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इस वक्त दुनिया जहां कोरोना संकट से जूझ रही है, वहीं इजरायल (Israel) और फिलिस्तीन (Palestine) युद्ध के कगार पर आ गए हैं
संयम श्रीवास्तव। इस वक्त दुनिया जहां कोरोना संकट से जूझ रही है, वहीं इजरायल (Israel) और फिलिस्तीन (Palestine) युद्ध के कगार पर आ गए हैं जिससे पूरी दुनिया को फर्क पड़ने वाला है. इसलिए भारत समेत हर देश चाहता है कि इन दोनों देशों के बीच जल्द से जल्द शांति स्थापित हो. हालांकि कुछ देश ऐसे भी हैं जो अब गुटबंदी करने में लग गए हैं और उन्होंने अपने-अपने सुविधाअनुसार एक देश को चुन लिया है जिसका वो समर्थन कर रहे हैं. एक तरफ जहां पाकिस्तान, टर्की समेत ज्यादातर मुस्लिम देश फिलिस्तीन का साथ दे रहे हैं.
वहीं अमेरिका, अलबेनिया, ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया, ब्राजील, कनाडा, कोलंबिया, साइप्रस, जॉर्जिया, जर्मनी, हंगरी, इटली, स्लोवेनिया और यूक्रेन समेत कई देश इजरायल के साथ खड़े हैं. इन सब के बीच जिस देश पर सबकी नजर टिकी है वह है भारत. पूरी दुनिया जानना चाहती है कि भारत किसके साथ खड़ा है. इतिहास में देखें तो भारत का संबंध फिलिस्तीन के साथ बेहतर रहा है, वहीं अगर बीते कुछ वर्षों को देखें तो इजरायल भारत का हर मुद्दे पर साथ देता आया है. ऐसे में भारत के लोगों के साथ दुनिया भर की नजर भारत पर है कि वह किसके साथ खड़ा होता है.
भारत ने आधीकारिक रूप से क्या कहा
इजरायल और गाजा के बीच बढ़ते तनाव के बीच भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में दोनों पक्षों से अत्यधिक संयम बरतने और यथास्थिति में एकतरफा बदलाव के प्रयास से बचने की अपील की. साथ ही तनाव को तत्काल कम किए जाने की आवश्यकता पर बल दिया. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने रविवार को मध्य पूर्व में जारी हालात पर खुली बैठक की. इस दौरान संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने इजरायल और गाजा के बीच तनाव को 'बेहद गंभीर' करार दिया.
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति (TS Tirumurti) ने कहा कि पिछले सप्ताह पूर्वी यरुशलम में शुरू हुई हिंसा के नियंत्रण से बाहर जाने का खतरा उत्पन्न हो गया है. उन्होंने कहा कि पिछले कुछ दिनों में हुए घटनाक्रम से सुरक्षा परिस्थितियों के हालात तेजी से बिगड़े हैं. भारत इजरायल और फलस्तीन के बीच वार्ता बहाल करने के लिए अनुकूल वातावरण बनाने के हरसंभव प्रयास का समर्थन करता है.
इजरायल का दोस्तों को शुक्रिया कहना लेकिन भारत का नाम ना लेना क्या कहता है?
इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने रविवार सुबह एक ट्वीट किया है. जिसमें उन्होंने मौजूदा समय में इजरायल का समर्थन करने के लिए 25 देशों को शुक्रिया कहा है. लेकिन उन्होंने अपने ट्वीट में भारत का नाम नहीं लिया है. अपने ट्वीट में नेतन्याहू ने लिखा है, 'इजरायल के झंडे के साथ मजबूती से खड़े रहने और आतंकवादी हमलों के खिलाफ आत्मरक्षा के हमारे अधिकार का समर्थन करने के लिए धन्यवाद.' उन्होंने इन 25 देशों के नक्शे शेयर करते हुए इन्हें धन्यवाद कहा है. अपने ट्वीट में नेतन्याहू ने जिन 25 देशों का नाम लिया है, उनमें अमेरिका के बाद अलबेनिया, ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया, ब्राजील, कनाडा, कोलंबिया, साइप्रस, जॉर्जिया, जर्मनी, हंगरी, इटली, स्लोवेनिया और यूक्रेन शामिल हैं.
