सम्पादकीय

क्या जस की तस है कोरोना की गुत्थी?

Gulabi
18 Dec 2021 4:15 AM GMT
क्या जस की तस है कोरोना की गुत्थी?
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कोरोना के नए नए रूप बनते जा रहे हैं. डेल्टा के बाद अब ओमिक्रोन डरा रहा है
कोरोना के नए नए रूप बनते जा रहे हैं. डेल्टा के बाद अब ओमिक्रोन डरा रहा है. और अगर कोरोन तांडव के पिछले दो साल पर नज़र डालें तो दुनिया में इस समय भी कोरोना संक्रमितों का दैनिक आंकड़ा बिल्कुल भी काबू में नज़र नहीं आता. इस हफ्ते गुरुवार के दिन विश्व में संक्रमितों का दैनिक आंकड़ा सनसनीखेज तौर पर सात लाख 27 हजार है. आठ महीने पहले यानी इस साल अप्रेल में जब यह आंकड़ा अब तक के अपने चरम यानी आठ लाख 76 हजार पहुंचा था तो हाहाकार मचा हुआ था. पौने नौ लाख और सवा सात लाख के आंकड़े में इतना ज्यादा फर्क नहीं है कि हम आज के हालात को काबू में मान लें.
भले ही अखबारों के पहले पेज पर कोरोना की खबरें दिखना कम हो गई हों और टीवी पर ऐसी खबरें कम कर दी गई हों, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि वास्तविक स्थिति में ज्यादा सुधार हुआ नहीं है. और इसीलिए दुनिया के हर देश को अभी भी उतनी ही सतर्कवता बरतने की जरूरत है जितनी तब बरती जा रही थी जिस समय यह महामारी अपनी चरम पर थी.
बार बार फैलने वाली बीमारी
पिछले दो साल का अनुभव बताता है कि ज्यादातर देशों में कोरोना की कई कई लहरें आ चुकी हैं. अमेरिका, ब्राजील भारत, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, रूस, जर्मनी जैसे दसियों देश कोरोना की कई कई लहरों को भुगत चुके हैं. अपने देश को देखें तो पिछले साल सितंबर में एक लाख संक्रमित प्रतिदिन के चरम के बाद जब उतार आया था तो हम भी जाने अनजाने लापरवाह हुए थे और छह महीने बाद यानी इस साल मई में दूसरी लहर के चरम के समय अकेेले भारत में ही यह आंकड़ा चार लाख संक्रमित प्रतिदिन पहुंच गया था. कारण जो भी रहें हों लेकिन अपने देश में कोरोना की वह भयावह लहर इस समय एक बार फिर उतार पर दिख रही है. दूसरे देशों के मुकाबले अपने देश में संक्रमण का आंकड़ा दो पखवाड़ों से ठहरा हुआ है. लेकिन याद रखा जाना चाहिए कि पिछले साल पहली लहर के बाद भी इसी तरह उतार आया था और इसी साल एक फरवरी के दो हफते पहले और दो हफते बाद तक हालात काबू में नजर आ रहे थे. उस वक्त सरकार और नागरिकों के व्यवहार में बेफिक्री आई थी और कुछ हफतों बाद देश चार गुनी उंची लहर की चपेट में आ गया था. भले ही गुरुवार को भारत में संक्रमितों का आंकडा सिर्फ सात हजार तीन सौ 80 दिखाया जा रहा हो लेकिन यह इतना कम भी नहीं है कि हम मानकर चलें कि अपने देश में तो हालात काबू में हैं.
उतार पर नहीं बल्कि सिर्फ ठहराव पर हैं हालात
देश में कोरोना का हफ्तेवार आंकड़ा देखें तो गुजरे सात दिन में भारत में 51 हजार तीन सौ पांच नए संक्रमित बढ़े हैं. उसके पहले के सात दिनों में भी कमोबेश इतना ही यानी 58 हजार नौ सौ 87 का आंकड़ा था. और अगर बारीकी से देखें तो कुछ दिनों में दिल्ली और मुंबई में संक्रमण का रुझान बढ़ता दिख रहा है. यानी पिछले दो साल में दुनिया के अनुभवों और अपने देश में दो लहरों की भयावहता के अनुभव को इस समय याद करते रहने की जरूरत है.
ओमिक्राॅन की भयावहता पर संशय
