सम्पादकीय

महज समाज के लिए अनामिका जैसी परफेक्ट जिंदगी का दिखावा सही नहीं, कुछ कमियां भी हैं, जिन्हें स्वीकार करना चाहिए

Gulabi
3 March 2022 8:37 AM GMT
महज समाज के लिए अनामिका जैसी परफेक्ट जिंदगी का दिखावा सही नहीं, कुछ कमियां भी हैं, जिन्हें स्वीकार करना चाहिए
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ओपिनियन
एन. रघुरामन का कॉलम:
कितनी मांएं अपने 20 साल के बेटे से कह सकती हैं कि अपनी जवानी में वह किसी के प्रेम में थीं, पर परिवारिक हालातों के कारण समझौता करना पड़ा। यह उन सैकड़ों गहरे राज़ में से महज एक है, जिन्हें 20 साल के बॉलीवुड कॅरिअर में अनामिका आनंद ने अपने शानदार अभिनय से राज़ बनाए रखा।
प्रशंसकों के लिए उनका जीवन आदर्श था, प्यार करने वाला पति, दो प्यारे बच्चे, आलीशान घर, हाई-प्रोफाइल फिल्म, वो भी पसंद के सह-अभिनेता के साथ। पर अनामिका के अचानक गायब हो जाने के बाद घर के अंदर अनामिका की ही तरह उसका प्रोड्यूसर पति, उसकी मां, बेटा-बेटी भी न सिर्फ पुलिस से बल्कि एक-दूसरे से भी राज़ छुपाते हैं। दिलचस्प है कि 'फेम गेम' के पहले ही दृश्य में माधुरी दीक्षित गायब हो जाती हैं। यह उनकी पहली वेब सीरिज़ है। नेटफ्लिक्स की इस सीरिज़ में माधुरी ने अनामिका का किरदार निभाया है, जो उस कहानी में एक लोकप्रिय बॉलीवुड अभिनेत्री हैं।
जब मैंने दो दिनों में इसके आठ एपिसोड देखे, तो मैं सोच में पड़ गया कि हर भारतीय परिवार में- असफल प्रेम से लेकर किसी परिचित से जबरन शादी, सताने वाला पति, अनपढ़ भाई से संपत्ति हथियाने जैसे ना जाने ऐसे कितने-कितने राज होंगे। पर जब पुराने प्रेमी सार्वजनिक समारोहों में मिलते हैं, तो शरारती निगाहों से देखते तो हैं, पर रहस्यमयी बात कह जाते हैं, 'पुरानी कहानियों को भूल जाना ही अच्छा है', बिल्कुल उसी तरह जैसे इस सीरिज़ में अनामिका और उसके प्रेमी ने किया।
चीजें गुप्त रखने को जब हम इस नजरिए से देखते हैं, तो मेरा यकीन करिए हमारे मध्यमवर्गीय परिवारों को कोई पीछे नहीं छोड़ सकता। माधुरी तक नहीं। रोजमर्रा की कई बातें गुप्त रखने में मेरी मां का अभिनय शानदार होता था। जब बिना बताए कोई मेहमान आ जाता, तो वह चिल्लाकर खेल के बीच से ही बुलातीं और पीछे के दरवाजे से 25 पैसे का दूध लाने को कहतीं, ताकि मेहमानों को पता न चले कि घर में दूध नहीं है। वह मेहमानों और पिताजी के लिए बहुत अच्छी चाय बनातीं।
जब मेहमान मुझे और मां को साथ चाय पीने बुलाते, तो मां कहतीं, 'उसने अभी-अभी चाय पी है और मैंने देर से खाना खाया है, इसलिए अभी चाय पीने का मन नहीं है।' वह आंखों सें इशारों-इशारों में ही मुझे अंदर-बाहर होने का आदेश दे देतीं ताकि मैं मेहमानों के सवाल-जवाबों में फंसकर अपना मुंह न खोल दूं। जब मेहमानों के सामने मुस्कराते हुए आंखें बाएं घुमाती तो मेरे लिए भीतर जाने का इशारा होता और जब आखें दाएं घुमातीं, तो घर से बाहर जाने का इशारा।
इसी तरह साड़ियों के साथ था। बेबी पिंक रंग की सूती साड़ी देखते ही मां की आंखें चौड़ी हो जातीं, पर अगले ही क्षण वह खो सी जातीं और घर के बजट का गुणा-भाग करके दुकानदार से कहतीं, 'अरे मेरे पास तो गुलाबी रंग की कई साड़ियां हैं।' और मेरी हथेली ऐसे दबाती कि मैं कह न दूं, 'क्या मम्मी, आपके पास गुलाबी साड़ी कहां है?' वह हम बच्चों के लिए तो खरीदतीं पर अपने लिए कुछ नहीं लेतीं। पर उनके चेहरे से मुस्कान कभी गायब नहीं हुई।
बाहरी लोगों, खासकर अपने भाइयों को उन्होंने ऐसा जाहिर किया कि परिवार में सबकुछ सही है, अनामिका के परिवार की तरह। ऐसी और भी मांएं होंगी। वे हमेशा अपने बच्चों के भविष्य में, पति की भलाई में खुशियां देखतीं। पर क्या वे खुद खुश थीं? मेरे लिए इसका जवाब देना मुश्किल होगा, कम से कम अपनी मां के बारे में, क्योंकि वह तो माधुरी से भी अच्छा अभिनय करती थीं। फंडा यह है कि महज समाज को दिखाने के लिए अनामिका जैसी परफेक्ट जिंदगी का दिखावा सही नहीं है। क्योंकि हरेक की जिंदगी में कुछ कमियां भी होती हैं और हमें बिना ग्लानि के उन्हें स्वीकार करना चाहिए।
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