सम्पादकीय

क्या उत्तर प्रदेश में विपक्ष बीजेपी को जिताने की तैयारी में है?

Gulabi
13 Oct 2021 6:08 AM GMT
क्या उत्तर प्रदेश में विपक्ष बीजेपी को जिताने की तैयारी में है?
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आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में ऐसा प्रतीत हो रहा है कि

आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) में ऐसा प्रतीत हो रहा है कि विपक्ष भारतीय जनता पार्टी को सत्ता एक बार फिर से थाली में परोस कर सौपने वाला है. चुनाव में अब सिर्फ चार महीनों का समय ही शेष रह गया है. सभी विपक्षी दलों की मंशा यह जरूर है कि बीजेपी की जगह सत्ता में वह काबिज़ हों, पर जिस तरह की तैयारी चल रही है लगने लगा है कि पहले वह एक दूसरे की जड़ काटने में जुटे हैं और रेस इस बार इसी बात की है कि कौन सबसे बड़ा विपक्षी दल बन कर उभरेगा.


इस जड़ काटने की दिशा में मंगलवार को प्रदेश में दो रथ यात्रा की शुरुआत हुयी जिसमे आमने सामने चाचा शिवपाल यादव और भतीजा अखिलेश यादव हैं. जहां अखिलेश की दो दिन की विजय रथ यात्रा कानपुर से शुरू हुयी, वहीँ शिवपाल यादव हफ्ते भर की रथ यात्रा पर मथुरा से रवाना हुए. अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष हैं और शिवपाल यादव ने समाजवादी पार्टी से अलग हो कर 2018 में अपना स्वयं का दल प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) का गठन किया. जहां अखिलेश समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के बेटे हैं, शिवपाल मुलायम सिंह के छोटे भाई हैं.

शिवपाल ने कई बार एकता की कोशिश की
शिवपाल यादव ने अपनी पार्टी तो बना ली पर वह कई बार परिवार में एकता की बात करते दिखे, पर बात बनी नहीं. शिवपाल ने हमेशा अपने चचेरे भाई प्रोफ़ेसर रामगोपाल यादव, जो लम्बे समय से राज्यसभा सांसद हैं, को इसके लिए दोषी करार दिया. उनका मानना है कि रामगोपाल उनके खिलाफ अखिलेश को भड़काते रहते हैं जिसके कारण परिवार इकट्ठा नहीं हो पा रहा है.

चाचा-भतीजा के इस मल्लयुद्ध हार दोनों की होगी पर जीत शायद किसी की भी नहीं. इसका उदाहरण 2019 के लोकसभा चुनाव में दिखा था. फिरोजाबाद सीट से अखिलेश यादव ने रामगोपाल यादव के पुत्र अक्षय यादव को समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार बनाया था. गुस्से में शिवपाल यादव ने रामगोपाल यादव को सबक सिखाने की मंशा से स्वयं चुनाव लड़ने की ठानी. दोनों हार गए और फिरोजाबाद सीट से बीजेपी चुनाव जीत गयी. चूंकि इस मल्लयुद्ध का फिलहाल अंत नज़र नहीं आ रहा है, शिवपाल यादव एक बार फिर से समाजवादी पार्टी का वोट काटते दिख सकते हैं. उनकी पार्टी से किसी बड़े धमाके की उम्मीद तो है नहीं, पर फिरोजाबाद की तरह उनकी पार्टी अप्रत्यक्ष रूप से बीजेपी को जिताने का काम जरूर कर सकती है.

