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सतत विकास लक्ष्य-7 (सभी के लिए सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा) के चार उप-लक्ष्य हैं-
मनीष अग्रवाल सतत विकास लक्ष्य-7 (सभी के लिए सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा) के चार उप-लक्ष्य हैं- बिजली की 100 फीसदी उपलब्धता, 100 फीसदी स्वच्छ रसोई ईंधन, आधुनिक रिन्यूएबल्स (नवीकरणीय या अक्षय ऊर्जा स्रोत) की बढ़ी साझेदारी और अर्थव्यवस्था की ऊर्जा तीव्रता कम करना।
इनमें बिजली की 100 फीसदी उपलब्धता, 100 फीसदी स्वच्छ रसोई ईंधन और आधुनिक रिन्यूएबल्स की बढ़ी साझेदारी में आने वाली विभिन्न बाधाओं पर पिछले लेख में चर्चा की गई थी। अब अर्थव्यवस्था की ऊर्जा तीव्रता (यानी किसी अर्थव्यवस्था में ऊर्जा की खपत की तीव्रता) कम करने से जुड़े वित्तीय निहितार्थ समझने का प्रयास करते हैं।
इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के इंडिया एनर्जी आउटलुक के मुताबिक भारत अपनी अर्थव्यवस्था में ऊर्जा तीव्रता को 2005 के स्तरों से 35 फीसदी कम करने की प्रतिबद्धता को पार करने वाला है। इसका मतलब है कि जीडीपी में हर 1 फीसदी बढ़त पर भारत की ऊर्जा खपत 1 फीसदी से कम बढ़ रही है।
इस लक्ष्य को हासिल करने का श्रेय काफी हद तक सरकार द्वारा एलईडी बल्ब और कम बिजली खपत में चलने वाले कृषि पंप जैसी योजनाओं को फंड देने को जाता है। अमेरिका और चीन भारत से ज्यादा ऊर्जा तीव्रता वाले देश हैं, वहीं जापान, ब्राजील और अग्रणी यूरोपीय देश भारत से ज्यादा एफीशिएंट हैं यानी कम ऊर्जा खपत करते हैं।
सवाल यह है कि भारत बढ़ी हुई सब्सिडी की जरूरतें और ईंधन की खपत कम करने के लिए फंड कहां से लाएगा क्योंकि इससे कर राजस्व भी घटेगा? 'कार्बन टैक्स' (कोयले और तेल पर कर) जीवाश्म ईंधन की खपत नहीं घटाता क्योंकि कोई विकल्प नहीं हैं। बल्कि इससे लागत बढ़ जाती है और अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धात्मकता घटती है।
भारत को अपना सीमित वित्त ऊर्जा को सस्ता बनाने पर ध्यान केंद्रित करने में खर्च करना है। भारत को इस समय जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से असुरक्षित समुदायों को बचाने पर भी खर्च करने की जरूरत है। स्वच्छ ऊर्जा के लिए फंडिंग को अमीर देशों की मदद की बहुत जरूरत है, जिन्होंने समृद्धि पाने के लिए पहले ही काफी उत्सर्जन किया है।
अमीर देश कैसे मदद कर सकते हैं? ग्रीन बॉन्ड्स और ईएसजी फंड्स का लक्ष्य मुख्यत: रिन्यूबल एनर्जी प्रोजेक्ट हैं और इनका उद्देश्य अपने निवेश पर अच्छा रिटर्न पाना है। इसके विपरीत, कोयले में निवेश को 'अपमानजनक' बनाकर उन्होंने बदलाव की प्रक्रिया पर बोझ बढ़ा दिया है और इससे वृद्धि में मदद करने के लिए पर्याप्त ऊर्जा की उपलब्धता में जोखिम की आशंका बढ़ती है। यूरोपियन यूनियन ने आयात पर 'कार्बन बॉर्डर टैक्स' का प्रस्ताव दिया है, जिससे उनके उद्योगों की प्रतिस्पर्धात्मकता बनी रहे (जो कि कम उत्सर्जन की लागत वहन कर रहे हैं)।
पेरिस समझौते का अनुच्छेद 9 यह निर्धारित करता है कि विकसित देश विकासशील देशों को उत्सर्जन घटाने और स्वच्छ ऊर्जा अपनाने, दोनों के संबंध में सहायता के लिए वित्तीय संसाधन प्रदान करेंगे। समझौते में यह परिकल्पना की गई है कि 2020 से हर साल सार्वजनिक और निजी संसाधनों में 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाने की आवश्यकता होगी। हालांकि, अभी भी विकासशील देशों के लिए मायने रखने वाली पहलों के लिए आर्थिक रूप से मदद देने की अमीर देशों के लिए कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं है।
भारत को ग्रिड स्टोरेज और हाइड्रोजन इंफ्रास्ट्रक्चर के अपने कार्यक्रमों को ऐसी वित्तीय प्रतिबद्धताओं से सीधे जोड़ना चाहिए। सतत विकास लक्ष्य 7 (एसडीजी-7) पर भारत की प्राथमिकताओं को एसडीजी 8 (अच्छी कार्य और आर्थिक वृद्धि) और एसडीजी 10 (कम असमानता) के अनुरूप होना चाहिए।
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