सम्पादकीय

यह सही समय है कि अपनी गृहस्थी के केंद्र में परमात्मा को देखना शुरू कर दें

Rani Sahu
26 Nov 2021 6:29 PM GMT
यह सही समय है कि अपनी गृहस्थी के केंद्र में परमात्मा को देखना शुरू कर दें
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पारिवारिक जीवन की कश्ती जब डगमगाती है

पं. विजयशंकर मेहतापारिवारिक जीवन की कश्ती जब डगमगाती है तो किनारा उसी समय खो जाता है। चारों ओर निराशा का वातावरण छा जाता है। कोरोना का भय कमजोर पड़ने के बाद उत्सवों की शृंखला आई तो लोग उसमें व्यस्त हो गए। भीड़ सड़कों पर दौड़ पड़ी, बाजार भर गए। धीरे-धीरे वह माहौल भी खत्म हुआ। बंदिशें पूरी तरह हट गईं और पारिवारिक जिंदगी के कुछ अलग ही दृश्य सामने आने लगे। पिछले दिनों मैं कई ऐसे पारिवारिक सदस्यों से मिला जिनकी जिंदगी सुबह से लेकर रात तक अपनी चहारदीवारी के भीतर एक अजीब से संघर्ष के साथ बीत रही है।

इस समय देश में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जिनको अपने ही परिवार में घुटन, बेचैनी और उदासी ने घेर रखा है। अब न तो ये घर छोड़कर भाग सकते हैं, न हालात बदल सकते हैं। लेकिन, यही सही समय है कि अपनी गृहस्थी के केंद्र में परमात्मा को देखना शुरू कर दें। दरअसल हमारी आंखों में अधिकांश मौकों पर दुनिया बसी रहती है और धीरे-धीरे हम दुनिया की आंखों से खुद को देखने लगते हैं। अब हमें अपने घर में ईश्वर को केंद्र में रखना है। ईश्वर यानी शांति, आत्मिक प्रसन्नता। अब तो आंखें मीचकर भगवान को याद करते हुए कहने का वक्त आ गया- 'तुझे क्या खबर ए बेखर, तेरी एक नज़र में है क्या असर..। हे भगवान, परिवार बचाना। यह तेरा प्रसाद है..।


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