कुछ हद तक अखिलेश का भी दोष
अगर चाचा-भतीजा एक दूसरे के खिलाफ खड़े दिख रहे हैं तो इसका दोष कुछ हद तक अखिलेश यादव को दिया जा सकता है. अपनी अलग से पार्टी बनाने के बाद शिवपाल यादव ने कई बार परिवार की एकजुटता की बात की. इस बार उन्होंने दोनों दलों के बीच गठबंधन की बात की और प्रतीक्षा करते रहे कि अखिलेश या तो उनसे मिलने आएंगे या फिर उन्हें बातचीत के लिए आमंत्रित करेंगे. अखिलेश ने सिर्फ इतनी ही घोषणा की कि समाजवादी पार्टी शिवपाल यादव के खिलाफ जसवंतनगर सीट से अपना प्रत्याशी नहीं उतारेगी, पर सिर्फ एक सीट पर तालमेल शिवपाल यादव को मंजूर नहीं था, लिहाजा इस बात की चिंता किए बगैर कि इसका क्या फायदा या नुकसान होगा, शिवपाल यादव रथकी सवारी करने निकल पड़े.

2012 से 2017 के बीच जब अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तो यह माना जाता था कि उनका परिवार जिसमें उनके पिता मुलायम सिंह यादव और उनके चाचा शिवपाल यादव उन्हें आज़ादी के साथ काम नहीं करने दे रहे थे. दोनों भाई सरकार को रिमोट कंट्रोल से चलाने की कोशिश कर रहे थे जो अखिलेश को पसंद नहीं था. अखिलेश ने पिता के विरुद्ध विद्रोह कर दिया. रामगोपाल यादव की मदद से अखिलेश समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए. मुलायम सिंह यादव की तबीयत पिछले कई सालों से ठीक नहीं चल रही थी और समाजवादी पार्टी को उनकी जगह एक नए अध्यक्ष की जरूरत थी. शिवपालयादव की नज़र अध्यक्ष पद पर थी पर रामगोपाल यादव ने उनका खेल बिगाड़ दिया जिसके परिणामस्वरूप शिवपाल यादव को अपनी अलग पार्टी बनानी पड़ी.

मुलायम बिना पहला चुनाव होगा
यह पहला चुनाव होने वाला है जिसमें मुलायम सिंह यादव जनता के बीच नहीं होंगे. अखिलेश शायद चाहते भी नहीं हैं कि शिवपाल यादव की परिवार या पार्टी में वापसी हो. उनके लिए यह अवसर है कि वह यह साबित कर पाएं की वह मुलायम सिंह यादव के बेटे होने के अलावा अपने आप में भी एक बड़े नेता हैं. और वह शायद इसी दिशा में अग्रसर हैं.

अखिलेश ने कुछ महीनों पहले घोषणा की थी कि समाजवादी पार्टी का इस चुनाव में किसी राष्ट्रीय दल से गठबंधन नहीं होगा. इशारा कांग्रेस पार्टी की तरफ था. 2017 के चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पार्टी का गठबंधन था. 403 सदस्सीय विधानसभा में समाजवादी पार्टी 311पर चुनाव लड़ीऔर कांगेस पार्टी 114 सीटों पर. 14 सीटों में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पार्टी में सहमति नहीं बनी और दोंनों दलों ने अपना उम्मीदवार उतारा. समाजवादी पार्टी के मात्र 47 प्रत्याशियों की जीत हुई और कांग्रेस पार्टी सात सीटों पर ही सिमट कर रह गई. 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का गठबंधन हुआ,पर एक बार फिर से अखिलेश यादव को निराशा ही हाथ लगी. उत्तरप्रदेश से लोकसभा के 80 सांसद चुने जाते हैं. बहुजन समाज पार्टी 10 सीटों पर जीत हासिल करने में सफल रही और समाजवादी

बीजेपी के लिए शुभ संकेत
इस लिए इस चुनाव में बिना इस बात की परवाह किए कि परिणाम क्या होगा, अखिलेश यादव कांग्रेस पार्टी और बहुजन समाज पार्टी दोनों से दूरी बनाने का फैसला किया ताकि उनकी स्थिति मजबूत हो सके. अब यह सभी दल एक दूसरे का वोट काटने पर अमादा दिख रहे हैं जो बीजेपी के लिए किसी शुभ संकेत से कम नहीं है.
tv9 भारत वर्ष
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