सम्पादकीय

क्या लक्ष्य की ओर है अर्थव्यवस्था?

Rani Sahu
14 Jun 2023 5:14 PM GMT
क्या लक्ष्य की ओर है अर्थव्यवस्था?
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हाल ही में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने भारत के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के आंकड़े जारी किए हैं। कहा जा रहा है कि यह अनुमान से काफी बेहतर रहे हैं। भारत ने पिछली तिमाही में 4.4 प्रतिशत की तुलना में 6.1 प्रतिशत की जीडीपी बढ़त दर्ज की है। चौथी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर ने अनुमानों को पीछे छोड़ दिया है। आरबीआई ने पहली तिमाही के दौरान 5.1 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया था। वहीं पूरे वित्त वर्ष 2022-23 के लिए जीडीपी की बढ़त 7.2 प्रतिशत रही है। जीडीपी की यह बढ़त आरबीआई के 7 प्रतिशत के अनुमान से भी अधिक है। जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद, किसी एक वर्ष में देश में पैदा होने वाले सभी सामानों और सेवाओं की कुल वैल्यू के बराबर होता है। जीडीपी आर्थिक गतिविधियों के स्तर को दिखाता है और इससे यह पता चलता है कि किन क्षेत्रों की वजह से इसमें तेजी या गिरावट आई है। जीडीपी के आंकड़े अगर कम या सुस्त हैं तो पता चलता है कि देश की इकोनॉमी सुस्त पड़ रही है। भारत एक विकासशील देश होने के कारण हर साल अधिक जीडीपी विकास दर हासिल करे, यह जरूरी है, क्योंकि हमारी आबादी दुनिया में सबसे अधिक है और इनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त उत्पादन भी बहुत जरूरी है। जीडीपी में कृषि सेक्टर का योगदान इस बार बढ़ा है और इस क्षेत्र में तेज बढ़त दर्ज हुई है। पिछली तिमाही में कृषि क्षेत्र की विकास दर 4.7 प्रतिशत थी जो अब बढक़र 5.5 प्रतिशत हो गई है।
भारत में कृषि क्षेत्र का जीडीपी में योगदान 20 फीसदी के करीब है और लगभग 40 फीसदी जनसंख्या इससे जुड़ी हुई है। सरकार ने 8 मुख्य क्षेत्रों के विकास का डाटा भी जारी कर दिया है। कोर सेक्टर अप्रैल 2023 में 3.5 फीसदी की दर से बढ़ा है, जो पिछले माह के 3.6 प्रतिशत की तुलना में थोड़ा कम है। आठ कोर सेक्टर्स में कृषि क्षेत्र 5.5 प्रतिशत, माइनिंग सेक्टर 4.3 फीसदी, निर्माण क्षेत्र 10.4 प्रतिशत, बिजली 6.9 फीसदी, तो मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर 4.5 फीसदी और वित्तीय क्षेत्र 7.1 प्रतिशत की दर से बढ़ा है। वहीं व्यापार और होटल 9.1 प्रतिशत की दर से बढ़ा है। लगातर दो तिमाहियों में गिरावट के बाद इस बार तिमाही को जीडीपी विकास दर में वृद्धि हुई है। यह एक सुखद अनुभव है। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में नए सिरे से उछाल के संकेत हैं, जबकि बेहतर दक्षता को अपनाने से सेवा क्षेत्र के प्रदर्शन में भी सुधार हुआ है। भारत में घरेलू खपत और निवेश को कृषि और उससे संबंधित गतिविधियों की मजबूत संभावनाओं और उपभोक्ता आत्मविश्वास में मजबूती का लाभ मिल रहा है। वहीं वर्ष 2022-23 में रियल जीडीपी (2011-12 की कीमतों पर) 160.06 लाख करोड़ रुपए रही है। सांख्यिकी मंत्रालय ने कहा है कि 2022-23 के दौरान वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि 2021-22 में 9.1 प्रतिशत की तुलना में इस बार 7.2 प्रतिशत रही है। जीएसटी संग्रह, बिजली खपत जैसे आंकड़े अप्रैल में आर्थिक गतिविधियां बने रहने के संकेत दे रहे हैं। हालांकि निर्यात और आयात कम हुआ है। इससे कुछ जोखिम उत्पन्न हुआ है। मानसून और वैश्विक स्तर पर राजनीतिक जोखिम को छोडक़र देश की आर्थिक वृद्धि दर 2023-24 में 6.5 फीसदी के अनुमान से ऊपर रह सकती है। फिलहाल भारत आर्थिक, वित्तीय और राजकोषीय स्थिरता के साथ सतत आर्थिक वृद्धि की कहानी पेश करने में सक्षम है। इस समय विनिर्माण