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देशों में हर नागरिक को अंगदान के लिए योग्य माना जाता है.
हमारे देश में अंग प्रत्यारोपण की जितनी मांग है, उस लिहाज से आपूर्ति बहुत कम है. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि अंगदान को लेकर जागरूकता का बड़ा अभाव है. सबसे अधिक मांग किडनी और लिवर के लिए है. हृदय और फेफड़े का प्रत्यारोपण बहुत कम होता है. अंगों की आपूर्ति बढ़ाने के लिए हमें जागरूकता प्रसार पर अधिक ध्यान देना होगा. दुनिया में कई देशों में ‘ऑप्ट आउट’ की नीति है. वैसे देशों में हर नागरिक को अंगदान के लिए योग्य माना जाता है.
यदि कोई अपनी मृत्यु के बाद अंगदान नहीं करना चाहता है, तो वह जीवित रहते हुए इसकी लिखित घोषणा कर सकता है, जिसे ‘ऑप्ट आउट’ करना कहा जाता है. हाल में सरकार ने अंगदान और प्रत्यारोपण की प्रक्रिया में सुधार लाने के उद्देश्य से नियमों में कुछ अहम बदलाव किया है. पूर्ववर्ती नियम के अनुसार 65 वर्ष से कम आयु के लोगों को अंग प्रत्यारोपित किये जाते थे. अब इस सीमा को हटा दिया गया है.
यदि अंग उपलब्ध है, तो बुजुर्गों को भी दिया जा सकता है, पर अभी भी प्राथमिकता कम आयु के लोगों को दी जायेगी. अब राज्य के निवासी होने का प्रावधान भी हटा दिया गया है. प्रत्यारोपण के अनुरोध के पंजीकरण के लिए निर्धारित 10 हजार रुपये के शुल्क की व्यवस्था को भी समाप्त कर दिया गया है. ये सराहनीय प्रयास हैं, पर इससे समस्या का समुचित समाधान नहीं होगा.
अंगदान इतना कठिन नहीं होना चाहिए और उसे बढ़ावा देने के लिए जागरूकता आवश्यक है. भारत में अंग प्रत्यारोपण की प्रक्रिया के दो पहलू हैं. एक, अंगदान करने वाला रोगी का निकट संबंधी होता है और दूसरा, अंगदान करने वाला जान-पहचान का नहीं है. दूसरी स्थिति में यह होता है कि आप प्रत्यारोपण के लिए पंजीकृत हैं और आपको किसी ऐसे व्यक्ति का अंग प्रत्यारोपित किया जाता है, जिसकी किसी वजह से असमय मृत्यु हो जाती है और उसने अंगदान के लिए अपनी इच्छा व्यक्त कर रखी हो.
लेकिन अंगदान का कार्ड बनवाने वाले लोगों की संख्या हमारे यहां बहुत कम, लगभग चार प्रतिशत, ही है. दोनों ही मामलों में लोगों में जागरूकता की कमी है. जो जीवित हैं, उनमें हिचक इस बात को लेकर है कि अंगदान से उनके अंग खराब हो जायेंगे. साथ ही, एक प्रकार की सामाजिक वर्जना भी व्याप्त है. हमारे यहां लोग पोस्टमार्टम से बचने की कोशिश करते हैं. दुर्घटना या संदेहास्पद स्थिति में मृत्यु होने पर भी मृतक के परिजन शरीर की चीर-फाड़ करने से मना कर देते हैं. यह सामाजिक प्रवृत्ति अंगदान बढ़ाने में एक बड़ा अवरोध है.
नियमों में सुधार अच्छी बात है, पर कानून को कड़ा करते जाना उचित तरीका नहीं है. किडनी रैकेट के बारे में हम पढ़ते-सुनते आये हैं. ऐसे अपराधियों को आपराधिक कानूनों के तहत सजा देने पर ध्यान दिया जाना चाहिए. भ्रूण हत्या रोकने के लिए इतने कानून बना दिये गये हैं कि गर्भवती स्त्री की अन्य बीमारियों को पकड़ना भी मुश्किल हो गया है. इसे एक उदाहरण से समझा जाए. हमारे देश में बांग्लादेश से हर साल साढ़े बारह हजार से अधिक लोग किडनी प्रत्यारोपण के लिए आते हैं.
वहां दर्दनिवारक दवाओं का सेवन अत्यधिक मात्रा में होता है, जिसके कारण किडनी खराब होती है. ये रोगी मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल में आते हैं. नियमों के अनुसार बहुत करीबी रिश्तेदार ही अपनी किडनी दे सकते हैं. इस नियम से बचाने के लिए ऐसे गिरोह सक्रिय हैं, जो अंग देने वाली महिला से रोगी की शादी करा देते हैं. पश्चिम बंगाल में यह खूब हो रहा है.
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि हमारे देश में विभिन्न राज्यों में अंगदान और प्रत्यारोपण से संबंधित नियम-कानूनों में अंतर है क्योंकि संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार राज्य सरकार अपने स्तर पर स्वास्थ्य संबंधी कानूनों को बना सकती है या उनमें बदलाव कर सकती है. इस पहलू पर भी ध्यान देने की जरूरत है. एक समस्या किडनी गिरोहों की गैर-चिकित्सकों और चिकित्सकों के साथ सांठ-गांठ की भी है.
इस प्रकार, हमें दो स्तरों पर सक्रियता बढ़ानी होगी. एक, समाज में बड़े पैमाने पर लोगों को प्रोत्साहित और प्रेरित करना होगा कि वे अंगदान करें. जैसा कि कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री ने कहा, एक व्यक्ति का अंगदान कई लोगों को जीवनदान दे सकता है. अंगदान को हमें एक आंदोलन और संस्कृति बनानी होगी. साथ ही, संसाधनों को बढ़ाने और प्रत्यारोपण के खर्च को घटाने के लिए कोशिश करनी चाहिए.
अंगदान और प्रत्यारोपण से संबंधित नियमों को भी सरल बनाया जाना चाहिए तथा इससे जुड़े अपराधों एवं फर्जी कारगुजारियों से कड़ाई से निपटना होगा. प्रत्यारोपण की सुविधा मुख्य रूप से बड़े शहरों और बड़े अस्पतालों तक सीमित है. स्वास्थ्य संबंधी अन्य सुविधाओं में विस्तार की तरह इस दिशा में भी प्रयास होने चाहिए. हमें यह भी देखना चाहिए कि अत्याधुनिक तकनीक का हम कैसे समुचित उपयोग कर सकते हैं. प्रत्यारोपण की संख्या बढ़ना अच्छी बात है, पर यह बहुत कम है. अंगदान को लेकर मुहिम चलाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए.
सोर्स: prabhatkhabar
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Triveni
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