सम्पादकीय

तालिबान पर नसीरुद्दीन शाह का ज्ञान सुनने को क्या तैयार है मुस्लिम कम्युनिटी?

Rani Sahu
2 Sep 2021 1:03 PM GMT
तालिबान पर नसीरुद्दीन शाह का ज्ञान सुनने को क्या तैयार है मुस्लिम कम्युनिटी?
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बॉलीवुड के धुरंधर एक्टर नसीरुद्दीन शाह (Naseeruddin Shah) अपनी बेबाक बातों के लिए जाने जाते रहे हैं.

संयम श्रीवास्तव बॉलीवुड के धुरंधर एक्टर नसीरुद्दीन शाह (Naseeruddin Shah) अपनी बेबाक बातों के लिए जाने जाते रहे हैं. बुधवार को तालिबान पर उनकी बेबाक बयानी से सोशल मीडिया पर बवाल मचा हुआ है. आम तौर पर देश भर में अफगानिस्तान (Afghanistan) पर तालिबान (Taliban) की ताजपोशी को लेकर बहस-मुहासिब लगातार जारी है. यूपी में कुछ जगहों से मुस्लिम कम्युनिटी (Muslim Community) के नेताओं की ओर से तालिबान की तारीफ में कुछ बयान आया है, जिसको लेकर काफी जुबानी जंग चल रही है.

