सम्पादकीय

आसान नहीं है 5जी की राह में आने वाली तमाम बाधाओं को दूर करना

Gulabi
17 Feb 2022 5:13 PM GMT
आसान नहीं है 5जी की राह में आने वाली तमाम बाधाओं को दूर करना
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आसान नहीं है 5जी की राह
शंभु सुमन। इंटरनेट की कनेक्टिविटी और स्पीड को लेकर चुनौतियां दोनों तरफ है। चाहे उपभोक्ता हों या फिर इंटरनेट सर्विस प्रदाता कंपनियां। जीवनशैली के लिए अति आवश्यक अंग बन चुके इंटरनेट के बगैर स्मार्टफोन, लैपटाप, पर्सनल कंप्यूटर, स्मार्टवाच, स्मार्टटीवी, वाइफाइ, हैंडफ्री जैसे गैजेट्स काम नहीं कर पाते हैं। नतीजा इनसे जुड़े तमाम तरह के आनलाइन कामकाज ठप हो जाते हैं। तब ऐसी स्थिति बन जाती है मानो जिंदगी अचानक थम सी गई हो।
डिजिटल दौर की इस समस्या से निपटने के लिए केंद्र सरकार की नजर 5जी नेटवर्क की सुविधाएं उपलब्ध करवाने पर है। इस क्रम में संचार विभाग द्वारा 13 शहरों में दिसंबर 2022 तक नई सर्विस उपलब्ध करवाने की घोषणा भी कर कर दी गई है। इसकी तैयारी तीन स्तर से की जा रही है। पहली, विभाग के जिम्मे टेक्नोलाजी उपलब्धता की टेस्टिंग और नेक्स्ट जेनरेश इंटरनेट के स्पेक्ट्रम की निलामी है, जबकि टेलीकाम रेगुलेटरी अथारिटी आफ इंडिया यानी ट्राइ उपभोक्ताओं के लिए उचित प्राइस, ब्राडबैंड प्लान, ब्लाक साइज, नीलामी किए जाने की स्पेक्ट्रम की मात्रा और शर्तों को देखती है। तीसरा अहम पहलू सर्विस प्रोवाइडर हैं, जिनमें तीन बड़ी कंपनियां हैं। 5जी नेटवर्क की राह में तकनीकी और नीतिगत चुनौतियों का सामना इन तीनों को करना है। दूसरी तरफ इसके स्वास्थ्य पर पडऩे वाले दुष्प्रभाव, रोगों के फैलाव या हवाई यात्राओं पर इसके असर को लेकर विरोध, अविश्वास और विवाद की भी अप्रत्याशित चुनौतियां हैं।
सबसे बड़ी चुनौती संबंधित मूलभूत संरचना को दुरुस्त करने की है, ताकि भारत के कोने-कोने तक टावर के माध्यम से पर्याप्त मात्रा में नेटवर्क पहुंचाया जा सके। इस मामले में हमारा पिछला रिकार्ड बेहद खराब रहा है। इसे लेकर सवाल बने हुए हैं कि हमने दो दशक से अधिक समय में 2जी से 4जी तक का सफर पूरा कर लिया, फिर भी स्पीड और कनेक्टिविटी के मामले में कई देशों से पीछे हैं। इस बीच कंप्यूटिंग का तौर-तरीका एडवांस होता चला गया। तारों से नेटवर्क बनाने की जगह क्लाउड कंप्यूटिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तक का चलन आ गया, लेकिन हमारा टेलीकाम विभाग दूसरों के भरोसे बैठा रहा। अभी तक अधिकतर जगहों पर अस्थायी टावर के जरिये इंटरनेट की सांसें चलने लायक ही कार्य को अंजाम दिया गया है। जबकि डिजिटल इंडिया मिशन का आरंभ 2014 में ही हो चुका था। उन दिनों इसके पूरे होने का सपना 4जी नेटवर्क के जरिये देखा गया था, किंतु इसके नेटवर्क मजबूत करने के लिए किए गए सारे प्रयास आधे-अधूरे ही साबित हुए।अब जबकि 5जी नेटवर्क को कई विकसित देशों में उपलब्ध करवा दिया गया है, वैसे में हमारी तैयारी चुनौतियों की भेंट चढ़ती जा रही हैं।
हालांकि टेलीकाम सेक्टर द्वारा भारतनेट परियोजना आरंभ की गई है। इसके तहत 5.46 लाख किमी आप्टिकल फाइबर केबल बिछाया जाना है। इसका उद्देश्य 2.52 लाख ग्राम पंचायतों तक आप्टिकल फाइबर बिछाने और फास्ट स्पीड ब्राडबैंड सर्विस से कनेक्ट करने की है। देखा जाए तो इस परियोजना के भरोसे ही 5जी नेटवर्क को 2020 में आने की बात की गई थी, लेकिन अनेक कारणों से उस समय ऐसा संभव नहीं हो सका। तब केंद्र सरकार मोबाइल फोन कंपनियों के कुछ वित्तीय और तकनीकी मामले सुलझाने में उलझी रही। दरअसल भारतीय मोबाइल फोन कंपनियों के संगठन सेलुलर आपरेटर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (सीओएआइ) ने बेस कीमतों में अत्यधिक बढ़ोतरी, अपर्याप्त स्पेक्ट्रम और नए बैंड्स की अनुपलब्धता को लेकर सवाल खड़े किए थे।
हालांकि जब कीमत निर्धारण की समस्या सुलझा ली गई, तब क्वांटम का मुद्दा सामने आ गया। आपरेटरों ने 100 मेगाहट्र्ज मांगे, लेकिन उन्हें केवल एक मेगाहट्र्ज ऊंची कीमत 492 करोड़ रुपये पर देने की बात कही गई। आपरेटरों की निगाह में यह दोतरफा मुश्किल की तरह है। उन्हें अपने उपभोक्ताओं को कीमत और सर्विस को लेकर संतुष्ट करना है, तो अंतरराष्ट्रीय कीमतों और कर्ज के दबाव को भी कम करना है।
( लेखक तकनीकी मामलों के जानकार हैं )
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