सम्पादकीय

क्या उत्तराखंड के नए सीएम तीरथ सिंह रावत की भी कुर्सी जाने वाली है?

Shiddhant Shriwas
22 Jun 2021 11:07 AM GMT
क्या उत्तराखंड के नए सीएम तीरथ सिंह रावत की भी कुर्सी जाने वाली है?
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कुछ महीने पहले ही त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह उत्तराखंड (Uttarakhand) को नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत (CM Tirath Singh Rawat) मिले हैं, लेकिन अब तक उन्होंने विधानसभा की सदस्यता नहीं ली है इसकी वजह से उनकी कुर्सी खतरे में दिख रही है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कौन बनेगा उत्तराखंड (Uttarakhand) का नया मुख्यमंत्री? यह सवाल जरा अटपटा ज़रूर लग रहा होगा क्योंकि राज्य के चुनाव अभी भी आठ-नौ महीना दूर हैं. हम यहां बात कर रहे हैं सितम्बर महीने की. उत्तराखंड में एक बड़ी रोचक स्थिति बनती दिख रही है. तीरथ सिंह रावत (Tirath Singh Rawat) ने 10 मार्च को राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी पर वर्तमान में वह विधायक नहीं है. यानि अगर 9 सितम्बर तक वह विधानसभा सदस्य के रूप में शपथ नहीं लेते हैं तो उनकी कुर्सी चली जायेगी और भारतीय जनता पार्टी (BJP) को प्रदेश में नया मुख्यमंत्री चुनना पड़ेगा.


जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत कोई भी व्यक्ति जो विधायिका का सदस्य नहीं है वह मंत्री या मुख्यमंत्री बन सकता है, पर उसे या तो छः महीना समाप्त होने से पहले ही विधानसभा का सदस्य बनना पड़ेगा या फिर पद छोड़ना होगा. हालांकि, उत्तराखंड विधानसभा में दो विधायकों के निधन के बाद फिलहाल दो स्थान रिक्त हैं- गंगोत्री और हल्द्वानी, लेकिन परिस्थियां ऐसी बनती जा रही हैं कि शायद उपचुनाव हो ही ना.
आमतौर पर उपचुनाव तब ही होता है जब विधानसभा की अवधि कम से कम छः महीने बची हो. वर्तमान विधानसभा की अवधि 15 मार्च को ख़त्म हो जायेगी. यानि अगर रावत को मुख्यमंत्री बने रहना है तो चुनाव अगस्त के आखिरी सप्ताह में करवाना ही होगा. पर यह निर्णय चुनाव आयोग (Election Commission) का होगा, ना कि राज्य सरकार का.


कब होंगे उपचुनाव?
चुनाव की प्रक्रिया मतदान के एक महीने पहले शुरू हो जाती है. समस्या यह है कि उस समय बारिश का मौसम होगा. उत्तराखंड में बारिश सितम्बर तक होती है. पहाड़ों में बारिश के मौसम में चुनाव कराना काफी चुनौतियों से भरा होगा. चुनाव आयोग को यह भी देखना पड़ेगा कि क्या करोना महामारी काबू में आ चुका है और चुनाव के कारण करोना की फिर से वापसी तो नहीं होगी. मद्रास हाई कोर्ट से मिले फटकार के बाद चुनाव आयोग अब हर कदम फूंक-फूंक कर रखेगा.

यही नहीं, चुनाव आयोग को अन्य राज्यों में भी उपचुनाव कराना होगा. रावत की ही तरह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी विधानसभा की सदस्य नहीं हैं. ममता बनर्जी को 4 नवम्बर तक विधानसभा सदस्य के रूप में शपथ लेनी होगी वर्ना उनकी भी कुर्सी खतरे में पड़ सकती है. रावत और ममता बनर्जी में एक बड़ा फर्क है– रावत फ़िलहाल लोकसभा के सदस्य हैं और ममता बनर्जी विधानसभा चुनाव में नंदीग्राम क्षेत्र से चुनाव हार गयी थीं. ऐसा तो हो नहीं सकता कि चुनाव आयोग उत्तराखंड में चुनाव कराये और पश्चिम बंगाल में नहीं. ममता बनर्जी के पास फिर भी समय है, पर रावत का समय निकलता जा रहा है.

उत्तराखंड में चुनाव से पहले मुख्यमंत्री बदल देना बीजेपी की परंपरा है
2017 में चुनाव जीतने के बाद बीजेपी ने त्रिवेन्द्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया था. उन्हें क्यों हटाया गया और त्रिवेन्द्र सिंह रावत की जहां तीरथ सिंह रावत को क्यों मुख्यमंत्री बनाया गया, इस पर अभी भी विवाद है. वैसे उत्तराखंड में चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री का बदला जाना बीजेपी की परंपरा ही बन गयी है. नवम्बर 2000 में अलग राज्य बनने के बाद अंतरिम विधानसभा में बीजेपी के पास बहुमत थी. बीजेपी ने नित्यानंद स्वामी को मुख्यमंत्री मनोनीत किया पर 2002 में निर्धारित पहले विधानसभा चुनाव के चार महीने पहले स्वामी की जगह भगत सिंह कोश्यारी मुख्यमंत्री बने, पर बीजेपी फिर भी चुनाव हार गयी.

2007 में बीजेपी की सत्ता में वापसी हुई. पहले भुवन चन्द्र खंडूरी को मुख्यमंत्री बनाया गया और 27 महीने बाद उनकी जगह रमेश पोखरियाल को मुख्यमंत्री पद की कुर्सी सौंप दी गयी. 2012 विधानसभा चुनाव के छः महीने पहले पोखरियाल के जगह खंडूरी फिर से मुख्यमंत्री बने, पर बीजेपी चुनाव नहीं जीत सकी.

तीरथ सिंह रावत क्यों नहीं बन पा रहे विधानसभा के सदस्य
पूर्व में चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पद पर बदलाव का फायदा बीजेपी को कम से कम उत्तराखंड में तो नहीं मिला. देखना दिलचस्प होगा कि क्या बीजेपी को इस बार मुख्यमंत्री बदलने से चुनावी फायदा होगा? पर उससे पहले ज़रूरी है कि तीरथ सिंह रावत विधानसभा सदस्य चुन लिए जाएं, वर्ना चुनाव से पहले उत्तराखंड को एक नए मुख्यमंत्री का स्वागत करना पड़ सकता है. अगर ऐसा हुआ और रावत को सिर्फ इसलिए पद त्याग करना पड़े कि वह समय रहते विधानसभा सदस्य नहीं बन सकें तो बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व की सोच और बुद्धिमत्ता पर भी सवालिया निशान लग सकता है.


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