सम्पादकीय

नवजोत सिंह सिद्धू का इस्तीफा अस्वीकार करके क्या कांग्रेस पार्टी पंजाब में रिस्क ले रही है?

Gulabi
16 Oct 2021 7:59 AM GMT
नवजोत सिंह सिद्धू का इस्तीफा अस्वीकार करके क्या कांग्रेस पार्टी पंजाब में रिस्क ले रही है?
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नवजोत सिंह सिद्धू का इस्तीफा अस्वीकार

कांग्रेस पार्टी (Congress Party) में क्या हो रहा है और क्यों हो रहा है, समझना इसलिए कठिन है क्योंकि पार्टी को खुद नहीं पता होता है कि जो भी हो रहा है, वह क्यों हो रहा है. आज नई दिल्ली में कांग्रेस वर्किंग कमिटी (CWC) की एक अहम् बैठक होने वाली है, जिसमें कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाने की संभावना है. जिससे पार्टी की दिशा और दशा निर्धारित हो सकती है. उसमें से सबसे महत्वपूर्ण निर्णय है पार्टी के स्थायी अध्यक्ष के नाम पर चर्चा और नियुक्ति. ज्ञात हो कि पिछले दो वर्ष से भी अधिक समय से कांग्रेस पार्टी का कामकाज अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर सोनिया गांधी संभाल रही हैं.


CWC मीटिंग के ठीक दो दिन पहले पार्टी आलाकमान पंजाब प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) को पार्टी मुख्यालय बुलाती है. सिद्धू की गुरुवार शाम को कांग्रेस मुख्यालय में दो केन्द्रीय नेताओं– केसी वेणुगोपाल और हरीश रावत के साथ लगभग एक घंटे तक बातचीत होती है. सिद्धू को जुलाई के महीने में पार्टी ने राज्य इकाई का अध्यक्ष नियुक्त किया था और पिछले महीने के अंत में उहोंने मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के द्वारा की गयी कुछ नियुक्तियों में विरोध में आलाकमान को अपना इस्तीफा भेज दिया था.


सिद्धू के इस्तीफे को अस्वीकार करने में देरी क्यों हुई?
लगभग एक पखवाड़े तक पार्टी ने इस पर कोई निर्णय नहीं लिया, एक महत्वपूर्ण राज्य में जहां अगला विधानसभा चुनाव होने में अब चार महीनों का समय ही बाकी है, पार्टी पंगु बनी रही. क्योंकि खुद सिद्धू को भी नहीं पता था कि वह अध्यक्ष बने हुए हैं या उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया है. बहरहाल, बैठक से बाहर निकल कर सिद्धू कहते हैं कि पार्टी जो भी निर्णय लेगी वह उन्हें स्वीकार्य होगा. थोड़ी देर बाद हरीश रावत बाहर आते हैं. रावत पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हैं और वह पंजाब के प्रभारी भी हैं. रावत कहते हैं कि सिद्धू के इस्तीफे पर आखिरी फैसला पार्टी अध्यक्ष लेंगी. जिसकी घोषणा अगले दिन यानि शुक्रवार को की जाएगी. रावत ने यह भी बताया कि सिद्धू से कहा गया है कि वह वापस पंजाब लौटें और राज्य इकाई तथा जिला इकाई के पदाधिकारियों को नियुक्त करें ताकि पार्टी विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट जाए.

यह अलग बात है कि शुक्रवार को सिद्धू के संबंध में कोई घोषणा नहीं हुई. अब सवाल यह उठता है कि अगर सिद्धू के इस्तीफे को अस्वीकार ही करना था तो फिर इसके लिए एक पखवाड़े का समय क्यों बर्बाद किया गया. जबकि जनवरी की शुरुआत में चुनाव आयोग पंजाब समेत पांच राज्यों में चुनाव की विधिवत घोषणा कर सकती है और फरवरी के मध्य में चुनाव होने की संभावना है. यानि चुनाव के मद्देनजर एक-एक दिन कीमती है.

