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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कुछ दिन पूर्व मुंबई में 'कराची स्वीट मार्ट' नामक दुकान के मालिक को एक शिवसैनिक ने दुकान का नाम बदलने के लिए धमकाया। उसका कहना था कि पाकिस्तान भारत के विरुद्ध आतंकवादी गतिविधियां चलाता है इसलिए नाम बदलना चाहिए। उस दुकान के मालिक ने भी संघर्ष टालने की मंशा से नाम बदलने की बात स्वीकार करते हुए 'कराची' शब्द को ढक दिया। यह समाचार पढ़कर उस शिवसैनिक की क्षुद्र मनोदशा, इतिहासबोध का अभाव और सत्ता से उपजी हेकड़ी देखकर दया आई। उसे भारत के इतिहास का थोड़ा भी बोध होता तो किस परिस्थिति में कराची का अपना सारा कारोबार छोड़कर उस दुकानदार के पूर्वज भारत में आने को बाध्य हुए, इसका स्मरण होता।
हिंदू समाज की और उस समय के भारत के नेतृत्व की कमजोरी या मजबूरी के कारण उन्हें अपने ही देश में निर्वासित होकर आना पड़ा। अन्य किसी भी गलत मार्ग का अवलंब न करते हुए अपनी मेहनत से धीरे-धीरे तिनका-तिनका जुटाकर उन्होंने यहां अपना कारोबार खड़ा किया और देश की समृद्धि में अपना योगदान दिया।सिंध या पंजाब से आए ऐसे अनेक लोगों ने कष्ट सहते हुए पूरे देश के भंडार समृद्ध किए हैं। उन्होंने अनेक शैक्षिक और व्यावसायिक संस्थान-प्रतिष्ठान खड़े किए हैं, जिनका लाभ समाज के सभी वर्ग ले रहे हैं। जिस स्थान से हम आए उस स्थान का स्मरण करना या रखना नई पीढ़ी का दायित्व बनता है, ताकि आगे योग्य समय एवं सामर्थ्य आने पर फिर से वहां वापस जा सकें।