दरअसल कहा ये जा रहा है कि अगर मुस्लिम कम्युनिटी तालिबान का खुलकर सपोर्ट करती है तो यहां वोटों का ध्रुवीकरण हो सकता है. इसलिए राजनीतिक दल चाहते हैं कि इस मुद्दे को हवा दी जाए. संयोग से इस बीच बॉलीवुड एक्टर नसीरुद्दीन शाह ने तालिबान के खिलाफ बयान देकर इस मुद्दे को और हॉट बना दिया है.
नसीर ने क्या कहा जिस पर बहस होनी चाहिए
नसीरुद्दीन शाह ने अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी पर हिंदुस्तान में जश्न मना रहे कुछ मुस्लिम लोगों को एक कड़ा संदेश दिया है. नसीरुद्दीन शाह उन मुसलमानों को फटकार लगाते हुए कहा जो अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी पर खुश हैं कि अफगानिस्तान में तालिबान का दोबारा हुकूमत पा लेना दुनिया भर के लिए फिक्र की बात है. लेकिन इससे कम खतरनाक नहीं है हिंदुस्तानी मुसलमानों के कुछ तबकों का उन वहशियों की वापसी पर जश्न मनाना. आज हर हिंदुस्तानी मुसलमान को अपने आप से यह सवाल पूछना चाहिए कि उसे अपने मजहब में रिफॉर्म, मॉडर्निटी चाहिए या पिछली सदियों का वहशीपन और वैल्यूज. उनकी बातों के 3 मुख्य बिंदु हैं.
1-अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी से ज्यादे खतरनाक है कुछ हिंदुस्तानी मुसलमानों द्वारा जश्न मनाया जाना
अपने इस बयान के साथ नसीरुद्दीन शाह बॉलीवुड के पहले मुस्लिम सेलिब्रिटी बन गए हैं जिन्होंने तालिबान की वापसी और हिंदुस्तान में कुछ मुसलमानों के उस पर जश्न मनाने की बात का खुलकर विरोध किया है. हालांकि हिंदुस्तान में रह रहे सभी मुसलमानों की इस तरह की सोच नहीं है. तालिबान की वापसी पर सोशल मीडिया पर बहुतायत में भारतीय मुस्लिम युवा जश्न मनाते हुए मिल जाएंगे.
सिर्फ सोशल मीडिया ही नहीं बल्कि तालिबान की वापसी पर समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुर्रहमान भी खुशी जता चुके हैं. उन्हें ने तो तालिबानियों की भारत के स्वतंत्रता सेनानियों से तुलना कर दी थी. यहां तक की ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना सज्जाद नोमानी ने भी तालिबान की वापसी पर खुशी जाहिर की थी और उन्होंने तालिबानी लड़ाकों को सलाम तक किया था.
फतेहपुर मस्जिद के इमाम मुफ्ती मोकर्रम साहब कहते हैं कि तालिबान के विरोध या समर्थन का सवाल ही नहीं उठता. सवाल तो भारत सरकार के समर्थन और विरोध का है. अगर भारत सरकार तालिबान का विरोध करती है तो भारतीय मुसलमान किसी भी शर्त पर तालिबान का समर्थन नहीं करेंगे. उनका कहना है कि मीडिया जबरन नेताओं के मुंह से कुछ बातें निकलवा लेती है. पूरा हिंदुस्तान सरकार के साथ है. जो सरकार चाहेगी वही मुसलमान करेगा.
मुसलमान के लिए पहले देश है. जामिया के प्रोफेसर इक्तिदार मोहम्मद खान भी कुछ इसी तरीके की बात कहते हैं. प्रोफेसर खान कहते हैं कि मुसलमानों के लिए पहले देश है. हिंदुस्तान की सरकार जैसा चाहेगी वैसा ही मुसलमान करेगा.
2-हिंदुस्तानी मुसलमान हमेशा से दुनिया भर के मुसलमानों से अलग रहा है
अगर दुनिया भर के मुसलमानों की तुलना भारत के मुसलमानों से की जाए तो वास्तव में यह लगेगा कि भारत के मुसलमान एकदम से अलग हैं. दुनिया भर के मुसलमानों की तुलना में यहां कट्टरता नहीं के बराबर है. आम मुसलमान हिंदुस्तानी रीति रिवाजों में इतना ढला हुआ है कि अपने देश के कई हिस्सों में वह मुसलमान कम उस राज्य का बाशिंदा ज्यादा लगता है. दक्षिण का मुसलमान लुंगी पहने मिलेगा तो आसाम का गमछा वाला. यूपी और हैदराबाद के मुसलमानों पर अपने राज्यों की पहचान है.
तमाम हिंदू रीति रिवाजों का पालन करना आम है. गोरखपुर के श्यामदेउरवा में मैंने देखा कि बहुत सी मुस्लिम महिलाएं सिंदूर लगातीं थीं. ऐसे ही कई रिवाज शादी-विवाह से लेकर जनाजे तक में दुनिया से अलग हैं. पर यहां असल बात कट्टरता को ही लेकर है. शायद नसीरुद्दीन शाह यही कहना चाहते थे कि हिंदुस्तान का मुसलमान दुनिया से इसी मामले में अलग है. पर दिल्ली की फतेहपुरी मस्जिद के इमाम नसीरुद्दीन शाह की इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते हैं. उनका कहना है दुनिया के हर मुल्क का मुसलमान अमन पसंद है. वे कहते हैं कि क्या यूएई और सऊदी अरब में आप ने कभी सुना हिंदू या सिखों के साथ हिंसा हुई हो. वहां तो हिंदू और सिख बहुसंख्या में है.
उनका कहना है पूरी दुनिया के मुसलमान एक हैं. सभी अल्लाह और कुरान को मानते हैं. उनमें किसी भी प्रकार भेद नहीं किया जा सकता. मुफ्ती साहब यह भी मानने को तैयार नहीं हैं कि अफगानिस्तान में भी कोई हिंसा हो रही है. सिख नेता सिरसा के बयान को कोट करते हुए कहते हैं कि तालिबान के नेता गुरुद्वारों में जाकर सिख भाइयों की सुरक्षा का भरोसा दे रहे हैं.
मुस्लिम मामलों के जानकार हमीद नोमानी साहब भी दुनिया के मुसलमानों से भारतीय मुसलमानों के अलग न होने की ही बात करते हैं. मुफ्ती साहब कहते हैं कि तालिबानी अगर आतंकी है तो मॉब लिंचिंग करने वाले क्या हैं? जब हम देश के लिए कुर्बान होने के लिए तैयार हैं और हमें कोई गद्दार कहता है तो बहुत दुख होता है.
3-भारतीय मुसलमानों को खुद से सवाल करना चाहिए कि उन्हें अपने मजहब में सुधार की जरूरत है या पिछली शताब्दियों के वहशी मूल्यों की
दरअसल नसीरुद्दीन शाह के कहने का मतलब ये रहा होगा कि हमें आधुनिक सोच वाला बनना होगा जहां वैज्ञानिक आधार पर चीजों की समझ विकसित हो. दरअसल अभी तालिबान अफगानिस्तान में जिस तरह की हुकूमत चाहता है वह आदिम समाजों के लिए ही ठीक हो सकता है. जैसे शरियत का कानून, महिलाओं की शिक्षा और नौकरियां, तीन तलाक आदि जैसी बातें जो दुनिया में खत्म होने की कगार पर हैं वो अफगानिस्तान में अब देखने को मिल सकती हैं.
दुनिया में 23 देश ऐसे हैं जहां तीन तलाक को मान्यता नहीं है. संयुक्त अरब अमीरात, कतर, इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे देश शरिया कानून को पीछे छोड़ चुके हैं. नसीरुद्दीन शाह को पता है कि दुनिया भर के मुसलमानों की तुलना में भारत में मुसलमान खुशहाल हैं और ज्यादा स्वतंत्र हैं.


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