सम्पादकीय

जब तक कोविड-19 महामारी पर लगाम लगने के स्पष्ट संकेत न मिल जाएं, तब तक सतर्कता बनाए रखना है जरूरी

Gulabi
11 Oct 2020 3:13 AM GMT
जब तक कोविड-19 महामारी पर लगाम लगने के स्पष्ट संकेत न मिल जाएं, तब तक सतर्कता बनाए रखना है जरूरी
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बीते कुछ दिनों से कोरोना मरीजों की संख्या में गिरावट के साथ कुल सक्रिय मामलों में कमी से यह उम्मीद जगी है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। बीते कुछ दिनों से कोरोना मरीजों की संख्या में गिरावट के साथ कुल सक्रिय मामलों में कमी से यह उम्मीद जगी है कि जल्द ही इस महामारी पर काबू पा लिया जाएगा, लेकिन अभी इसे लेकर सुनिश्चित नहीं हुआ जा सकता कि ऐसी स्थिति कब आएगी? जब तक कोरोना वायरस से उपजी कोविड-19 महामारी पर लगाम लगने के स्पष्ट संकेत न मिल जाएं, तब तक शासन-प्रशासन के साथ आम जनता के लिए भी सतर्कता बनाए रखना आवश्यक है।

शायद इसी आवश्यकता को ध्यान में रखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना के खिलाफ बचाव को लेकर एक जन आंदोलन की शुरुआत की। प्रधानमंत्री की इस बात को गंभीरता से लेने की जरूरत है कि जब तक जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं।

कोरोना के मरीजों की संख्या में गिरावट के बाद भी सावधान रहने की जरूरत इसलिए भी है, क्योंकि मौसम में तब्दीली हो रही है और कुछ बड़े पर्व भी करीब आ रहे हैं। मौसम में बदलाव देश के एक बड़े हिस्से में वायु प्रदूषण को बढ़ा सकता है और यह स्थिति कोरोना मरीजों के लिए घातक साबित हो सकती है।

इसी तरह त्योहारों के अवसर पर शारीरिक दूरी के उल्लंघन के कारण भी कोरोना वायरस का संक्रमण बढ़ सकता है। इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि केरल में ओणम और महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी के बाद कोरोना मरीजों में वृद्धि देखी गई।

केरल और महाराष्ट्र के लोगों ने जो गलती की, उससे शेष देश के लोगों को सबक लेना चाहिए- इसलिए और भी कि अभी इस बारे में सुनिश्चित नहीं हुआ जा सकता कि कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर नहीं आएगी। दुनिया के दूसरे देशों का अनुभव कुछ कहता है तो यही कि अपने देश में भी संक्रमण की दूसरी लहर सिर उठा सकती है। इसकी नौबत नहीं आने देनी चाहिए, अन्यथा रफ्तार पकड़ती आर्थिक-व्यापारिक गतिविधियां फिर से शिथिल हो सकती हैं।

संक्रमण की दूसरी लहर केवल अर्थव्यवस्था पर ही नए सिरे से बुरा असर नहीं डालेगी, बल्कि महामारी से निपटने में लगे स्वास्थ्य तंत्र के लिए भी बोझ साबित होगी। यह सही है कि लोग महामारी से उपजी परिस्थितियों का सामना करते-करते उकता गए हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि संयम और सतर्कता का साथ छोड़ दिया जाए।

यह ठीक नहीं कि सार्वजनिक स्थलों पर लोग शारीरिक दूरी के प्रति उतने सतर्क नहीं दिखते, जितना उन्हें दिखना चाहिए। इसी तरह बहुत से लोग मास्क का सही तरह से उपयोग करने में आनाकानी कर रहे हैं और वह भी तब, जब इससे भली तरह अवगत हैं कि इससे वे अपने साथ-साथ अपनों को भी खतरे में डालने का काम करते हैं।

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