- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- इस्लाम बनाम पश्चिम
x
इस प्रकार ये दोनों विचारधाराएं मूल रूप से समानतावादी होने के बावजूद आज अलग-अलग ढंग से असमानता को बढ़ा रही हैं।
भरत झुनझुनवाला .
इस प्रकार ये दोनों विचारधाराएं मूल रूप से समानतावादी होने के बावजूद आज अलग-अलग ढंग से असमानता को बढ़ा रही हैं। इस्लाम बाहरी अर्थात् दूसरे देशों पर आक्रमण नहीं करता, लेकिन अपने ही लोगों के प्रति असमानता का बर्ताव करता है। जबकि पश्चिमी सभ्यता दूसरे देशों का शोषण करती है और अपने लोगों के साथ समानता का व्यवहार करती है। यही कारण है कि अफगानिस्तान जैसे देश आज कुएं से निकलकर खाई में गिर गए हैं। अफगानिस्तान से अमरीकी सेना ने बाहर आकर उन्हें अमरीका के बाहरी असमानता के कहर से मुक्त कर दिया, लेकिन तालिबान ने उस देश को घरेलू असमानता के कहर में डाल दिया…
छठी सदी में अरब क्षेत्र में अधिकतर भूमि कुछ विशेष व्यक्तियों अथवा परिवारों के कब्जे में थीष इनके द्वारा ही संपूर्ण व्यापार का नियंत्रण किया जाता था। शेष जनता लगभग खानाबदोश के रूप में अपना जीवनयापन करती थी। इनके अधिकार शून्यप्रायः थे। अरब क्षेत्र में उस समय दास प्रथा का प्रचलन था। लोगों को पकड़ कर दास बनाना आम बात थी। इस स्थिति में पैगंबर मोहम्मद साहब का अवतरण हुआ। उन्होंने अरब समाज को बराबरी का पैगाम दिया। उन्होंने कहा कि अल्लाह की दृष्टि में हर मनुष्य बराबर है। आर्थिक गरीबी अथवा असमानता को दूर करने के लिए उन्होंने 'ज़कात' की व्यवस्था बनाई जिसके अंतर्गत सभी मुसलमानों को अपनी संपत्ति का 2.5 प्रतिशत हिस्सा हर वर्ष गरीबों को दान में देना होता था। विशेषज्ञों का मानना है कि 'ज़कात' की इस व्यवस्था ने उस क्षेत्रों के लोगों को बहुत राहत पहुंचाई। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि इस्लाम का पैगाम हमें समानता की ओर ले जाता है। लगभग ऐसी ही परिस्थिति पश्चिमी सभ्यता की भी थी। 1776 में अमरीका ने अपने को इंगलैंड से स्वतंत्र घोषित किया। इंगलैंड के राजा की सत्ता को समाप्त किया गया। स्वतंत्रता की उद्घोषणा में सभी मनुष्यों को बराबर बताया गया। इसी प्रकार फ्रांस में 1789 में क्रांति हुई जिसमें नारा दिया गया 'स्वतंत्रता, समानता, बिरादरी'। फ्रांस में राजशाही सत्ता को समाप्त किया गया। उसके प्रत्येक नागरिक को बराबरी का दर्जा दिया गया। इस प्रकार हम देखते हैं कि अपनी-अपनी परिस्थितियों में इस्लाम और पश्चिमी सभ्यता दोनों ने बराबरी को स्वीकार किया। समयक्रम में दोनों संस्कृतियां अलग-अलग दिशा में बढ़ीं। इस्लाम में परिवर्तन आया। मोहम्मद साहब के बाद पहले दो खलीफा अबू बक्र और उमर ने मूल रूप से मोहम्मद साहब की सादगी को अपनाए रखा। मोहम्मद साहब किसी मस्जिद के एक साधारण से कक्ष में रहते थे।
लगभग ऐसी ही व्यवस्था का इन दोनों खलीफाओं ने भी अनुसरण किया। इसके बाद तीसरे खलीफा उथमान् ने परिस्थिति में मौलिक परिवर्तन किया। लेस्ली हेज़लटन ने 'आफ्टर दि प्रोफेट' नमक पुस्तक में बताया है कि उन्होंने संगमरमर के खंभों वाले आलीशान महल बनाए जहां विदेशी भोज्य पदार्थ परोसे जाते थे। उन्होंने अपने नजदीकियों को हजारों घोड़े और दासों समेत विशाल भूमि के उपहार दिए। उथमान् के समय मोहम्मद साहब का बराबरी का पैगाम पलट गया और मोहम्मद साहब से पूर्व की सामाजिक असमानता की व्यवस्था को पुनः स्थापित कर दिया गया। उथमान् की इसी परंपरा को आगे बढ़ते हुए वर्तमान में सऊदी अरब में भव्य एवं विशाल राजमहल बनाए गए हैं और इन्हें इस्लाम-सम्मत बताया जा रहा है। पाकिस्तान में बंधुआ मजदूर की प्रथा बरकरार है। इसी क्रम में अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा महिलाओं की खरीद-बेच करना इत्यादि असमानता की परंपराएं प्रचलित हैं। इस प्रकार मोहम्मद साहब द्वारा जो बराबरी का पैगाम दिया गया था, उसे आज इस्लामिक देशों ने सर्वत्र पलट दिया है और देशों