सम्पादकीय

बहुत कठिन है डगर पनघट की

Subhi
3 Oct 2022 6:30 AM GMT
बहुत कठिन है डगर पनघट की
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कर्नाटक संगीत में भी यह प्रसंग खूब आता है। शास्त्रीय नृत्य शैलियों में कथक नृत्य तो जैसे इसी पृष्ठभूमि के इर्द-गिर्द थिरकता है। जिन्हें शास्त्रीय संगीत से लगाव नहीं, वे भी लता जी के 'मोहे पनघट पे नंदलाल छेड़ गयो रे' जैसे मीठे गीत सुनकर मुग्ध हो जाते हैं।

अरुणेंद्र नाथ वर्मा: कर्नाटक संगीत में भी यह प्रसंग खूब आता है। शास्त्रीय नृत्य शैलियों में कथक नृत्य तो जैसे इसी पृष्ठभूमि के इर्द-गिर्द थिरकता है। जिन्हें शास्त्रीय संगीत से लगाव नहीं, वे भी लता जी के 'मोहे पनघट पे नंदलाल छेड़ गयो रे' जैसे मीठे गीत सुनकर मुग्ध हो जाते हैं। इन सभी प्रसंगों में पनघट पर गोपियों की मटकी फोड़ने और ग्वालबालों का गौ चराने का वर्णन स्पष्ट करता है कि यमुना के तट वाला पनघट कार्यक्षेत्र तो महिलाओं का था, लेकिन उस पर व्यावहारिक आधिपत्य वंशी वाले और सखा ग्वाल बालों का ही था।

दरअसल, द्वापर युग से कलियुग तक के लंबे अंतराल में कहानी कुछ बदल गई। मध्ययुग में आते-आते शायद पनघट पर स्त्री जाति का कब्जा हो चुका था। इसकी गवाही किसी साधारण इंसान से नहीं, बल्कि बाकायदा अमीर खुसरो से मिलती है। गयासुद्दीन तुगलक के संरक्षण प्राप्त अमीर खुसरो शिकार खेलने गए, पर रास्ता भटक गए। बेचारे कड़कती धूप में प्यासे भटकते रहे। आखिरकार खुसरो की जान में जान आई जब एक कुएं पर पानी भरती औरतों को देखा। तुरंत घोड़े से उतर पड़े और पहुंच गए वहां प्यास बुझाने।

लेकिन उस ख्यातिप्राप्त कवि को पहचान कर पानी पिलाने के लिए पनघट की स्वामिनी पनिहारिनों ने शर्त रखी- पहले कविता सुनाओ। कविता के विषय पर वे एकमत नहीं थीं। किसी ने खीर पर कविता की फरमाइश की तो किसी ने चरखा पर। फिर तो कुत्ता और ढोल जैसे विषयों की भी फरमाइश हुई। प्यास से तड़पते कवि को और देर मंजूर नहीं थी। बड़ी चतुराई से कवि ने एक दोहे में ही चारों को संतुष्ट कर दिया। दोहा था- 'खीर पकाई जतन से, चरखा दिया चलाय, कुत्ता आकर खा गया, तू बैठी ढोल बजाय।'

हाल में अमीर खुसरो की यह मनोरंजक कथा एक बच्ची को सुनाया गया। लेकिन महानगर में पली-बढ़ी बच्ची ने सचमुच न तो कुआं देखा था, न किसी को कुएं से पानी खींचते। शास्त्रीय संगीत सीखते हुए छायानट राग की बंदिश में 'भरी गगरी मोरि ढुलकाई छैल' गाती गोपिका से 'मैं जमुना जल भरन जात' सुनकर उसने जान लिया था कि उन दिनों पानी भरने के लिए यमुना तट तक जाना पड़ता था।

यमुना तट को छोड़ कर अन्य किसी पनघट से वह अपरिचित थी। संगीत में उसकी गहरी रुचि की पृष्ठभूमि में कुएं वाले पनघट से परिचय कराने के लिए बच्ची को पूर्वी अंग का वह प्रसिद्ध दादरा सुनाया गया, जिसे सिद्धेश्वरी देवी और गिरिजा देवी ने गाकर अमर कर दिया है। 'कौन अलबेली-सी नार झमाझम पानी भरे री' शब्दों वाले इस दादरा में कुएं से पानी खींचती नायिका का नखशिख वर्णन है। उसके कांधे रसरिया है और सिर पर गगरिया। उसका रसिया उसे छेड़ने पनघट पर आता है, तभी पानी खींचने और सिर पर गगरिया रखने के कष्टसाध्य काम के बीच भी गीत के अनुसार वह 'मन ही मन मुस्काती' है।' कुएं से पानी खींचने का इतना सुंदर वर्णन सुनकर बच्ची खुश हो गई, लेकिन शब्दचित्र भला आंखिन देखी कैसे बन पाता!

पिछले दिनों सह्याद्रि पर्वत शृंखला की मनमोहक उपत्यकाओं में दादा-दादी के साथ सैर-सपाटा करते हुए बच्चियां नाशिक जिले के एक आदिवासी गांव के बाहर एक कुएं से पानी खींचती ग्राम्य वधुओं को देखकर उत्साह से उछल पड़ीं। सचमुच के पनघट पर कुएं से पानी भरती सजीव नायिकाएं, मिट्टी की एक मटकी की जगह सिर पर सधे हुए तीन-तीन चमकते हुए कलसे। सारा दृश्य उनके लिए चामत्कारिक था।

फिर तो कार से उतर कर उस पनघट पर जाना ही पड़ा। कुआं गहरा नहीं था, इसलिए गड़ारी पर लटकाने के बजाय वे हाथ से रस्सी सीधे लटका कर पानी खींच रही थीं। पानी के डोल की जगह चमड़े की छोटी मशक थी। बच्चियों के लिए यह सारा दृश्य जितना कौतुकमय था, स्वयं उतनी ही कौतुकमय थीं कुएं और पनघट से नितांत अपरिचित ये महानगरीय बालिकाएं उन सरल पनिहारिनों के लिए। बच्चियों को कुएं से पानी भरने का अवसर देकर उनके अनाड़ीपन पर वे खूब हंसीं। पानी खींचने, गगरी में भरने और गगरी सिर पर उठाने की प्रक्रिया पूरी करते-करते शहरी बच्चों को आटे-दाल और पानी, सबका भाव पता चल गया।

अचानक एक बच्ची को गोपिकाओं की भरी मटकी फोड़ने वाले गीत की पंक्तियां याद आ गर्इं। क्रिकेट कप्तान मिताली राज, घूंसेबाज, मैरी काम और दंगल लड़ने वाली गीता फोगाट की प्रशंसक बच्ची के मुंह से बेसाख्ता निकला- कभी खुद पानी की दो-तीन गगरियां भर कर सिर पर रखी होतीं तो कोई कभी राधा की गगरी न फोड़ता। मेरी गगरी पर कोई कंकर मार कर दिखाए!' बच्चे तो बच्चे होते हैं। कई बार अपनी मासूमियत में ऐसा कह जाते हैं, जो उन्हें ठीक लगता है!


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