- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- यह याद रखना जरूरी है...
x
हाल ही में एक शिक्षक ने कक्षा में छात्रों को शतरंज सिखाने की इच्छा जाहिर की
एन. रघुरामन। हाल ही में एक शिक्षक ने कक्षा में छात्रों को शतरंज सिखाने की इच्छा जाहिर की। लेकिन वे नाराज़ थे कि स्कूल प्रबंधन उन्हें शतरंज बोर्ड दिलाने में मदद नहीं कर रहा है तो मैंने बस अपनी जेब से 20 रुपए निकाले और टेबल पर रख दिए। छात्रों की ओर देखा और कहा कि जो भी शतरंज सीखने में रुचि रखता हो अपना योगदान दे सकता है।
किसी ने सिर्फ दस मिनट में गूगल पर कीमत देखी, सभी ने योगदान दिया और तीन घंटे में शतरंज कक्षा में आ गया। पहले सप्ताह के अंत तक ही अधिकांश छात्रों को शतरंज के अनकहे नियमों के बारे में अच्छी जानकारी मिल गई। यह वैसा ही है कि नियति ने बीथोवेन को बहरा बनाने की चाल चली तो बीथोवेन ने पलटवार में दुनिया की कुछ सबसे मधुर सिम्फनियां रचीं!
मेरा पक्का विश्वास है कि जब लोग शतरंज के अनकहे नियमों को सीखते हैं तो वे चुनने की शक्ति हासिल करते हैं और जीवन में आगे बढ़ते हैं जैसा कि तमिलनाडु के तूतूकुड़ी के मछुआरे और यू-ट्यूबर एम शक्तिवेल ने किया, जो अब सौर ऊर्जा के चैंपियन भी हैं।
2004 में इस तटीय कस्बे में सुनामी आने के कुछ वर्षों बाद स्थानीय मछुआरों के पास सूर्यास्त के बाद करने के लिए कोई काम नहीं रह गया था। मिट्टी के तेल के दीयों के सहारे जीवन चल रहा था। वे इतने गरीब थे कि पुराने कपड़ों को फाड़ कर दीयों के लिए बत्तियां बनाते, क्योंकि मिट्टी के तेल में लगाने के लिए वे इसे खरीद नहीं सकते थे। वर्षों बाद उस गांव में सौर ऊर्जा से रोशन पांच लैम्प पोस्ट लगे और अब ताे गांव में सैकड़ों मछुआरे अपने घरों में सोलर लैंप रखते हैं। दिन में इसे चार्ज करते हैं, रात में मछली पकड़ने साथ ले जाते हैं।
छोटी-सी शुरुआत के बाद आज इस स्थान पर ऐसे भी लोग हैं जो फिशिंग इंडस्ट्री को सौर प्रौद्योगिकी अपनाकर मछुआरों की नावों को रोशन करने और ईंधन लागत में कटौती के लिए प्रशिक्षित कर रहे हैं, साथ ही नई डिजाइनों का सुझाव भी दे रहे हैं। और सौर ऊर्जा पैनलों वाली किफायती घरेलू विद्युतीकरण प्रोजेक्ट्स के चैंपियंनों में शामिल हैं शक्तिवेल। वे खास हैं, क्योंकि उन्होंने अपने यूट्यूब चैनल 'तूतूकुड़ी मीनवन' (तमिल में मछुआरा)- जिसके सात लाख से ज्यादा सब्सक्राइबर हैं- की कमाई को अपनी कॉलोनी में नौ घरेलू सौर ऊर्जा यूनिट (15 से 60 हजार रुपए के बीच की लागत) लगाने में खर्च किया।
एक मछुआरा जब मछली पकड़ने समुद्र में निकलता है और पांच घंटे लहराते समुद्र में बिताता है तो लगभग 15 लीटर ईंधन खर्च होता है। साल में 300 दिन काम करे तो 4,500 लीटर जीवाश्म ईंधन खर्च होता है। हमारी लंबी तटीय रेखा पर मछली पकड़ने वाली ऐसी लाखों नावें हैं। हमारे पास आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात, तमिलनाडु और केरल में मछुआरों के समूह हैं, जहां कम से कम 40 लाख लोग कम दूरी तक मछली पकड़ने जाते हैं। इसलिए कम मात्रा में मछलियां पकड़ पाने के कारण परिचालन लागत फायदेमंद नहीं रह पाती।
दूसरी ओर नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि साल के 300 धूप वाले दिनों में भारतीय भू-भाग पर सालाना लगभग 5,000 ट्रिलियन किलोवाट-घंटा (kWh) बिजली उत्पन्न की जा सकती है। इस प्रकार सौर ऊर्जा सबसे अच्छे विकल्पों में से एक है। मछुआरे शक्तिवेल के लिए परिवर्तन स्थाई है, जिन्होंने मछली पकड़ने के लिए पारंपरिक मिट्टी के तेल की लौ को सोलर लैंप से बदल दिया, जिसका वृत्तांत वे यू-ट्यूब चैनल के माध्यम से सामने ला रहे हैं।
Rani Sahu
Next Story