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टीआरएस को भाजपा के हाथों लगा झटका
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हैदराबाद के जीएचएमसी यानी ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपल कॉरपोरेशन चुनाव में तेलंगाना में सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति यानी टीआरएस को भाजपा के हाथों लगा झटका क्या उसके मुखिया के. चंद्रशेखर राव की राजनीति के लिए आईना है? दरअसल तेलुगुभाषी क्षेत्र की राजनीति में केसीआर यानी के. चंद्रशेखर राव पर यह व्यंग्योक्ति एकदम सही उतरती है कि ऐसा कोई सगा नहीं, जिसे हमने ठगा नहीं।
कांग्रेस से अपनी राजनीतिक पारी शुरू करने वाले राव ने तेलुगु देशम पार्टी की हवा चलने पर उसमें सत्ता भोगी। चंद्रबाबू नायडू ने जब किनारे किया तो उन्होंने अलग तेलंगाना राज्य आंदोलन को हवा देकर अपना उल्लू सीधा किया। इसके लिए फिर से कांग्रेस से हाथ मिलाकर यूपीए-1 के कार्यकाल में केंद्रीय मंत्री रहे और फिर 2009 के बाद उसी की राज्य सरकार के खिलाफ आंदोलन, मगर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से राबता रखकर तेलंगाना राज्य बनवा लिया।
पृथक राज्य के लिए आंदोलन और यूपीए-2 से उसे मंजूरी दिलवाने तक राव ने सोनिया गांधी को नए राज्य में टीआरएस एवं कांग्रेस के गठबंधन की सरकार बनाने का आश्वासन दिए रखा। तेलंगाना अलग राज्य बना तो राव ने दिल्ली आकर सोनिया गांधी का धन्यवाद किया, मगर नए राज्य में अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा करके कांग्रेस के पांवों तले जमीन खींच ली। वर्ष 2014 के चुनाव में टीआरएस को राज्य विधानसभा में अपने बूते बहुमत मिल गया। तेलंगाना राज्य के पहले मुख्यमंत्री राव बने।
राव उसके बाद भी चैन से नहीं बैठे और राज्य में कांग्रेस को नेस्तनाबूद करने के लिए उसके विधायकों और विधानपार्षदों सहित तमाम प्रमुख नेताओं को अपने साथ मिला लिया। फिर भला तेलुगु देशम पार्टी कैसे बची रह जाती, सो उसके विधायकों और नेताओं को उन्होंने अपने बाड़े में हांक कर तेलंगाना में विपक्ष ही नहीं, लोकतंत्र को भी भोथरा कर दिया। उसके बाद पूरे पांच साल उनके परिवार के आधा दर्जन सदस्यों ने ही तेलंगाना को मनमानी राजनीति की लीक पर चलाया।
वर्ष 2019 चुनाव से पहले राव ने रायतु बंधु के नाम से किसानों को नकद सहायता देने की योजना चलाई और विधानसभा चुनाव में पहले से भी तगड़ा हाथ मार लिया। हालांकि हाल में हैदराबाद के नगर निगम चुनावों में उसकी दशा पहले वाली नहीं रही और भाजपा ने उसे पुरजोर पटखनीदी है। इस बीच भाई-भतीजावाद से लेकर ओवैसी की पार्टी एआइएमआइएम से सांठगांठ तक को भाजपा के तमाम केंद्रीय नेताओं ने हैदराबाद में छापामार शैली में के. चंद्रशेखर राव की पार्टी और सरकार को कठघरे में खड़ा किया।
वृहत्तर हैदराबाद नगर निगम के चुनाव प्रचार के अंतिम दौर में भाजपा ने शहर में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का एक बड़ा रोड शो आयोजित करवाया। योगी आदित्यनाथ ने भारतीय जनता पार्टी को बहुमत मिलने पर हैदराबाद का नाम भाग्यनगर कर देने जैसे ध्रुवीकरण के ऐसे तीर छोड़े कि कांग्रेस और तेलुगु देशम पार्टी विहीन चुनाव मैदान में बहुसंख्यक मतदाताओं के बीच भाजपा एक नई उम्मीद बनकर खड़ी होती दिखी।
अलग तेलंगाना राज्य बनवाने की पुण्याई और ओवैसी की पार्टी एआइएमआइएम के गुपचुप समर्थन के बूते टीआरएस हालांकि 55 सीट जीत कर नगर निगम में सबसे बड़ा पार्षद दल तो बन गया, मगर भाजपा ने भी 48 सीट जीतकर उसे कड़ी चुनौती दी है। भाजपा के ध्रुवीकरण का फायदा ओवैसी को यह मिला कि वह अपनी सीटें बरकरार रखने में कामयाब रही। अब भारतीय जनता पार्टी या टीआरएस में से कोई भी एआइएमआइएम के बिना बहुमत से सदन नहीं चला सकता। हालांकि भाजपा हैदाराबाद में चाहकर भी एआइएमआइएम से गठबंधन की नहीं सोच सकती, क्योंकि उसकी विचारधारा ओवैसी से बिल्कुल इतर है। भाजपा के लिए इसका दूरगामी असर भी हो सकता है।
इतना तो तय है कि हैदराबाद के निगम चुनाव ने जता दिया है कि खुद को तेलंगाना में अपने पैरों पर खड़ा करने में कांग्रेस की नाकामी का फायदा उठाकर ओडिशा और पश्चिम बंगाल की तरह भाजपा ने उसके जनाधार को अपने पक्ष में करना शुरू कर दिया है। इसे और तेज करने से भाजपा को रोकने वाला तेलंगाना में अब कोई नहीं है और अगले विधानसभा चुनाव में उसका धावा टीआरएस की गद्दी पर ही होगा। अब के. चंद्रशेखर राव को तेलंगाना की गद्दी से ही बंधे रहना पड़ेगा। तेलंगाना की गद्दी अपने बेटे केटीआर को सौंप कर राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के खिलाफ मोर्चेबंदी की उनकी हालिया घोषणा भी टांय टांय फिस्स हो जाएगी। राव को राजनीति में भाजपा उन्हीं की रणनीति से चित कर रही है।
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