नेतन्याहू ने इसमें भारत का नाम ना लेकर एक तरह से अपनी नाराजगी भी जाहिर की है और शायद ह ऐसा करके भारत पर कूटनीतिक रूप से दबाव भी बनाना चाहते हों कि भारत इसके बाद इजरायल का खुल कर साथ दे सके जैसे इजरायल हर मुद्दे पर भारत के साथ खड़ा रहता है. हालांकि भारत को इससे कुछ खास फर्क पड़ेगा ऐसा लगता तो नहीं है. क्योंकि भारत हमेशा से अपनी अलग कूटनीति से चलता आया है जिसमें वह इजरायल औऱ फिलिस्तीन दोनों का दो अलग-अलग मुद्दों पर समर्थन करता आया है.
इजरायल के साथ भारत?
इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू (Benjamin Netanyahu) और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच रिश्तें कूटनीतिक रूप से हटके निजी रूप से भी काफी बेहतर हैं. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 70 साल में पहले भारतीय पीएम थे जिन्होंने इजरायल का दौरा किया था. इजरायल भी इधर कुछ वर्षों से भारत का सबसे बड़ा दोस्त बन कर उभरा है जो उसके साथ हर मुद्दे पर खड़ा रहता है. चाहे वह कश्मीर का मुद्दा हो या फिर आतंकवाद का. यही नहीं बीते कुछ वर्षों में इजरायल ने भारत को बेहतरीन डिफेंस डील भी दी है जिसकी भारत को बहुत जरूरत थी. दोनों देशों के बीच रिश्तें ऐसे हैं कि पूरी दुनिया को पता है कि भारत की तरफ आंख उठाने का मतलब की इजरायल आंखे नोचने को तैयार बैठा है. भारत का इजरायल के साथ संबंध डिफेंस और इंटेलिजेंस के मामले में बेशक शानदार हैं और दोनों देश एक दूसरे के साथ खड़े हैं.
क्या फिलिस्तीन के साथ हो सकता है भारत?
भारत का रिश्ता फिलिस्तीन के साथ इतिहास में बहुत गहरा रहा है. सत्तर के दशक में फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन (पीएलओ) के मुखिया यासिर अराफात के रहते हुए फिलिस्तीन और भारत के रिश्ते काफी बेहतर थे. रिश्ते कितने बेहतर थे उसे आप इस तरह से समझ सकते हैं कि यासिर इंदिरा गांधी को अपनी बड़ी बहन मानते थे और उनकी कोई भी बात नहीं टालते थे. इंदिरा गांधी भी उन्हें वैसे ही मानती थीं. इसलिए जब भी यासिर अराफात भारत आते थे तो एयरपोर्ट पर उन्हें लेने इंदिरा गांधी खुद जाया करती थीं. 1974 में भारत अकेला गैर मुसलिम देश था जिसने फिलिस्तीन मुक्ती संगठन को मान्यता दी थी. वहीं 1988 में फिलिस्तीन को बतौर राष्ट्र मान्यता देने वाला भारत पहली पंक्ति में खड़ा था. फिलिस्तीन के साथ भारत मानवाधिकार और आजादी जैसे मुद्दों पर हमेशा से खड़ा है. जानकारों की माने तो भारत इन दोनों देशों के बीच एक बेहतरीन कूटनीतिक रिश्ते कायम करने में सफल रहा है. भारत दोनों देशों के साथ दो अलग-अलग मुद्दों पर है. इजरायल के साथ जहां भारत व्यापार, रक्षा सौदे और इंटेलिजेंस के मुद्दे पर है, तो वहीं फिलिस्तीन के साथ मानवाधिकार, और उसकी आजादी के मुद्दे पर खड़ा रहता है. यही वजह है कि दोनो देश भारत को अपना दोस्त बताते हैं और भारत भी इन दोनों देशों को अपना दोस्त बताता है.
भारत में दो धड़ों में बटे लोगों से क्या पड़ेगा अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर असर
भारत में इस वक्त इजरायल और फिलिस्तीन को लेकर सोशलमीडिया पर भारत के लोग दो धड़ों में बटे हैं. एक तरफ जहां एक समुदाय फिलिस्तीन के समर्थन में पोस्ट करते नजर आ रहा है तो वहीं दूसरा समुदाय इजरायल की कार्रवाई को अपना समर्थन दे रहा है और कह रहा है कि किसी भी देश को अपनी सुरक्षा के लिए ऐसी कार्रवाई करने का पूरा हक है. हालांकि इन दोनों धड़ों के लोगों को यह समझने की जरूरत है कि उनके राग अलापने से विदेश नीति नहीं चलती. देश की विदेशनीति कूटनीति और विश्व में भारत की स्थिति को देख कर चलती है. इसलिए इन दोनों धड़ों को अपने देश के हालात पर चिंता करनी चाहिए ना कि दो देशों का समर्थन और विरोध करके अपने देश में नफरत की भावना फैलानी चाहिए.
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