क्षेत्र में तेजी स्थिति को और सुखद बना रही है, हालांकि उद्योगों की वृद्धि की रफ्तार अप्रैल 2023 में सुस्त पडक़र छह महीने के निचले स्तर 3.5 फीसदी रह गई। मुख्य रूप से कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद और बिजली के उत्पादन में कमी से बुनियादी उद्योग की वृद्धि की रफ्तार धीमी हुई है। वहीं कोयला, उर्वरक और बिजली क्षेत्रों के बेहतर प्रदर्शन से पूरे वित्त वर्ष 2022-23 में बुनियादी उद्योगों की वृद्धि दर 7.7 फीसदी रही। वैसे वित्त वर्ष 2022-23 में राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 6.4 फीसदी रहा, जो लक्ष्य के अनुरूप है।
कर और गैर-कर राजस्व संग्रह बेहतर रहने से राजकोषीय घाटे को थामने में मदद मिली। इसके साथ कुछ आर्थिक चुनौतियां भी हैं। इनमें सबसे बड़ी चिंता निर्यात की है। हालांकि हमारा आयात भी घटा है, लेकिन निर्यात उस स्तर पर नहीं आया है जिसे देखकर उत्साहित हुआ जा सके। रूस-यूक्रेन युद्ध तथा जर्मनी जैसे कुछ देशों में मंदी का आना भी एक कारण है। हमारे निर्यात का सबसे बड़ा हिस्सा अमेरिका को जाता है, लेकिन वहां की आर्थिक स्थिति चरमराई हुई है और मंदी की आहट सुनाई देती रहती है। इसके अलावा एक बड़ी समस्या जो हमारी अर्थव्यवस्था को खाए जा रही है, वह है बेरोजगारी। देश में रोजगार उस हिसाब से नहीं बढ़ रहे हैं जिसकी जरूरत है। आंकड़े हैरान करने वाले हैं और बेरोजगारी की दर जो जनवरी में 7.14 फीसदी थी, वह अप्रैल में 8.11 फीसदी तक जा पहुंची है, यानी विकास के बावजूद नौकरियां नहीं मिल पा रही हैं। यह संख्या बहुत बड़ी है। सिर्फ इतना ही नहीं, करोड़ों लोग अब रोजगार की तलाश से बाहर हो चुके हैं क्योंकि उन्हें रोजगार मिलने की कोई संभावना नहीं दिखती। बेरोजगारी के आंकड़े जीडीपी में अच्छी प्रगति के बावजूद अगर बढ़ रहे हैं तो आने वाले समय के लिए यह और चिंता का विषय है। एक बड़ी बात यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों तथा कम इनकम ग्रुप के लोगों की मांग में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। यह वर्ग बहुत बड़ा है। यहां देखने लायक बात है कि भारतीय अर्थव्यवस्था खपत पर आधारित है और जितनी खपत बढ़ेगी उतना ही ग्रोथ होगा, और इस बार ऐसा ही हुआ। खपत बढऩे से ही कारखानों के पहिए तेजी से दौडऩे लगे हैं। लेकिन अभी जो आंकड़े आ रहे हैं वे बता रहे हैं कि कम इनकम ग्रुप वाले लोग कम खरीददारी कर रहे हैं।
इसका उदाहरण है यह है कि कम कीमत वाली कारों और बाइकों की बिक्री में अभी भी तेजी नहीं आई है, जबकि महंगी कारों तथा महंगी बाइकों की बिक्री तेजी से बढ़ी है। अगर हम कोरोना आने के पहले यानी 2018-19 के आंकड़े देखें तो पाएंगे कि अभी तक इनकी बिक्री उस स्तर पर नहीं पहुंची। उदाहरण के लिए इंट्री लेवल स्कूटरों की बिक्री अभी 2018-19 की तुलना में 28 फीसदी कम है। इसी तरह मोटर साइकिलों की बिक्री में 38 फीसदी गिरावट आई है। इस तरह की गिरावट सस्ती कारों की बिक्री में भी आई है। यह सांकेतिक है कि कम आय वर्ग के लोगों की क्रय शक्ति घटी है। हालांकि देश में महंगाई की दर कुछ घटी है, लेकिन कई जरूरी चीजों के दाम बढ़े भी हैं। उनके कारण भी कम इनकम ग्रुप के लोगों की क्रय शक्ति घटी है। स्कूलों में फीस का बढऩा आम बात है। इसका भी असर मिडल क्लास और लोअर मिडल क्लास की क्रय शक्ति पर पड़ रहा है। इस समय जब पूरी दुनिया मंदी के खतरे से जूझ रही है, तो भारत में जीडीपी की वृद्धि दर दिखाती है कि हम सही लक्ष्य की ओर जा रहे हैं। फिर भी देश को एक मजबूत विश्व आर्थिक शक्ति बनने के लिए संभावित आर्थिक चुनौतियों का समाधान तलाशना और तराशना होगा।
डा. वरिंद्र भाटिया
कालेज प्रिंसीपल
ईमेल : [email protected]
By: divyahimachal
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