के अंदर असमानता का भारी विस्तार किया है। यद्यपि इन्होंने दूसरे देशों पर कब्ज़ा करके वहां के लोगों का शोषण नहीं किया है। पश्चिमी देशों ने अपनी विरासत को दूसरी तरह से पलटा। यूरोपीय आक्रमणकर्ताओं ने अमरीका में पूर्व में रहने वाले आदिवासियों, जिन्हें 'रेड इंडियन' कहा जाता है, उनका बड़ी संख्या में कत्लेआम किया और उनकी जमीन पर जबरदस्ती कब्जा कर लिया। इसके बाद इन्होंने अफ्रीका से अश्वेत लोगों को लाया और दास प्रथा स्थापित की जिससे कि उनके कपास के खेतों में काम करने के लिए श्रमिक उपलब्ध हो सकें। लेकिन इस असमानता को इन्होंने शीघ्र ही त्याग भी दिया। इब्राहिम लिंकन के समय दास प्रथा को गैर कानूनी घोषित किया गया। इस प्रकार अंदरूनी असमानता को मूल रूप से पश्चिम ने त्याग दिया। लेकिन दूसरे देशों के आर्थिक संसाधनों का शोषण पश्चिमी देश लगातार करते रहे।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दक्षिण अमरीका में लोकतांत्रिक व्यवस्था से चुने हुए नेताओं जैसे चिली के अयंडे का तख्ता पलट कराया और ऐसे नेताओं को सत्तारूढ़ किया जो कि अमरीका के हित साधते थे। 1995 में अमरीका की पहल पर विश्व व्यापार संगठन की स्थापना की गई जिसके अंतर्गत तकनीकी अगुआई वाले पश्चिमी देशों की बहुराष्ट्रीय कंपनियों को संपूर्ण विश्व में अपने माल को महंगे मूल्य पर बचने का अधिकार दिया गया। अमरीका ने अपने कृषि बाजार को खोलने के वचन का पालन नहीं किया। इस कारण अमरीका की समृद्धि बढ़ती रही, जबकि विकासशील देश गरीब बने रहे। अमरीकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने इन्हें महंगा माल बेचा, लेकिन भारत के किसान अमरीका को सस्ता आम नहीं बेच सके। इसी क्रम में फ्रांस ने उत्तर अफ्रीका के तमाम देशों पर कब्जा किया। उन्हें अपना उपनिवेश बनाया और वहां के लोगों के द्वारा विरोध करने पर उन्हें तमाम यातनाएं दी गईं। इंगलैंड ने भारत समेत तमाम देशों को अपना उपनिवेश बनाया और इनके संसाधनों का दोहन किया। इस प्रकार पश्चिमी सभ्यता ने अपनी सरहद के अंदर समानता को लागू किया, लेकिन अपनी सरहद के बाहर दूसरे देशों के प्रति असमानता को उतना ही बढ़ाया। कुल परिस्थिति यह है कि इस्लाम और पश्चिम दोनों ही संस्कृतियां समानता के सिद्धांत से प्रेरित हैं, लेकिन दोनों ने आज अलग-अलग तरीके से असमानता को अपनाया है। इस्लामिक देशों ने मोहम्मद साहब द्वारा बताए गए बराबरी के पैगाम को घरेलू असमानता में बदल दिया, जबकि पश्चिमी देशों ने स्वतंत्रता की उद्दघोषणा के बराबरी के पैगाम को बाहरी असमानता में बदल दिया।
इस प्रकार ये दोनों विचारधाराएं मूल रूप से समानतावादी होने के बावजूद आज अलग-अलग ढंग से असमानता को बढ़ा रही हैं। इस्लाम बाहरी अर्थात् दूसरे देशों पर आक्रमण नहीं करता, लेकिन अपने ही लोगों के प्रति असमानता का बर्ताव करता है। जबकि पश्चिमी सभ्यता दूसरे देशों का शोषण करती है और अपने लोगों के साथ समानता का व्यवहार करती है। यही कारण है कि अफगानिस्तान जैसे देश आज कुएं से निकलकर खाई में गिर गए हैं। अफगानिस्तान से अमरीकी सेना ने बाहर आकर उन्हें अमरीका के बाहरी असमानता के कहर से मुक्त कर दिया, लेकिन तालिबान ने उस देश को घरेलू असमानता के कहर में डाल दिया। आज दोनों विचारधाराओं को असमानता के मसले पर मौलिक पुनर्विचार करने की जरूरत है। इस्लाम को आंतरिक समानता और पश्चिमी सभ्यता को बाह्य समानता स्थापित करनी चाहिए। अंत में ध्यानाकर्षण करना चाहूंगा कि भारत ने मूल रूप से इस्लाम की अंदरूनी असमानता के सिद्धांत को अपनाया है। नेहरु ने जमींदारी उन्मूलन को लागू करके समानता को अपनाया था, लेकिन विशेषकर 1991 के बाद की सभी सरकारों ने आंतरिक असमानता को बढ़ाया है। छोटे उद्योगों का सफाया किया गया है और बड़े उद्योग फल-फूल रहे हैं। दिखावे के लिए मुफ्त गैस सिलेंडर बांटे जा रहे हैं।
भरत झुनझुनवाला
आर्थिक विश्लेषक
ई-मेलः [email protected]
Next Story