राज्यों में है. इसलिए 'वेलफेयर-करप्शन पॉलिटिक्स' आम आदमी पार्टी को बेहद ध्रुवीकृत राज्य की राजनीति में पैर जमाने में मदद नहीं मिल पाएगी.
केरल भारत में सबसे अधिक ऋणग्रस्त (indebted) राज्यों में से एक
यह हमें केरल के असली मुद्दे पर ले जाता है, जो है अपने वित्त का कुशलतापूर्वक प्रबंधन करने के साथ उन उपायों को जारी रखना जो गरीबों और जरूरतमंदों की हालत सुधारने के लिए जरुरी हैं. याद रखें कि केरल भारत में सबसे अधिक ऋणग्रस्त (indebted) राज्यों में से एक है. इस लिहाज से, सत्ता की चाह रखने वाले किसी भी दल को 'कर्ज के बाद जीवन' के बारे में सोचना होगा. लोगों को वास्तव में जिस चीज की जरूरत है, वह पेंशन नहीं है जो उन्हें केवल निरर्थक जीवन गुजारने में मदद करती है, बल्कि वास्तविक आय है जो उन्हें सार्थक जीवन जीने में मदद करती है. और इसके लिए युवाओं को लाभकारी रोजगार, रोजगार योग्य कौशल और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की आवश्यकता है. कहने की जरूरत नहीं है कि रोजगार लोगों की वेलफेयर फंड पर निर्भरता को कम करता है और यह बदले में राज्य को अपना राजस्व व्यय (revenue expenditure) कम करने में बड़ी राहत देता है. इन मुद्दों पर केजरीवाल का क्या कहना है?
केरल में इकोलॉजिकल मुद्दे गंभीर
इसके अलावा सिल्वरलाइन (SilverLine) हो या नहीं, केरल इकोलॉजिकल (ecological) तबाही के कगार पर है. चाहे मानव-पशु संघर्ष (man-animal conflict) हो या संक्रामक रोगों का प्रसार या बार-बार बाढ़ और मिट्टी के कटाव जैसी आपदाओं के मामले, राज्य में इकोलॉजिकल मुद्दे गंभीर हैं. इससे सरकारी और निजी धन की बर्बादी होती है. जैसा कि प्रसिद्ध लेखक मार्गरेट एटवुड (Margaret Atwood) ने कभी कहा था: अर्थव्यवस्था पर्यावरण की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है. इस तरह के मुद्दों को संबोधित करने से लोगों को लॉन्ग-टर्म वित्तीय लाभ होगा. क्या आम आदमी पार्टी ने इस पर अपना इरादा जताया है?
फिर से यदि हम आम आदमी पार्टी के इतिहास को देखते हैं, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि इस पार्टी ने उन राज्यों में बहुत अधिक सफलता प्राप्त की है जहां उसकी लंबे समय से उपस्थिति है और/या जहां अन्य पोलिटिकल एक्टर्स बदनाम हैं. पंजाब के साथ-साथ दिल्ली में भी ऐसा ही है. हालांकि, केरल में राजनीतिक वास्तविकता इससे बिल्कुल अलग है. अभी तक संगठित वामपंथ पूरे जोरों पर चल रहा है और यूडीएफ को राज्य की राजनीति से हटाने का समय अभी नहीं आया है. दूसरी ओर भाजपा की उपस्थिति, हालांकि बहुत कम है, अभी भी दिखने भर के लिए है. इसका मतलब है कि चौथे एक्टर के लिए बहुत कम जगह है, विशेष रूप से उनके लिए जिनके पास बताने योग्य कोई मजबूत संगठनात्मक उपस्थिति नहीं है.
क्या केजरीवाल 'अनिच्छुक धर्मनिरपेक्षतावादी' हैं
इसके साथ यह भी तथ्य है कि कई लोग केजरीवाल को 'अनिच्छुक धर्मनिरपेक्षतावादी' (reluctant secularist) के रूप में देखते हैं. उन्हें अक्सर हिंदू सांप्रदायिकता से संबंधित मुद्दों पर सॉफ्ट पेडलिंग और अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए जाना जाता है. और ऐसे राज्य में जहां मुस्लिम और ईसाई आबादी का लगभग आधा हिस्सा हैं, आम आदमी पार्टी की राजनीतिक संभावनाओं पर इसका प्रभाव पड़ेगा. पार्टी और उसके नेतृत्व के लिए इस तरह के मुद्दों पर स्पष्ट रूप से अपना रुख जाहिर करने का समय आ गया है.
लेनिन का एक प्रसिद्ध कथन है कि 'लोग अपने पैरों से वोट करते हैं'. इसका मतलब बहुत स्पष्ट है. राजनीति में जीत का एकमात्र पक्का नुस्खा लोगों को उनकी चिंताओं के इर्द-गिर्द लामबंद करना है. पीडब्ल्यूए (PWA) जैसे नए गठबंधन के लिए यह सबसे बड़ी बाधा होगी.
यह सच है कि राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं है और यह कभी भी बदल सकता है. इसका मतलब यह है कि जब स्थिति वास्तव में कठिन हो जाती है, तो यह असंतोष और गुस्से को भड़काती है, जिससे मतदाताओं को किसी भी विकल्प की तलाश करने के लिए मजबूर होना पड़ता है जैसा कि राष्ट्रीय स्तर पर 1977 में नेशनल इमरजेंसी के बाद हुआ था. लेकिन जहां तक समकालीन केरल का संबंध है, यह बहुत दूर की बात है. यहां के लोगों को अब न तो किसी मुद्दे पर भड़कने की कोई समस्या है और न ही इससे कि ट्वेंटी-20 के साथ आप (AAP) गठबंधन का फायदा उठाने में सक्षम है, निकट भविष्य में ऐसा कुछ होना चाहिए.
Next Story