सम्पादकीय

क्या भोजपुरी भाषियों को डॉमिनेटिंग और आततायी बोलकर झारखंड में नए वोटबैंक की तैयारी है

Rani Sahu
22 Sep 2021 1:37 PM GMT
क्या भोजपुरी भाषियों को डॉमिनेटिंग और आततायी बोलकर झारखंड में नए वोटबैंक की तैयारी है
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झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Chief Minister Hemant Soren) ने भोजपुरी भाषा (Bhojpuri Language) पर एक विवादित बयान देकर देश में एक नए फसाद को खड़ा कर दिया है

संयम श्रीवास्तव झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Chief Minister Hemant Soren) ने भोजपुरी भाषा (Bhojpuri Language) पर एक विवादित बयान देकर देश में एक नए फसाद को खड़ा कर दिया है. दरअसल हेमंत सोरेन ने एक अंग्रेजी चैनल को दिए अपने इंटरव्यू में यह बयान दिया है कि भोजपुरी बोलने वाले लोग डॉमिनेटिंग होते हैं. झारखंड आंदोलन के दौरान भी भोजपुरी बोलने वाले लोगों ने आंदोलनकारियों को गालियां दी थीं. यहां तक की औरतों से बदसलूकी भी की गई थी. हेमंत सोरेन का कहना है कि भोजपुरी वाले लोग अपार्टमेंटों में रहते हैं. जंगलों और गांव में नहीं रहते हैं. इसलिए उनकी भाषा को हम क्षेत्रीय भाषा का दर्जा नहीं दे सकते हैं.