कोरोना के नए रूप ओमिक्राॅन को लेकर अभी निश्चित रूप से कोई नहीं कह पा रहा है कि यह कितना भयावह होगा. कुछ देश यह बताने में लगे हैं कि यह बहुत तेजी से फैल तो सकता है लेकिन यह डेल्टा की तरह घातक नहीं दिखाई दे रहा है. विशेषज्ञों की तरफ से इस तरह की भाषा पर ऐतराज जताया जाना चाहिए. एतराज तो इस बात पर भी जताया जाना चाहिए जिसमें कहा जा रहा है कि कोरोना के दोनों टीके लगवाए लोगों पर इसका घातक असर कम हो सकता है. यह बात ठीक है कि ऐसा कहने से अपने देश में जिन्होने अब तक टीके नहीं लगवाए हैं उनमें सुरक्षा की चिंता बढ़ेगी और वे टीके लगवाएंगे. लेकिन देश में लंबे समय से चल रहे अभियान के बाद अब टीका लगवा चुके लोगों की संख्या भी अच्छी खासी हो चुकी है. उनमें इस तरह की निश्चिंतता पैदा करना नुकसानदेह भी हो सकता है.
वैश्विक आंकड़ों पर नज़र जरूरी
कोरोना के वैश्विक आंकड़ों पर नज़र इसलिए जरूरी है क्योंकि हम शुरू में ही यह ऐलान कर चुके हैं कि यह वैश्विक महामारी है और जब तक एकसाथ सभी देश कोरोना को लेकर निश्चिंत नहीं होेते तब तक कोई भी देश बेफिक्र नहीं हो सकता. इतना ही नहीं अभी दुनियाभर में उपलब्ध तरह तरह की वैक्सीन की प्रभावशीलता का पक्का आकलन भी नहीं हुआ है. ब्रिटेन उदाहरण है जहां पूरे टीके लगवाए लोगों को अब बूस्टर डोज के नाम पर एक और टीका लगवाया जा रहा है. वैसे भी ज्यादातर देशों में लगाए जा रहे टीके अभी भी आपात मंजूरी के सहारे ही इस्तेमाल हो रहे हैं.
ब्रिटेन के हालात
ब्रिटेन अपने यहां टीकाकरण की सफलता का जोरशोर से दावा कर रहा था. लेकिन हाल के दिनों में ब्रिटेन फिर से बड़े पैमाने पर संक्रमण की चपेट में है. बेशक ब्रिटेन में मृत्युदर कम हुई है. लेकिन संक्रमण की रफ्तार के मामले में विशेषज्ञों के नए तर्क आने वाले दिनों में सुनने को जरूर मिलेंगे. बहरहाल, तमाम कवायदों के बावजूद कोरोना वायरस अभी भी उतना ही रहस्यमयी है जितना वह दो साल पहले था.
दो दशकों से गुत्थी बना हुआ है कोरोना
कोरोना का एक पूर्वज 15 साल पहले भी प्रगट हुआ था. और सरकारों के बिना कुछ किए वह अपने आप छुप गया था. लेकिन आज हमें उस समय के वैज्ञानिकों की एक बात याद रखना चाहिए. तब कुछ वैज्ञानिकों ने कहा था कि कोरोना छुप जरूर गया है लेकिन हमें वैज्ञानिक अनुसंधान उतनी ही गंभीरता से जारी रखना चाहिए. सन 2007 में उन वैज्ञानिकों ने तर्क यह दिया था कि कोरोना अजब ठंग से म्यूटेट करने वाला वायरस है. उन्होंने यह भी कहा था कि आगे कभी यह एटम बम बनकर फूट पड़ सकता है. और 12 साल बाद 2019 में बिल्कुल वही हुआ. लिहाजा दुनियाभर की सरकारों को उन वैज्ञानिकों की अपील पर आज खासतौर पर गौर करने की जरूरत है. मसला चिकित्साविज्ञानियों के साथ साथ सूक्ष्म जीवविज्ञानियों तक पहुंचाया जाना चाहिए. प्रौद्योगिकी के साथ साथ वैज्ञानिक शोधों पर भी खर्च बढ़ाया जाना चाहिए. कोराना की गुत्थी हमें सीख दे रही है कि प्रौद्योगिकी से ज्यादा विज्ञान पर ध्यान देने की जरूरत है.


(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
सुधीर जैन
अपराधशास्त्र और न्यायालिक विज्ञान में उच्च शिक्षा हासिल की. सागर विश्वविद्यालय में पढाया भी. उत्तर भारत के 9 प्रदेश की जेलों में सजायाफ्ता कैदियों पर विशेष शोध किया. मन पत्रकारिता में रम गया तो 27 साल 'जनसत्ता' के संपादकीय विभाग में काम किया. समाज की मूल जरूरतों को समझने के लिए सीएसई की नेशनल फैलोशिप पर चंदेलकालीन तालाबों के जलविज्ञान का शोध अध्ययन भी किया.देश की पहली हिन्दी वीडियो 'कालचक्र' मैगज़ीन के संस्थापक निदेशक, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ क्रिमिनोलॉजी एंड फॉरेंसिक साइंस और सीबीआई एकेडमी के अतिथि व्याख्याता, विभिन्न विषयों पर टीवी पैनल डिबेट. विज्ञान का इतिहास, वैज्ञानिक शोधपद्धति, अकादमिक पत्रकारिता और चुनाव यांत्रिकी में विशेष रुचि.
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