सम्पादकीय

क्या NEET पर जो तमिलनाडु सोच रहा है वह देश भर के छात्रों के लिए सही है?

Gulabi
15 Sep 2021 11:27 AM GMT
क्या NEET पर जो तमिलनाडु सोच रहा है वह देश भर के छात्रों के लिए सही है?
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तमिलनाडु में राष्ट्रीय प्रवेश और पात्रता परीक्षा (NEET) को लेकर इस वक्त बड़ा विवाद चल रहा है

संयम श्रीवास्तव।

में राष्ट्रीय प्रवेश और पात्रता परीक्षा (NEET) को लेकर इस वक्त बड़ा विवाद चल रहा है. यह विवाद शुरू हुआ तमिलनाडु में सेलम के कोझियार में रहने वाले धुनष के आत्महत्या को लेकर. धनुष ने 2019 में 12वीं की परीक्षा पास कर ली थी उसके बाद से ही वह देश के किसी अच्छे मेडिकल कॉलेज में दाखिला पाने के लिए नीट की तैयारी कर रहा था. लेकिन परीक्षा से पहले ही उसने परीक्षा के दबाव के कारण आत्महत्या कर ली जिसके बाद पूरे राज्य में अब यह मांग उठने लगी है कि तमिलनाडु को देश के NEET परीक्षा से बाहर कर लिया जाए.

