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ये एटीट्यूड ही है जिसे विराट कोहली की शख़्सियत में लोग पसंद करते हैं और उन्हें कामयाब भी बनाती रही है
(किंग कोहली बंदूक़ वाली फ़ायर में खोए रहे और बीसीसीआई तीली वाली आग सुलगाता रहा!)
आपने पुष्पा मूवी देखी है? नहीं देखी है तो देख लीजिए. तेलुगु फ़िल्म है लेकिन हिन्दी सहित कई भाषाओं में डब हुई है और कोविड के इस दौर में भी बॉक्स ऑफिस और ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म पर धमाल मचाए हुए है. इस फ़िल्म का नायक "पुष्पा, आय हेट टियर्स" वाला रोमांटिक और चॉकलेटी नहीं है बल्कि खुद्दार और ख़ूँख़ार है. फ़िल्म में नायक अल्लू अर्जुन का डायलॉग सोशल मीडिया पर ज़बरदस्त वायरल हो रखा है-"पुष्पा…पुष्पराज…पुष्पा नाम सुनकर फ्लावर समझा है! फ़ायर है मय!! झुकेगा नहीं स्साला!!!"
डेविड वॉर्नर से लेकर रविंद्र जडेजा तक, क्या ख़ास और क्या आम, हर कोई इस पर मीम्स बना रहा है. श्रेयस तलपड़े अपनी आवाज़ से पुष्पा के एटीट्यूड को एक नई बुलंदी पर ले जाते हैं. पुष्पा का अंदाज़…उसका एटीट्यूड ही फ़िल्म की कामयाबी का सबसे बड़ा फ़ैक्टर है. इस मसाला मूवी में लोगों को सबसे ज़्यादा नायक का अंदाज़ा भा रहा है.
ये एटीट्यूड ही है जिसे विराट कोहली की शख़्सियत में लोग पसंद करते हैं और उन्हें कामयाब भी बनाती रही है. मगर दो साल पहले तक तक़रीबन हर 4 में से एक शतक बनाने रहे बल्लेबाज़ से उसका एटीट्यूड, उसका ग़ुरूर ही छीन लिया गया है. विराट कोहली पुष्पा की तरह बंदूक़ की फ़ायर की आवाज़ और एटीट्यूड में खोए रहे और इधर अंदर-अंदर बीसीसीआई तीली वाली आग सुलगाता रहा. आग की लपट बढ़ती गयी और जद में आकर विराट कप्तानी छोड़ते गए. पहले क्रिकेट के सबसे छोटे स्वरूप T20 की कप्तानी छोड़ी. उसके बाद बड़े ही नाटकीय और अपमानजनक तरीक़े से वनडे की कप्तानी छीन ली गयी और आख़िर में तंग आकर टेस्ट की कप्तानी भी छोड़ दी. ग़ुस्से में विराट ने सौवें टेस्ट का फ़ेयरवेल का बीसीसीआई का प्रस्ताव भी ठुकरा दिया. विराट को कप्तानी छोड़ना मंज़ूर था लेकिन "पुष्पा" की तरह झुकना गवारा नहीं हुआ. कहा जा रहा है कि बीसीसीआई के अध्यक्ष सौरव गांगुली विराट कोहली को कारण बताओ नोटिस देने पर अमादा थे. विराट ने ठाना "झुकेगा नहीं स्साला" और दक्षिण अफ़्रीका से लौटने के पहले ही टेस्ट की कप्तानी भी छोड़ दी. दुनिया में आज के दौर के सबसे प्रतिभाशाली बल्लेबाज़ों में शामिल खिलाड़ी को उसका अपना बोर्ड, अध्यक्ष और चयनकर्ता झूठा साबित करने पर तुला हो, तो उसके मनोबल और खेल पर असर पड़ना स्वाभाविक है.
