सम्पादकीय

मुद्दा महंगाई का

Subhi
20 July 2022 5:04 AM GMT
मुद्दा महंगाई का
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महंगाई को लेकर दो दिन से संसद के दोनों सदनों में कार्यवाही ठप रही। विपक्ष सरकार से महंगाई पर चर्चा करवाने की मांग कर रहा है। ऐसा नहीं कि विपक्ष ने यह मांग कोई अचानक उठा दी।

Written by जनसत्ता: महंगाई को लेकर दो दिन से संसद के दोनों सदनों में कार्यवाही ठप रही। विपक्ष सरकार से महंगाई पर चर्चा करवाने की मांग कर रहा है। ऐसा नहीं कि विपक्ष ने यह मांग कोई अचानक उठा दी। पहले से ही लग रहा था कि संसद सत्र शुरू होते ही जिन मुद्दों को लेकर विपक्ष सत्ता पक्ष को घेरेगा, उनमें सबसे बड़ा मुद्दा महंगाई होगा। महंगाई की वजह से आम लोगों को जिस तरह के संकटों से दो-चार होना पड़ रहा है, वह कोई मामूली बात नहीं है।

इसीलिए विपक्षी दलों ने कार्यस्थगन प्रस्ताव के जरिए तुरंत चर्चा की मांग की। लेकिन इस मांग को खारिज कर दिया गया। यह विपक्ष का यह दायित्व भी है कि वह जनहित से जुड़े मुद्दों को सदन में उठाए। लेकिन सवाल तो इस बात का है कि सरकार आखिर महंगाई जैसे ज्वलंत मुद्दे पर चर्चा करवाने से बच क्यों रही है? इसीलिए मंगलवार को विपक्षी दलों को संसद परिसर में धरना देने को मजबूर होना पड़ा।

महंगाई को लेकर लंबे समय से हाहाकार मचा है। खुदरा और थोक महंगाई के आंकड़े नित नए रेकार्ड बना रहे हैं। खाने-पीने की हर चीज महंगी होती जा रही है। रिजर्व बैंक ने भी माना है कि महंगाई को लेकर स्थिति गंभीर है। उसने यह भी कहा है कि यह पूरा साल इसी तरह गुजरने वाला है। हालांकि सरकार दावा कर रही है कि इधर दो महीने में महंगाई दर में कमी आई है। लेकिन उसके इन दावों और हकीकत में जो फर्क है, वह किसी से छिपा नहीं है। आम आदमी पर नया बोझ अब जीएसटी से पड़ गया है। दूध, पनीर, छाछ, लस्सी, आटा, मुरमुरे, सोयाबीन, मटर, चावल, दालें जैसी जरूरी खाने की चीजें तक पांच फीसद जीएसटी के दायरे में आ गई हैं।

इससे सिर्फ खानपान की मद में ही एक औसत परिवार का मासिक खर्च डेढ़ से दो हजार रुपए बढ़ जाएगा। इसके अलावा स्टेशनरी सामान पर अठारह फीसद जीएसटी लगा दिया गया है। सौर हीटर और एलईडी बल्ब वगैरह बारह फीसद जीएसटी के साथ मिलेंगे। ये सब वे सामान हैं जिनकी सबसे ज्यादा खपत मध्य और निम्न आय वर्ग वालों के बीच होती है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि महंगाई किस कदर लोगों पर और बोझ डालेगी।

महंगाई को लेकर हालत इसलिए भी ज्यादा गंभीर है क्योंकि बेरोजगारी भी चरम पर बनी हुई है। भले ही दावा किया जाता हो कि हम कोरोना से उपजे हालात से निजात पा चुके हैं और अब सब कुछ पटरी पर है, लेकिन बेरोजगारी के आंकड़े हकीकत बनाने के लिए काफी हैं। बड़े उद्योगों ने भले अपने को बचा लिया हो, लेकिन छोटे उद्योग अभी भी मुश्किल में हैं। कच्चे माल से लेकर दूसरे संकट अभी बने हुए हैं।

इससे सीधे तौर पर वस्तुओं की लागत बढ़ रही है। इधर, महंगे पेट्रोल और डीजल के दामों ने महंगाई की आग में घी का काम किया। रसोई गैस के लगातार बढ़ते दाम भी गरीबों की कमर तोड़ रहे हैं। ऐसे में अगर विपक्ष महंगाई पर चर्चा करवाना चाह रहा है तो गलत क्या है? बल्कि यह तो सरकार का कर्तव्य माना जाना चाहिए कि वह महंगाई जैसे मसले पर चर्चा करवाए और विपक्ष के सवालों का संतोषजनक जवाब दे। आखिर देश के लोगों को भी जानने का हक है कि उनकी सरकार महंगाई से निपटने के लिए कर क्या है।


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