गांधी परिवार में कुर्सी के लिए हो रहा है म्यूजिकल चेयर का खेल
क्योंकि प्रदेश में सत्ता में बने रहना कांग्रेस पार्टी के लिए टेढ़ी खीर साबित होने वाला है. और सबसे अहम् बात कि सिद्धू के बारे में कोई भी फैसला CWC मीटिंग के दो दिन पहले ही क्यों लेना था. जबकि CWC, जो कांग्रेस पार्टी की सर्वोच्च कमिटी है, का काम ही अहम् निर्णय लेना होता है. इसका सिर्फ एक ही मतलब निकलता है कि CWC की बैठक के बारे में ज्यादा उत्साहित होने की जरूरत नहीं है. पार्टी में गांधी परिवार का राज कायम रहेगा और सारे निर्णय पहले की ही तरह राहुल गांधी ही लेते रहेंगे.

हो सकता है सोनिया गांधी अपने बेटे राहुल गांधी को ही अध्यक्ष पद की कुर्सी सौपें. मां और बेटे के बीच म्यूजिकल चेयर का यह खेल पिछले चार वर्षों से चल रहा है. लगातार 19 कांग्रेस अध्यक्ष बने रहने का नया इतिहास बनाने के बाद सोनिया गांधी ने 2017 में राहुल गांधी को अध्यक्ष पद की कुर्सी सौंप दी थी. राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने का जनता पर कुछ खास प्रभाव नहीं पड़ा. पार्टी को 2019 के चुनाव में एक बार फिर से शर्मनाक हार मिली और राहुल गांधी ने पार्टी अध्यक्ष पद से अपना इस्तीफा CWC को सौंप दिया. अगले तीन महीनों तक किसी को भी नहीं पता था कि राहुल गांधी अध्यक्ष हैं या नहीं, ठीक उसी तरह जैसे सिद्धू के केस में हुआ था. आख़िरकार राहुल गांधी का इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया और अध्यक्ष पद की कुर्सी सोनिया गांधी को मिल गयी. और यह म्यूजिकल चेयर का खेल एक बार फिर से CWC की मीटिंग में दिखने वाला है.

क्या राहुल गांधी CWC का अपमान कर रहे हैं
सिद्धू को CWC मीटिंग के ठीक दो दिन पहले पार्टी मुख्यालय में बुलाना और फिर उन्हें यह कहना कि आप अध्यक्ष पद पर बने रहेंगे यही दर्शाता है कि रहुल गांधी आश्वस्त हैं कि फैसला वही लेते रहेंगे चाहे उनकी मां अध्यक्ष बनी रहें या फिर कुर्सी फिर से एक बार उन्हें सौंप दी जाये.

राहुल गांधी अक्सर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आलोचना यह कह कर करते हैं कि मोदी संविधान और संवैधानिक संस्थाओं को अपने फैसलों से कमजोर कर रहे हैं. अब कोई यह बताए कि सिद्धू को CWC बैठक के दो दिन पहले बुलाना और उनके बारे में निर्णय लेना क्या कांगेस पार्टी के संविधान तथा CWC जैसी संस्था का अपमान नहीं है? शायद इसी को कहेते हैं कि हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और.

एक बात और, कांग्रेस पार्टी ने सिद्धू का इस्तीफा अस्वीकार किया है, उनकी मांग अभी नहीं मानी गई है. कांग्रेस पार्टी को पता नहीं कि सिद्धू मुंबई की बारिश की तरह हैं, कब फिर बरसने लगेंगे किसी को पता नहीं. सिद्धू फिर कब नाराज हो जाएंगे वह खुद सिद्धू को भी नहीं पता होता है. और अगर वह कुछ दिनों के बाद एक बार फिर नाराज़ हो गए तो तब तक तक बहुत देर हो चुकी होगी और पंजाब में हार पक्की हो जाएगी.


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