हेमंत सोरेन के इस बयान ने झारखंड के साथ-साथ हिंदी भाषी राज्यों में भी राजनीति गरमा दी है. जहां भोजपुरी बोली जाती है. चाहे वह बिहार हो या उत्तर प्रदेश. हेमंत सोरेन का यह बयान हो सकता है कि उन्हें झारखंड में लाभ पहुंचाए, लेकिन किसी राज्य के मुख्यमंत्री द्वारा दिया गया ऐसा बयान राज्य में विभाजन की नींव रखने जैसा होता है. झारखंड बिहार से जरूर अलग हो गया है, लेकिन झारखंड में आज भी बहुतायत में लोग हैं जो भोजपुरी भाषा का इस्तेमाल करते हैं. ऐसे में भोजपुरी बोलने वालों को डोमिनेटिंग और आततायी बताना उन तमाम लोगों को झारखंड से अलग कर देना है जो आज भी झारखंड के शहरी हैं. हालांकि हेमंत सोरेन के बयान के कुछ और भी पहलू हैं और लोगों को उस पर भी विचार करना चाहिए.
बीजेपी के बड़े आदिवासी नेताओं की चुप्पी का क्या है मतलब
हेमंत सोरेन की यह बातें सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही हैं. जिसको लेकर बीजेपी के बड़े नेताओं ने हेमंत सोरेन की कड़ी निंदा करते हो खूब बयानबाजी की है. लेकिन इसमें सबसे खास बात यह है कि अभी तक इस मुद्दे पर झारखंड के उन बीजेपी आदिवासी नेताओं के बयान नहीं आए हैं जो राज्य में बीजेपी के लिए बड़ा आदिवासी चेहरा हैं. चाहे उनमें पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी हों या फिर अर्जुन मुंडा. हालांकि, बीजेपी के नेता रघुवर दास ने जरूर हेमंत सोरेन के बयान की निंदा की है. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने भी हेमंत सोरेन की कड़ी आलोचना की है.
बीजेपी इस मुद्दे पर तर्क दे रही है कि झारखंड के पलामू प्रमंडल के अधिकतर जिलों में लोग भोजपुरी और मगही बोलते हैं. वहीं संथाल परगना के कुछ जिलों में अंगिका, भोजपुरी और बंगाली बोली जाती हैं. जमशेदपुर, बोकारो, हजारीबाग और रांची जैसे शहरों में लोग भोजपुरी, अंगिका, मगही तीनों भाषाएं बोलते हैं ऐसे में क्या मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इन्हें क्षेत्रीय भाषा नहीं मानेंगे. हालांकि इस मुद्दे पर बीजेपी के बड़े आदिवासी चेहरों की चुप्पी कुछ और ही कहानी बयान करती है. दरअसल झारखंड के बड़े आदिवासी समूह हेमंत सोरेन के बयान के साथ खड़े हैं. इसलिए बीजेपी के बड़े आदिवासी चेहरों को भी पता है कि इस मुद्दे पर उनका खामोश रहना ही उनके राजनीतिक करियर के लिए बेहतर होगा.
आखिर इस विवाद की नींव क्या है
झारखंड में बाहरी बनाम क्षेत्रीय की लड़ाई को समझने के लिए हमें उस दौर में चलना होगा. जब झारखंड बिहार का हिस्सा हुआ करता था. 1960 के दशक में झारखंड बिहार के पिछड़े इलाकों में आता था. यही वजह थी कि उस वक्त इस क्षेत्र का उतना विकास हो नहीं पाया जितना कि बिहार के अन्य हिस्सों का हुआ. झारखंड की सामाजिक स्थिति को जब आप देखेंगे तो यह दो हिस्सों में बटा हुआ नजर आएगा. एक हिस्सा जो संभ्रांत है, सशक्त है. जिसके पास पूंजी की कमी नहीं है. लेकिन वह हिस्सा झारखंड के मूल लोगों का नहीं है. इन लोगों की संपत्ति भले ही झारखंड में है, लेकिन इनका मूल निवास या तो बिहार में है या फिर उत्तर प्रदेश में. हालांकि ये लोग झारखंड में वर्चस्व रखते हैं जिनकी बोली अवधी, मैथिली, अंगिका, मगही, भोजपुरी या हिंदी है. इनका वर्चस्व राज्य की शिक्षण संस्थाओं में भी दिखता है, जहां ज्यादातर पढ़ाई लिखाई हिंदी और अंग्रेजी में होती है. इस वजह से शिक्षा में भी इन्हीं लोगों का दबदबा है.
इस माहौल की वजह से कहीं ना कहीं दूसरा तबका जो आज भी कमजोर और पिछड़ा हुआ है वह अपने आप को इस सामाजिक ढांचे में कंफर्टेबल महसूस नहीं करता. चाहे विकास का स्तर हो या फिर शिक्षा का इन दोनों ही जगहों में बढ़त इन्हीं लोगों को मिली जिनकी भाषा गैर क्षेत्रीय भाषा थी. यही वजह है कि झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इस तरह का बयान देते हैं तो आदिवासी समाज उनके साथ खड़ा होता है. क्योंकि झारखंड के आदिवासी समाज की यही हकीकत है.
हेमंत सोरेन का क्षेत्रीय भाषा को लेकर बात करना कितना ठीक
2009 में यूनेस्को ने एक रिपोर्ट जारी की थी. जिसका नाम है 'एटलस ऑफ वर्ल्ड लार्जेस्ट लैंग्वेज इन डेंजर' इस रिपोर्ट में कहा गया था कि आने वाले 100 वर्षों में दुनिया में मौजूद 90 फ़ीसदी भाषाएं खत्म हो जाएंगी. साल 2001 में जब भारतीय जनगणना हुई तो उसके आंकड़ों के मुताबिक भारत में भाषाओं की संख्या 234 थी. जबकि साल 1961 के दौरान यह संख्या 1652 थी. सोचिए कि कितनी तेजी से क्षेत्रीय भाषाएं विलुप्त होती चली गईं. क्षेत्रीय भाषाओं को लेकर हेमंत सोरेन की चिंता जायज है. क्योंकि मैसूर के राष्ट्रीय भाषा संस्थान की एक रिपोर्ट कहती है कि भारत की 12 आदिवासी भाषाएं विलुप्त होने की कगार पर हैं और इनमें झारखंड की भी कई भाषाएं शामिल हैं. हालांकि हेमंत सोरेन को यह सोचना चाहिए कि वह राज्य के मुख्यमंत्री हैं और इस तरह वह खुले मंच से बंटवारे की बात करेंगे तो यह समाज में क्या संदेश देगा. क्षेत्रीय भाषाओं को बचाने का यह कतई मतलब नहीं होता है कि आप दूसरी भाषाओं को डोमिनेटिंग या अततायी बताएं.
क्या हेमंत सोरेन के बयान का कोई राजनीतिक मकसद है
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हेमंत सोरेन के इस बयान को राजनीति से प्रेरित बताते हैं. नीतीश कुमार कहते हैं झारखंड और बिहार एक परिवार की तरह हैं जो कभी अलग नहीं हो सकता. उनका कहना है कि पश्चिम बंगाल से सटे कुछ बिहार के इलाकों में लोग बंगाली भाषा का प्रयोग करते हैं, तो इसका यह मतलब नहीं होता कि हम उनके लिए आपत्तिजनक बात कहें. हेमंत सोरेन की बात को लेकर उन्होंने कहा कि कुछ लोग राजनीतिक मकसद से ऐसा करते हैं. नीतीश कुमार की बात में दम है. दरअसल 2011 की जनगणना के अनुसार झारखंड में कुल 85 लाख आदिवासी हैं. जिनकी आबादी कुल झारखंड की आबादी का लगभग 26.2 फ़ीसदी है.
2019 के विधानसभा चुनाव में राज्य की 28 आदिवासी सीटों में से 19 सीटों पर हेमंत सोरेन की पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा को जीत मिली थी. वहीं 6 सीटें कांग्रेस को और 2 सीटें भारतीय जनता पार्टी को मिली थीं. हेमंत सोरेन को मालूम है कि अगर पूरे 26.2 फ़ीसदी आदिवासी समाज को अपने पाले में करना है तो इस तरह की बयानबाजी करनी होगी और वह वही कर रहे हैं. अभी कुछ दिन पहले झारखंड में नमाज के लिए जगह के आवंटन को ध्यान में रखा जाए तो लगता है कि बिहार में लालू यादव के माई ( मुस्लिम यादव) समीकरण की तरह ही एक स्थाई वोट बैंक बनाने की तैयारी में लगे हैं. सोरेन जानते हैं कि झारखंड में अगर सत्ता में फिर वापसी करनी है तो उनको अपना वोटबैंक तैयार करना ही होगा. वो समझ रहे हैं कि अगर प्रदेश में मुस्लिम और आदिवासियों के वोट पर कब्जा कर लिया तो बिहार में लालू यादव की तरह वह कई टर्म तक सत्ता हासिल करने मे कामयाब हो सकेंगे.


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