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चैत्र का यह पवित्र माह भारतीय धर्म और संस्कृति के लिए बड़ा महत्व रखता है
Dr. Pramod Pathak
चैत्र का यह पवित्र माह भारतीय धर्म और संस्कृति के लिए बड़ा महत्व रखता है. चैत्र नवरात्रि हिंदुओं का बहुत बड़ा धार्मिक त्यौहार है. हिंदू नव वर्ष की शुरुआत, विक्रमी संवत का बदलना, वैशाखी, पहला बैशाख जैसे भारत के सभी क्षेत्रों के त्यौहार इस माह में आते हैं. भारतीयों का एक और भी बहुत बड़ा त्यौहार रामनवमी भी इसी नवरात्रा के अगले दिन पड़ता है. भगवान राम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाने वाला यह त्यौहार हिंदुओं के लिए एक अलग मायने रखता है. भगवान राम भारतीय संस्कृति के प्रतीक चिन्ह है और भारतीय सांस्कृतिक पुनर्जागरण के अभियान का एक अभिन्न हिस्सा. भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम माना जाता है, यानी पुरुषों में श्रेष्ठतम.
सिया राम मैं सब जग जानी
ईश्वर का वह अवतार जिसे रावण और उसके राक्षसी साम्राज्य का विनाश करने के लिए धरती पर आना पड़ा. रामनवमी को हम बहुत ही श्रद्धा और उत्साह से मनाते हैं. पिछले कुछ वर्षों में शायद राम से ज्यादा चर्चा ईश्वर के अन्य किसी अवतार की नहीं हुई. इसलिए यह आवश्यक है कि हम राम के वास्तविक स्वरूप को समझें. किसी एक समूह या वर्ग विशेष के भगवान के रूप में नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति की वैश्विक पहचान की प्रतिमूर्ति के रूप में. राम केवल अयोध्या या भारतवर्ष तक सीमित नाम नहीं है. राम तो वैश्विक नाम है. बाली, जावा, सुमात्रा, मलेशिया, कंबोडिया, मॉरीशस, फिजी, थाईलैंड, श्रीलंका समेत कई देशों में राम जाने और माने जाते हैं. गोस्वामी तुलसीदास ने ठीक लिखा है -सिया राम मैं सब जग जानी, करहु प्रणाम जोर जुग पानी. राम तो सर्वव्यापी हैं, पूरी दुनिया में हिंदू संस्कृति के पहचान के रूप में स्थापित.
पूरी दुनिया के हैं राम
राम के इस वैश्विक स्वरूप का अनुभव मुझे सुदूर दक्षिण प्रशांत महासागर के किनारे बसे देश फिजी जाकर हुआ. वर्ष 2016 में फिजी में विश्व रामायण सम्मेलन आयोजित था, जो फिजी सरकार और भारत सेवाश्रम संघ के संयुक्त तत्वावधान में किया जा रहा था. भारत सेवाश्रम संघ के 100 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में होने वाले इस सम्मेलन में ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, मलेशिया, भारत, मॉरीशस, त्रिनिडाड समेत कुल आठ देशों के कोई 100 प्रतिनिधि भाग ले रहे थे. फिजी सरकार के तत्कालीन शिक्षा व संस्कृति मंत्री के निमंत्रण पर मुझे भी रामायण के प्रबंधकीय आयाम विषय पर व्याख्यान देने का अवसर मिला था. वहां जाकर मैंने राम के वैश्विक स्वरूप को महसूस किया.
रामचरितमानस ने संबल दिया
जब अंग्रेज अवध और उसके आसपास के क्षेत्रों से मजदूरों को गुलाम बनाकर आज से कोई सौ सवा सौ साल पहले ले गए थे तो शोषण और प्रताड़ना के उस दौर में इन गिरमिटिया मजदूरों को रामचरितमानस ने संबल प्रदान किया था. उस समय यह मजदूर अपने साथ मानस का छोटा संस्करण ले गए थे और उसके पाठ से वहां के कठोर परिस्थितियों का सामना करने की शक्ति पा सके थे. उन्हीं गिरमिटिया मजदूरों के वंशज आज फिजी की आबादी का एक बड़ा हिस्सा है. उनमें से कई तो वहां के सरकार में मंत्री भी हैं. उन्होंने रामायण कि उस परंपरा को आज भी कायम रखा है. उस सम्मेलन में भाग लेकर यह समझ में आया की राम का स्वरूप कितना बड़ा है.
