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संजय पोखरियाली: मनमोहन सरकार में कानून मंत्री रहे अश्विनी कुमार ने भी कांग्रेस छोड़ दी। अभी कुछ समय पहले आरपीएन सिंह कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चले गए थे। इसके पहले जितिन प्रसाद भी इसी राह पर चले थे और ज्योतिरादित्य सिंधिया भी। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अमरिंदर सिंह को जिस तरह पंजाब के मुख्यमंत्री पद से हटाया गया, उसके बाद उनके सामने कांग्रेस छोड़ने के अलावा और कोई उपाय नहीं रह गया था। 46 वर्षो से कांग्रेस से जुड़े रहे अश्विनी कुमार ने पार्टी छोड़ने की घोषणा करने के बाद इसका उल्लेख भी किया कि अमरिंदर सिंह को बुरी तरह अपमानित किया गया। उनका यह भी कहना है कि कांग्रेस में अन्य वरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा हो रही है।
यह उल्लेखनीय है कि अश्विनी कुमार जी-23 कहे जाने उस समूह का हिस्सा नहीं थे, जिसके नेता कांग्रेस नेतृत्व के तौर-तरीकों पर सवाल उठाते रहे हैं। वह तो गांधी परिवार के करीबी थे और जी-23 के नेताओं की ओर से उठाए जाने वाले कई मुद्दों से असहमत भी थे। उनके पार्टी छोड़कर जाने के बाद कांग्रेसजन यह कह सकते हैं कि वह व्यापक जनाधार वाले कोई बड़े नेता नहीं थे, लेकिन सवाल यह है कि आखिर पार्टी में ऐसे कितने नेता बचे हैं, जो बड़ा जनाधार रखते हैं?
क्या एक के बाद एक नेताओं के पार्टी छोड़कर जाने से गांधी परिवार की सेहत पर कोई असर पड़ने वाला है? कायदे से तो उसे उन कारणों की तह तक जाना चाहिए, जिनके चलते उसके नेता पार्टी छोड़कर जा रहे हैं, लेकिन इसमें संदेह है कि ऐसा कुछ होगा। इसका एक कारण तो यह है कि आज कांग्रेस में उन्हीं का बोलबाला है, जो गांधी परिवार की चाटुकारिता करने में माहिर हैं और दूसरा यह कि खुद यह परिवार किसी राजघराने जैसा व्यवहार कर रहा है। वह यही प्रतीति कराता है कि इस देश पर शासन करना उसका जन्मसिद्ध अधिकार है और पिछले दो लोकसभा चुनावों में देश की जनता ने कांग्रेस को नकार कर कोई बड़ी गलती कर दी है।
शायद यही कारण है कि कांग्रेस नेतृत्व अपनी खामियों पर गौर करने के लिए तैयार नहीं। वह अश्विनी कुमार की बातों पर शायद ही ध्यान दे, लेकिन उनका यह कथन महत्वपूर्ण है कि यदि देश की जनता कांग्रेस के साथ नहीं खड़ी हो रही है तो इसी कारण कि वह जो विकल्प उपलब्ध करा रही है, वह उसे स्वीकार नहीं।