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मंगलवार को राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने मौजूदा वित्त वर्ष 2021-22 की दूसरी तिमाही के जीडीपी के अनुमान जारी कर दिए हैं
संयम श्रीवास्तव मंगलवार को राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने मौजूदा वित्त वर्ष 2021-22 की दूसरी तिमाही के जीडीपी के अनुमान जारी कर दिए हैं, जिसमें जुलाई से सितंबर 2021 तिमाही के इन आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले वर्ष की समान तिमाही की तुलना में इस वर्ष 8.4 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है. हालांकि अगर हम इसकी तुलना 2 साल पहले की जुलाई-सितंबर तिमाही से करते हैं तो यह वृद्धि महज 0.3 फ़ीसदी ही नजर आती है. इसकी एक बड़ी वजह है निजी खपत का कमजोर पड़ना. दरअसल अगर हम अंतिम निजी खपत व्यय पर नजर डालते हैं तो हमें पता चलता है कि आज के आंकड़े महामारी के पहले वर्ष यानि 2019-20 की समान तिमाही से अब भी 3.5 फ़ीसदी कम हैं.
यानि कि एक तरफ जहां कुल जीडीपी में सुधार हो रहा है, वहीं उसकी आड़ में कहीं ना कहीं निजी खपत की कमजोरी छिप रही है, जो सकल घरेलू उत्पाद पर असर डाल रही है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि महामारी के कारण निजी खपत में भारी कमी आई थी लेकिन अब धीरे-धीरे इस क्षेत्र में भी सुधार की जरूरत है. हमें समझना होगा कि सरकार हमेशा सुधार प्रक्रिया को फंड नहीं दे सकती, उसका खुद का राजकोषीय गणित कठिन होता जा रहा है. क्योंकि निजी मांग कम है. हालांकि टैक्स वसूली में जरूर बेहतरी देखी गई, लेकिन ऐसा मुद्रास्फीति दबाव में इजाफा होने से हुआ है.
लोग कम खर्च कर रहे हैं
इस वर्ष निजी खपत, जो कुल सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 55 फ़ीसदी हिस्सा कवर करता है, विकास की गाड़ी का बड़ा इंजन है. उसमें पिछले वर्ष के दूसरी तिमाही के मुकाबले महज 8.6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. जो संतोषजनक नहीं है. क्योंकि बीते साल दूसरी तिमाही में निजी उपभोग व्यय में 11 फ़ीसदी से अधिक की कमी आई थी. यानि कि इस वर्ष दूसरी तिमाही में निजी खपत 2 साल पहले की समान तिमाही की तुलना में बहुत कम नजर आई. साफ शब्दों में कहें तो लोगों ने इस साल 2 साल पहले की समान तिमाही की तुलना में कम खर्च किया है.
वहीं दूसरी ओर इसके विपरीत व्यवसाय द्वारा किए गए निवेश जो कुल जीडीपी की वृद्धि में दूसरा सबसे बड़ा योगदान, 33 फीसदी का देते हैं. उनकी इस वर्ष की दूसरी तिमाही में 11 फ़ीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई. जो पिछले वर्ष के 8.6 फ़ीसदी से ज्यादा रही. साफ शब्दों में कहें तो बीते 5 वर्षों में किसी भी दूसरे तिमाही की तुलना में इस दूसरी तिमाही में कंपनियों ने अधिक निवेश किया है. इससे साफ पता चलता है कि भारत के आर्थिक सुधार के बारे में फर्म आशावादी हैं.
स्थिति अभी और गड़बड़ हो सकती है
कोरोनावायरस के नए वेरिएंट ओमिक्रोन के सामने आने के बाद न सिर्फ भारत बल्कि दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं पर दबाव बढ़ सकता है. इससे निर्यात में भी कमी आ सकती है, जो वृद्धि को प्रभावित करेगा. वहीं अगर हम सरकारी वित्त से जुड़े संभावित खतरों की बात करें तो निजी खपत को सुधार के बोझ में अपनी हिस्सेदारी निभानी होगी. हालांकि अगर उपभोक्ता रुझान भविष्य में सुधरता है तो सुधार और बढ़ोतरी की पर्याप्त संभावनाएं मौजूद हैं. निजी खपत में सुधार काफी कुछ इस बात पर भी निर्भर करेगा कि मुद्रास्फीति की राह आगे किस तरह की होती है. फिलहाल तो हमें अर्थव्यवस्था में मांग में सुधार के संकेतों के लिए मौजूदा तिमाही के आंकड़ों का इंतजार करना होगा.
जीवीए बेहतर हुआ है
तिमाही में वृद्धि के आंकड़ों का विश्लेषण करते समय ग्रॉस वैल्यू ऐडेड (GVA) को देखना बहुत मायने रखता है. क्योंकि इसके आंकड़े हमें पूरी अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य के बारे में बताने के अलावा यह भी बताते हैं कि कौन से क्षेत्र अभी भी सुधार को लेकर संघर्ष कर रहे हैं और कौन से क्षेत्र सुधार का नेतृत्व कर रहे हैं. दरअसल जीडीपी, जीवीए डेटा लेकर और विभिन्न उत्पादों पर सरकार द्वारा अर्जित टैक्स को जोड़कर फिर उत्पादों पर सरकार द्वारा दी गई सब्सिडी को घटाकर निकाला जाता है. इसलिए जीवीए पर नजर बनाए रखना जरूरी है. अगर हम जीवीए के आंकड़ों को देखें तो पता चलेगा कि पिछले साल की दूसरी तिमाही के मुकाबले इस वर्ष जीवीए बेहतर है. हालांकि खनन, कंस्ट्रक्शन और सेवाएं, ट्रेड, होटल और सभी फाइनेंशिल सर्विसेज के स्तर में गिरावट देखी गई है.
अर्थव्यवस्था को ठीक करने में अभी 2 साल और लगेंगे
महामारी के दौर ने भारत की अर्थव्यवस्था को इस तरह से चोट पहुंचाई है कि इसे अभी 'V' आकार की रिकवरी के लिए लगभग 2 वर्ष और लगेंगे. हालांकि राहत की बात जरूर है कि अर्थव्यवस्था 2020 की दूसरी तिमाही में आई मंदी से उबर रही है. अगर हम अपनी अर्थव्यवस्था में V आकार की रिकवरी चाहते हैं तो हमें Q2 GDP और GVA को बहुत अधिक बढ़ाना होगा और इन्हें बढ़ने में कम से कम 2 साल और लग सकते हैं. अगर हम मौजूदा वित्त वर्ष की पहली दो तिमाहियों के आंकड़ों को देखें तो जीवीए और जीडीपी दोनों के आंकड़े क्रमशः 3.5 और 4.5 फ़ीसदी हैं. जो साल 2019 की पहली छमाही की तुलना में बेहद कम हैं. इसलिए सरकारों को पहले इसे सुधारने की ओर कदम उठाने चाहिए.
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