राज्य की एम के स्टालिन सरकार ने इसके लिए विधानसभा में एक बिल भी पारित कर दिया है, जो कहता है कि तमिलनाडु के छात्र अब नीट में हिस्सा नहीं लेंगे और उन्हें राज्य के मेडिकल कॉलेजों में 12वीं में प्राप्त अंकों के अनुसार दाखिला मिलेगा. एम के स्टालिन के इस फैसले का समर्थन बीजेपी को छोड़ राज्य की सभी पार्टियों ने किया है. लेकिन स्टालिन सरकार के फैसले ने देश भर में यह बहस छेड़ दी है कि क्या किसी राज्य का इस तरह से किसी केंद्रीय परीक्षा से खुद को बाहर कर लेने की बात करना उचित है या नहीं.
तमिलनाडु सरकार के फैसले के दो पहलू हैं
तमिलनाडु में NEET के विरोध में आज से पहले भी आवाज़ें उठती रही हैं. राज्य में जब एआईडीएमके की सरकार थी तब भी एक ऐसा ही बिल विधानसभा में पारित हुआ था. लेकिन बाद में वह कानून नहीं बन पाया. स्टालिन सरकार का यह फैसला राज्य के राजनीतिक रूप से देखें तो यह उनके अनुरूप लगता है. क्योंकि इस फैसले से स्टालिन ने ना सिर्फ युवाओं के एक बड़े वर्ग को अपनी ओर किया है बल्कि राज्य की उन तमाम राजनीतिक पार्टियों का मुंह भी बंद करा दिया है जो NEET और धनुष की आत्महत्या को लेकर उनका घेराव कर रही थीं.
हालांकि जब इस फैसले को हम राष्ट्रव्यापी तरीके से देखते हैं तो इसमें विभाजन की बू आती है. तमिलनाडु का इतिहास रहा है कि वह देश से हट के बात करता है. चाहे वह भाषा की बात हो या फिर अब NEET की. सोचिए कि अगर सभी राज्य इसी तरह से अपने छात्रों को 12वीं की परीक्षा के आधार पर मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन देने लगें तो उन राज्यों के बच्चों का क्या होगा जिनके राज्य में या तो ज्यादा बेहतर मेडिकल कॉलेज नहीं है या फिर उनकी संख्या कम है. जब राष्ट्रीयता की बात आती है तो NEET जैसी परीक्षाएं देश को एक दिखाने का काम करती हैं, जिनमें पूरे देश का छात्र बिना भेद-भाव के भाग लेता है और जो बेहतर होता है उसे देश के सर्वोच्च मेडिकल कॉलेज में पढ़ने का मौका मिलता है.
स्टालिन सरकार का कहना है कि NEET परीक्षा से छात्र दबाव में आ जाते हैं. इसीलिए उन्होंने विधानसभा में प्रस्तावित बिल में कहा है कि छात्रों को 12वीं में मिले अंकों के अनुसार मेडिकल कॉलेजों में दाखिला मिलेगा. लेकिन एम के स्टालिन को इस बात का भी जवाब देना चाहिए कि अगर NEET से छात्र दबाव में आ जाते हैं तो क्या जब राज्य के मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन 12वीं में मिले अंकों पर होगा तो उस 12वीं की परीक्षा के लिए छात्र दबाव में नहीं आएंगे. इससे बड़ी बात हमें यह समझनी होगी कि बहुत से ऐसे भी बच्चे होते हैं जिनके 12वीं में भले ही नंबर कम हों लेकिन वह कड़ी मेहनत कर NEET जैसी परीक्षा को भी पास कर लेते हैं. लेकिन तमिलनाडु का यह नया बिल उनसे यह मौका भी छीनने का काम करेगा. साथ में यह बिल लाकर तमिलनाडु अन्य राज्यों के उन होनहार छात्रों से भी तमिलनाडु के बेस्ट मेडिकल कॉलेजों में पढ़ने का मौका छीनेगी जिन्होंने तीन-चार साल मेहनत करके खुद को इस काबिल बनाया है.
क्या कहता है तमिलनाडु का नया बिल
एम के स्टालिन सरकार द्वारा लाए गये विधेयक के प्रावधान कहते हैं कि अब राज्य के मेडिकल कॉलेजों में स्नातक स्तर के पाठ्यक्रमों में जिसमें चिकित्सा, डेंटल चिकित्सा, आयुर्वेद और होम्योपैथी शामिल है, में प्रवेश लेने के लिए छात्रों को NEET की परीक्षा देने के जरूरत नहीं है. उनका दाखिला इन कॉलेजों में उनके 12वीं के अंकों के हिसाब से होंगे. इसके साथ ही इस विधेयक में राज्य के सरकारी स्कूल से पढ़े छात्रों के लिए साढ़े सात फीसदी का आरक्षण भी रखा गया है, ताकि इन मेडिकल कॉलेजों में उस वर्ग के बच्चों को भी एडमिशन मिले जो अच्छे और महंगे प्राइवेट स्कूलों से नहीं पढ़ सकते हैं.
NEET से खुद को अलग करने के पीछे दिए गए तर्क
तमिलनाडु की एम के स्टालिन सरकार ने आत्महत्या करने वाले छात्र धनुष का जिक्र करते हुए कहा कि NEET जैसी परीक्षा राष्ट्रीय स्तर पर केवल एक ही दिन होती है इस वजह से प्रतियोगी छात्र काफी दबाव में आ जाते हैं. तमिलनाडु सरकार का कहना है कि नए विधेयक के जरिए वह सामाजिक न्याय करना चाहती है. इस नए विधेयक से आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के साथ भी बराबरी का व्यवहार हो सकेगा और सबसे बड़ी बात की राज्य के छात्रों को केंद्रीय परीक्षा पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा.
लेकिन एम के स्टालिन सरकार यह बताना भूल गई कि इस नए विधेयक के बाद उन छात्रों का क्या होगा जो तमिलनाडु के बाहर देश के अन्य टॉप मेडिकल कॉलेजों में चिकित्सा की पढ़ाई करना चाहते हैं. दूसरी बात कि क्या राज्य के पास इतने सरकारी मेडिकल कॉलेज हैं कि वह तमिलनाडु के छात्रों को मेडिकल की पढ़ाई की सुविधा दे सकें. तमिलनाडु में फिलहाल 26 ऐसे सरकारी मेडिकल कॉलेज हैं जिनमें NEET के तहत MBBS में दाखिला होता है.
खैर स्टालिन सरकार ने इस विधेयक को पारित करते समय रिटायर्ड जज एके राजन के उस उच्चस्तरीय कमिटी के रिपोर्ट का भी हवाला दिया जिसे NEET होना चाहिए या नहीं के जांच के लिए बनाया गया था. इस समिति के मुताबिक उन्होंने 86 हजार लोगों से बातचीत की जिसमें यह सामने निकल कर आया कि कक्षा 12 के आधार पर मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन लेने वाले छात्रों का प्रदर्शन नीट पास करने वालों छात्रों से बेहतर था. यहां तक कि इन 86 हजार लोगों में से ज्यादातर ने नीट नहीं होना चाहिए का समर्थन किया था.
क्या यह बिल कानून बन सकता है?
तमिलनाडु में NEET से राज्य को बाहर करने की मांग बहुत पुरानी है. यह तब भी उठ चुकी है जब राज्य में एआईडीएमके की सरकार थी. उस वक्त भी राज्य को नीट से बाहर करने का प्रस्ताव लाया गया था. लेकिन तब राष्ट्रपति ने इस बिल पर सहमति नहीं जताई थी, जिस वजह से यह बिल कानून नहीं बन पाया था. इस बार भी यह बिल विधानसभा में पारित होने के बाद राज्यपाल के पास जाएगा फिर वहां से राष्ट्रपति के पास और अगर राष्ट्रपति हस्ताक्षर करते हैं तभी यह कानून बनेगा. लेकिन जिस तरह से बीजेपी ने विधानसभा में इस बिल का विरोध किया और विधानसभा का बॉयकाट किया उससे साफ है कि आगे इस बिल को खारिज कर दिया जाएगा. हालांकि यह जरूर है कि एम के स्टालिन सरकार को इस बिल से अच्छा राजनीतिक फायदा पहुंचा है.
उन छात्रों का क्या जिनके राज्य में ज़ीरो या फिर एक मेडिकल कॉलेज हैं
तमिलनाडु सरकार ने जिस तरह से NEET से राज्य को निकालने की बात की है अगर उसी तरह से सभी राज्य फैसला लेने लगें तो उन राज्यों के छात्रों का क्या होगा जिनके यहां या तो एक मेडिकल कॉलेज है या एक भी नहीं है. देश में चार ऐसे राज्य हैं जहां NEET के माध्यम से MBBS में एडमिशन मिलने वाले सरकारी कॉलेजों की संख्या शून्य है. इनमें दमन और दीव, लक्षद्वीप, नागालैंड और सिक्किम शामिल हैं. वहीं 12 राज्य ऐसे हैं जहां NEET के माध्यम से MBBS में एडमिशन देने वाले सरकारी कॉलेजों की संख्या 1 से 5 तक ही सीमित है. तमिलनाडु के पास ऐसे कॉलेजों की संख्या सबसे ज्यादा 26 हैं जिनमें दूसरे राज्यों के छात्रों को भी एडमिशन मिलता है. लेकिन इस बिल के बाद क्या ऐसा हो पाएगा.
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