दक्षिण अफ़्रीका के मैदान पर वो आक्रामकता नहीं नज़र आयी जो विराट के खेल और व्यक्तिगत में है. ख़ासकर वनडे सीरीज़ बिल्कुल फीकी रही और टीम का बुरी तरह वाइटवॉश हो गया. तीन में से दो मैचों में कोहली ने अर्धशतक भी बनाए. तीसरा मैच भारत जीत भी सकता था लेकिन हर क़ीमत पर, हर मैच जीतने की कोशिश करने वाला कप्तान और उसका जज़्बा नहीं था. वनडे सीरीज़ में विराट कोहली एक खिलाड़ी भर नज़र आए. अपने हिस्से का प्रदर्शन कर वापस पवेलियन में लौट आने वाला खिलाड़ी. कोहली रिव्यू के समय भी ज़्यादातर न्यूट्रल खड़े रहे.
सीरीज़ की कमेंट्री कर रहे सुनील गावस्कर और शॉन पॉलक कह रहे थे कि भारतीय टीम कुछ करने की बजाय चीजों के होने का इंतज़ार करती नज़र आयी. वेरॉन फिलेंडर को भारतीय खिलाड़ियों के कंधे झुके हुए लगे. न तो वे अतिरिक्त प्रयास कर रहे थे और न ही उनसे कोई करा रहा था. खिलाड़ियों के हाव-भाव और बॉडी लैंग्वेज में जीत के लिए भूख नज़र नहीं आयी.
कप्तान विराट कोहली की ऊर्जा और जोश खिलाड़ियों से उनका बेहतरीन निकलवा लेती थी.
भारत के सबसे और दुनिया के चौथे सबसे सफल कप्तान विराट कोहली ने केपटाऊन में बतौर कप्तान आख़िरी टेस्ट मैच खेला और उसी मैच में अंतिम बार उनकी "झुकेगा नहीं स्साला" वाली आक्रामकता दिखी. कोहली को तीसरे अंपायर के फैसले के खिलाफ़ स्टम्प माइक पर आकर भड़ास निकाली थी. दरअसल, दूसरी पारी में रविचंद्रन अश्विन की गेंद पर दक्षिण अफ्रीका के कप्तान डीन एल्गर डिफेंड करने की कोशिश में चूक गए और बॉल पैड पर जा लगी. फ़ील्ड अंपायर ने एल्गर को एलबीडब्ल्यू आउट करार दिया. एल्गर ने DRS की मांग की. गेंद डीन एल्गर के पैड पर घुटने से नीचे लगी थी. ऐसी परिस्थिति में खिलाड़ी का बचना लगभग नामुमकिन होता है, लेकिन बॉल ट्रैकिंग के हिसाब से गेंद स्टंप्स को मिस करती हुई विकेट के ऊपर से जा रही थी, जिसके चलते थर्ड अंपायर ने एल्गर को नॉट आउट दे दिया. विराट स्टंप माइक के पास पहुंच गए और जाकर कहा- "जब तुम्हारी टीम (दक्षिण अफ्रीका) गेंद चमकाती है, तो उन पर भी ध्यान दिया करो. सिर्फ विरोधियों पर नहीं. हमेशा लोगों को पकड़ने की कोशिश करते रहते हो." विराट कोहली ने ये बात साल 2018 में दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के बीच सीरीज़ में हुए सैंड-पेपर विवाद के संदर्भ में कही.
कई तथाकथित, ख़ासकर भारतीय विशेषज्ञों को कोहली की हरकत नागवार गुजरी लेकिन आज न सिर्फ़ भारतीय टीम बल्कि विश्व क्रिकेट में कोहली की इसी आक्रामकता की कमी महसूस हो रही है.
