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अगर हम किसी जागरूक समाज का हिस्सा होते, तो ये खबर आते ही इस बड़ा तहलका मचता।
अगर हम किसी जागरूक समाज का हिस्सा होते, तो ये खबर आते ही इस बड़ा तहलका मचता। अगर देश में लोगों को लगान के लिए खराब गुणवत्ता वाला वैक्सीन जारी कर दिया गया, तो आखिर किसी की तो इसके लिए जवाबदेही बनती है। और जिसकी गलती या बदनीयती से ऐसा हुआ, वह सख्त सजा का हकदार है। लेकिन ऐसी बातें अगर चर्चा के केंद्र में भी नहीं आती हैं, तो उस समाज के भविष्य को लेकर सिर्फ आशंकित हुआ जा सकता है। गौरतलब है कि पिछले दिनों एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में भारत सरकार की टीकाकरण सलाहकार समिति के प्रमुख एनके अरोड़ा ने कहा कि भारत बायोटेक के कोवैक्सीन की सप्लाई इसलिए धीमी पड़ी हुई है, क्योंकि शुरूआत में इसके कुछ खेप अच्छी गुणवत्ता के नहीं थे। मुद्दा यह है कि आखिर उन खेपों को किसने हरी झंडी दी? आखिर सरकारी विभाग ने ऐसा कैसे होने दिया?
अगर सरकार से चूक हुई, तो जब मामला सामने आया तो उसने क्या कार्रवाई की? इंटरव्यू में अरोड़ा ने स्वीकार किया कि सरकार कोवैक्सीन के ज्यादा उत्पादन की आस लगाए हुए बैठी थी, लेकिन उसे उस समय झटका लगा जब कंपनी के सबसे बड़े बेंगलुरु प्लांट में इसकी गुणवत्ता अच्छी नहीं पाई गई। हालांकि उन्होंने यह स्पष्ट किया कि इन टीकों को टीकाकरण के लिए नहीं भेजा गया, लेकिन ये बात संतोष की नहीं हो सकती। भारत बायोटेक कंपनी कई तरह के विवादों में घिरी हुई है। ब्राजील में उसके खिलाफ जांच चल रही है। उसके वैक्सीन को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हरी झंडी देने से इनकार कर रखा है। ऐसे में ये मुद्दा तो पहले से अहम था कि भारत में उसे हरी झंडी क्यों मिली?
अब ताजा सामने आई जानकारी ने ये सवाल और भी संगीन हो गया है। यहां हमें नहीं भूलना चाहिए कि दवा और इलाज में विश्वसनीयता सर्वोपरि महत्त्व की होती है। मुद्दा यह है कि आखिर भविष्य में इस वैक्सीन की विश्वसनीयता को कैसे कायम किया जाएगा? उसका शायद एकमात्र रास्ता यही है कि इस कंपनी और उसके उत्पाद के बारे में उठे सवालों की जानकारी अधिक से अधिक छिपाई जाए। जब लोगों को सच मालूम ही नहीं होगा, तो विश्वसनीयता का प्रश्न भी नहीं उठेगा। भारत सरकार दिसंबर तक सबका टीकाकरण करना चाहती है। यह उचित लक्ष्य है। लेकिन इसे पूरा करने के लिए टीका के नाम पर कुछ भी लगा दिया जाए, यह कतई उचित नहीं है।
Triveni
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