- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- बच्चों का स्कूल से दूर...
x
Vijay Garg: हमारे देश के आधे से अधिक स्कूलों में कंप्यूटर और इंटरनेट की सुविधा तक नहीं है। शिक्षा को लोकतंत्र का आधार बताया जाता है, लेकिन उसी लोकतंत्र में हर साल लाखों बच्चे स्कूल छोड़ने को मजबूर हैं। जब बच्चे ही शिक्षा से वंचित रहेंगे, तो देश का भविष्य कैसे संवरेगा ? संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट हो या हमारे अपने शिक्षा मंत्रालय के आंकड़े, हर जगह यह साफ झलकता है कि शिक्षा के क्षेत्र में हमारी स्थिति कितनी दयनीय है। दुनिया के 25 करोड़ बच्चे आज भी स्कूली शिक्षा से वंचित हैं, और इनमें से एक बड़ी संख्या दक्षिण एशिया से है। भारत में तो हालात और भी खराब हैं।
यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इन्फार्मेशन सिस्टम फार एजुकेशन की रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2022-23 से 2023- 24 के बीच देश के स्कूलों में पंजीकरण संख्या में भारी गिरावट आई है। मिडिल स्कूल तक पहुंचते-पहुंचते ड्रापआउट रेट 5.2 प्रतिशत और सेकेंडरी स्तर पर 10.9 प्रतिशत तक पहुंच जाता है। यह सब तब हो रहा है, जब हमारी सरकार नई शिक्षा नीति लागू करने और शिक्षा को सुलभ बनाने का प्रयास कर रही है। 2022-23 में जहां स्कूलों में 25.17 करोड़ बच्चे दर्ज थे, वहीं 2023-24 में यह संख्या घटकर 24.80 करोड़ रह गई। यह गिरावट महज संख्या नहीं, बल्कि उन सपनों की टूटन है जो इन बच्चों ने देखे होंगे। सरकारें मुफ्त शिक्षा, मिड-डे मील, और यूनिफार्म जैसी योजनाएं चला रही हैं, लेकिन ये योजनाएं वंचित वर्ग के सभी बच्चों को स्कूल तक खींचने में कारगर नहीं हो पाई हैं। एक तरफ डिजिटल इंडिया का नारा बुलंद किया जाता है और दूसरी तरफ देश के 57 फीसद स्कूलों में ही कंप्यूटर की सुविधा उपलब्ध है। इंटरनेट तो केवल 53 फीसद स्कूलों तक ही पहुंच पाया है। ऐसे में बच्चों को आधुनिक शिक्षा देने की बात करना मजाक जैसा लगता है। क्या हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि इन परिस्थितियों में हमारे बच्चे वैश्विक प्रतिस्पर्धा में टिक पाएंगे ?
स्कूलों से ड्रापआउट का सबसे बड़ा कारण गरीबी है। जब बच्चे बाल श्रम करने को मजबूर हों, तो स्कूल जाने का सवाल ही कहां उठता है ? बुनियादी ढांचे की कमी, अपर्याप्त शिक्षण स्टाफ और शिक्षा के प्रति जागरूकता का अभाव स्थिति को और बदतर बना देता है। आजादी 77 साल बाद भी स्कूलों में पर्याप्त सुविधाएं और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अभाव होना हमारे विकास पर सवालिया निशान लगाता है। सरकारें प्रयास तो कर रही हैं। मिड-डे मील योजना हो या मुफ्त पाठ्य पुस्तकें, इनसे कुछ हद तक राहत मिली है, लेकिन ये पर्याप्त नहीं हैं। यह समझना होगा कि शिक्षा केवल बच्चों का भविष्य नहीं, बल्कि पूरे देश की नींव है। यदि हम इसे प्राथमिकता नहीं देंगे, तो आने वाले समय में विकास के तमाम वादे सिर्फ ढकोसला बनकर रह जाएंगे।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कोर चंद मलोट पंजाब
Tagsजनता से रिश्ता न्यूज़जनता से रिश्ताआज की ताजा न्यूज़हिंन्दी न्यूज़भारत न्यूज़खबरों का सिलसिलाआज की ब्रेंकिग न्यूज़आज की बड़ी खबरमिड डे अख़बारJanta Se Rishta NewsJanta Se RishtaToday's Latest NewsHindi NewsIndia NewsKhabron Ka SilsilaToday's Breaking NewsToday's Big NewsMid Day Newspaperजनताjantasamachar newssamacharहिंन्दी समाचार
Gulabi Jagat
Next Story