सुनील गावस्कर के कैरेबियन कैलिप्सो, कपिल देव के विश्व कप और सचिन तेंदुलकर के डेज़र्ट स्टॉर्म से भारतीय क्रिकेट की पहचान बनी. सौरव गांगुली ने ऑस्ट्रेलिया के फ़ाइनल फ्रांटियर के मंसूबों को नेस्तनाबूद किया तो महेंद्र सिंह धोनी के मिडास टच से भारत विश्व क्रिकेट का सिरमौर बना. विराट कोहली ने अपनी आक्रामकता और एटीट्यूड से विरासत को आगे बढ़ाया और फ़िटनेस को अपने करियर का हॉलमार्क बनाया.
ऑस्ट्रेलिया के दिग्गज स्पिनर शेन वॉर्न को कोहली का एटीट्यूड इतना पसंद था कि वे उन्हें टेस्ट क्रिकेट का ब्रांड एंबेसडर मानते रहे हैं. उनका कहना है कि अगर टेस्ट क्रिकेट के ज़िंदा रखना है तो कोहली जैसे कैरेक्टर का मैदान पर रहना ज़रूरी है. इयन चैपल तो विराट को टेस्ट क्रिकेट का पोस्टर बॉय कहते हैं. एलन बॉर्डर भी विराट की "आख़िर तक हार नहीं मानने वाली ज़िद" से प्रभावित रहे हैं.
जिस तरह मूवी सफलता के लिए की मसाला का तड़का ज़रूरी होता है, उसी तरह टेस्ट क्रिकेट को मनोरंजक बनाए रखने के लिए कोहली जैसे किरदार चाहिए. सचमुच कोहली टेस्ट क्रिकेट का मसाला हैं. उनके बिना टेस्ट तो क्या वनडे सीरीज़ भी फीकी रही. केएल राहुल शानदार बल्लेबाज़ हैं और अभी उन्हें कप्तान के रूप में ख़ारिज या किसी से तुलना करना उनके साथ नाइंसाफ़ी होगी. वैसे भी वे अस्थायी कप्तान ही थे. पिछले 6 महीने से बीसीसीआई ये सारा प्रपंच रच रही थी विराट कोहली से कमान छीन कर रोहित शर्मा को देने के लिए. रोहित शर्मा विराट से कम प्रतिभाशाली खिलाड़ी नहीं हैं और मुँबई इंडियंस को 5 बार चैंपियन बनाकर अपनी कप्तानी की क़ाबिलियत साबित कर चुके हैं लेकिन कोहली के जिस तरीक़े से हटाया गया, सवाल उस पर है. रवि शास्त्री का कहना है कि कोहली कम से कम दो साल और टेस्ट की कप्तानी कर सकते थे और 50-60 जीत दिला सकते थे लेकिन कुछ लोगों को उनकी कामयाबी हज़म नहीं हुई. सात साल तक विराट कप्तान रहे और उनकी कप्तानी में भारत ने 68 में से 40 टेस्ट जीते.
कोहली के असमय हटने और हटाए जाने से भारतीय क्रिकेट मँझधार में है. टेस्ट में भारत तीसरे, वनडे में चौथे और T20 में दूसरे नंबर पर जा खिसका है. टेस्ट का कप्तान तय नहीं है और सीमित ओवर्स का कप्तान फ़िट नहीं है.
सवाल है कि क्या बीसीसीआई ही इन सब के लिए ज़िम्मेदार है. कप्तान विराट कोहली और कोच रवि शास्त्री ने भी कथित तौर पर अपने समय में खूब मनमानी की थी. कई खिलाड़ियों ने बोर्ड से बक़ायदा इनके रवैये के ख़िलाफ़ शिकायत भी दर्ज की थी. कोहली ने जिस तरह कोच अनिल कुंबले के खिलाफ बग़ावत की थी वो जंबो के समकालीन दादा को रास नहीं आया था. बाक़ी समझने-समझाने के लिए रह क्या गया!
संजय किशोर NDTV इंडिया के खेल डेस्क पर डिप्टी एडिटर हैं...
(डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार जनता से रिश्ता के नहीं हैं, तथा जनता से रिश्ता उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.)
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