–उनके ही नहीं, सबके हैं राम
राम का जो स्वरूप हम भारत में देखते- सुनते और समझते हैं, राम उससे बहुत ऊपर हैं. राम की व्यापकता का अपने उद्घाटन भाषण में वहां के तत्कालीन उप प्रधानमंत्री ने जिस सुन्दर तरीके से वर्णन किया, वह अद्भुत था. जबकि उप प्रधानमंत्री दूसरे धर्म के थे. राम के उस व्यापक स्वरूप पर चर्चा करने की आवश्यकता है. राम पर आज राजनैतिक लाभ से प्रेरित होकर कुछ राजनीतिक पार्टियों व उसके सहयोगी संगठन तथा कुछ समूहों ने एकाधिकार जमा लिया. यह सिद्ध करने की कोशिश की जा रही है कि राम पर सिर्फ उन्हीं का अधिकार है. राम भक्त वह नहीं है, जो राम को भजता है, राम को मानता है और राम की पूजा करता है. राम भक्त होने के लिए आज किसी दल विशेष, समूह विशेष या व्यक्ति विशेष का भी भक्त होना जरूरी है. यह राम को एक सीमित दायरे में बांधने का निंदनीय प्रयास है. राम तो हर हिंदू के आराध्य हैं. बल्कि भारत में रहने वाले अन्य धार्मिक पंथों के अनुयायियों के भी आराध्य हैं, जो हिंदू धर्म से निकले हैं.
प्रेम के प्रतीक हैं राम
आज आवश्यक है, राम के उस व्यापक स्वरूप को समझना जिसे गांधी ने ईश्वर और अल्लाह दोनों का पर्यायवाची माना था. ईश्वर, अल्लाह तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान. राम की व्याख्या तो इन दो पंक्तियों से होती है. राम तो शबरी के भी थे जिसने भक्ति और प्रेम से वशीभूत होकर राम को जूठे बेर इस उद्देश्य से खिलाए कि कहीं उसके भगवान को खट्टे बेर ना मिल जाए. और राम ने भक्त के इस आशय को सहज स्वीकार किया. राम तो केवट के भी थे जो सिर्फ राम के पांव धोने के लिए नाना प्रकार के तर्क दे रहा था. राम तो अहिल्या के भी थे. अहिल्या उद्धार के माध्यम से राम के उदारवादी दर्शन को समझा जा सकता है. राम को सिर्फ राजनीतिक स्वार्थ साधने के लिए संकुचित दायरे में सीमित करना राम की व्यापकता को झुठलाना है. राम तो उस प्रेम के प्रतीक हैं जो भक्ति और आस्था से निकलती है.
राम को समझना है तो धर्म, न्याय और नैतिकता को समझना होगा. दरअसल, राम तो नैतिकता की प्रतिमूर्ति थे.
राम और रामायण
राज्य का वास्तविक उत्तराधिकारी होने के बावजूद पिता की आज्ञा को मानकर उन्होंने सारे सुख वैभव त्याग कर बनवास स्वीकार किया. इतना ही नहीं. जब समस्त अयोध्यावासी समेत भरत ने राम को पुन:अयोध्या का राज्य संभालने के लिए पुरजोर आग्रह किया तो उसे भी राम ने बड़ी ही सहजता से अस्वीकार किया. यह उस समय की नैतिकता थी. चरित्र की उत्कृष्टता का स्तर यह था कि भरत ने भी राजा बनना स्वीकार नहीं किया क्योंकि वे राम को अयोध्या का असली उत्तराधिकारी मानते रहे. आज लोग राम और रामायण काल की बात करते हैं लेकिन सत्ता पाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं. यहां तक की लोकतांत्रिक पद्धति से चुनी गई सरकारों को भी गिराने के लिए हर तरह का हथकंडा अपनाते हैं. राम की बात करने से पहले उनका चरित्र समझना होगा. उनके दिखाए मार्ग का अनुसरण करना होगा. सिर्फ नारा लगाकर अपने को राम भक्त साबित करने का प्रयास खोखला लगता है. {लेखक स्तंभकार और आईटीआई -आइएसएम के रिटायर्ड प्रोफेसर हैं, ये उनके निजी विचार हैं.}
Gulabi Jagat
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