सम्पादकीय

जजों द्वारा जजों की नियुक्ति मिथक है या सच

Gulabi
31 Dec 2021 10:09 AM GMT
जजों द्वारा जजों की नियुक्ति मिथक है या सच
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चीफ जस्टिस ने छह महत्वपूर्ण मुद्दों की ओर देश का ध्यान आकृष्ट कराया
2021 के अवसान पर अपने गृह राज्य आंध्र प्रदेश की यात्रा के दौरान सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रमना ने न्यायपालिका के सामने भविष्य की चुनौतियों की बात करने के साथ सुधारों का रोडमैप भी पेश किया. सांविधानिक अदालत होने के नाते सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट को बहुमत वाली सरकारों के फैसलों की समीक्षा करना चाहिए, तभी क़ानून का शासन रहेगा. सिर्फ इस एक बात के माध्यम से चीफ जस्टिस ने केशवानंद भारती मामले में 13 जजों के फैसले को मजबूती से दोहराने के साथ लोकतंत्र में संविधान की प्रधानता को बताया.
न्यायपालिका के सामने बड़ी चुनौतियां
चीफ जस्टिस ने छह महत्वपूर्ण मुद्दों की ओर देश का ध्यान आकृष्ट कराया. पहला, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट संवैधानिक अदालतें हैं, जिनके फैसलों पर राज्य और केंद्र सरकार को अमल करना चाहिए. न्यायपालिका के फैसलों के सम्मान से ही देश में कानून का शासन रहेगा. दूसरा, सोशल मीडिया के दौर में संगठित दुष्प्रचार और जजों के खिलाफ हमलों से बचाव के लिए सुरक्षित व्यवस्था बनानी चाहिए. इससे जज निर्भीक होकर काम कर सकेंगे और न्यायपालिका की स्वायत्तता भी बरकरार रहेगी.
तीसरा, पुलिस और अन्य एजेंसियों से जुड़े लोक अभियोजकों यानी पब्लिक प्रॉसिक्यूटर के सिस्टम को अलग करने की जरूरत है. इससे आपराधिक मामलों की सही सुनवाई होने के साथ जल्द फैसला होगा. चौथा, देश की अदालतों में 46 फ़ीसदी मामले सरकार की वजह से लंबित है. सरकार सबसे बड़ी मुकदमेबाज़ है, जिसमे सुधार के लिए सभी स्तरों पर प्रयास की जरूरत है. पांचवा, अपराधिक जस्टिस सिस्टम पूरी तरीके से ढह गया है. पांच करोड़ लंबित मुक़दमे और जमानत में देरी की वजह से लोगों के मूल अधिकारों का हनन होता है.
इसके लिए सरकार, पुलिस और जज के सिस्टम को संवेदनशील और जवाबदेह बनाने की जरूरत है. छठवां, राज्य और केंद्र के स्तर पर न्यायपालिका के इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार के लिए ठोस व्यवस्था बनाने की सख्त जरूरत है.
जजों द्वारा जजों की नियुक्ति मिथक है या सत्य
चीफ जस्टिस ने कहा कि जज लोग जजों की नियुक्ति करते हैं, यह एक मिथक होने के साथ बड़ा प्रोपेगेंडा है. उनके अनुसार जजों की नियुक्ति में केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय, राज्य सरकार, राज्यपाल, हाईकोर्ट का कॉलेजियम, इंटेलिजेंस ब्यूरो और नौकरशाही की अहम भूमिका रहती है. इसलिए जजों की नियुक्ति में सिर्फ जजों की ही भूमिका नहीं रहती. लेकिन उनका यह वक्तव्य सुप्रीम कोर्ट के अनेक फैसलों और मेमोरेंडम आफ प्रोसीजर (एमओपी ) के प्रावधानों से मेल नहीं खाता है.
सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए जारी मेमोरेंडम आफ प्रोसीजर और संविधान के अनुच्छेद 124 ( 2) के तहत सुप्रीम कोर्ट के अगले चीफ जस्टिस की नियुक्ति की अनुशंसा रिटायर होने वाले चीफ जस्टिस द्वारा ही की जाती है. सुप्रीम कोर्ट के अन्य जजों की नियुक्ति की अनुशंसा चीफ जस्टिस और चार सीनियर जजों के कॉलेजियम द्वारा की जाती है. उसके बाद, नियुक्ति की फाइल केंद्रीय विधि और न्याय मंत्रालय के माध्यम से प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पास जाती है. तदनुसार सरकारी नोटिफिकेशन में नियुक्ति के आदेश जारी होते हैं.
इसी प्रकार से हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 223 और अन्य जजों की नियुक्ति अनुच्छेद 217 के तहत होती है. मेमोरेंडम आफ प्रोसीजर में दी गई व्यवस्था के अनुसार हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और दो अन्य सीनियर जजों का कॉलेजियम नए जजों के लिए नामों का प्रस्ताव राज्य सरकार के माध्यम से केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट को भेजता है. प्रस्‍तावित नामों पर आपत्ति लगाने और उनमे विलंब करने में केंद्र सरकार और इंटेलिजेंस ब्यूरो की भूमिका हो सकती है.
लेकिन, किसी भी जज को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम की सहमति के बगैर नहीं नियुक्त किया जा सकता, इसलिए जजों की नियुक्ति जजों द्वारा ही हो रही है.
कॉलेजियम पर सुप्रीम कोर्ट के तीन बड़े फैसले
संविधान के मूल प्रावधानों के अनुसार केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के साथ मशविरे के बाद जजों की नियुक्ति करती थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के तीन बड़े फैसलों से पूरी तस्वीर बदल गई. सन 1981 में फर्स्ट जज केस, सन 1993 में सेकंड जज केस और सन 1998 में थर्ड जज केस के माध्यम से कॉलेजियम व्यवस्था का उदय हुआ. इसके तहत जजों द्वारा ही जजों की नियुक्ति की जाने लगी. इसे बदलने के लिए सन 2014 में केंद्र सरकार ने एनजेएसी कानून बनाया, जिसमे आधे से ज्यादा राज्यों की विधानसभा का अनुमोदन भी था.
सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच ने सन 2015 में उस क़ानून को रद्द कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने अपने फैसले में कॉलेजियम सिस्टम को अपारदर्शी बताते हुए, उसे दुरुस्त करने की बात कही थी. संसद में अनेक सांसदों और मंत्रियों ने कॉलेजियम सिस्टम की सख्त आलोचना की है. लेकिन कॉलेजियम सिस्टम में अभी तक कोई सुधार हुआ नहीं हुआ. जजों की नियुक्ति के लिए चल रही अपारदर्शी और सामंती कॉलेजियम व्यवस्था की वजह से न्यायपालिका में विविधता और जवाबदेही की कमी है.
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने जिन महत्वपूर्ण बिंदुओं पर देश का ध्यान आकर्षित किया है, उन्हें संस्थागत सुधारों के तौर पर लागू करने के लिए नए साल में सरकार और जजों को सामूहिक प्रयास करना होगा. न्यायपालिका में सुधारों का रोड मैप समयबद्ध तरीके से लागू हो, तभी मुकदमेबाजी से त्रस्त जनता का सही मायने में हैप्पी न्यू इयर होगा.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
विराग गुप्ता एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट
लेखक सुप्रीम कोर्ट के वकील और संविधान तथा साइबर कानून के जानकार हैं. राष्ट्रीय समाचार पत्र और पत्रिकाओं में नियमित लेखन के साथ टीवी डिबेट्स का भी नियमित हिस्सा रहते हैं. कानून, साहित्य, इतिहास और बच्चों से संबंधित इनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं. पिछले 4 वर्ष से लगातार विधि लेखन हेतु सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस द्वारा संविधान दिवस पर सम्मानित हो चुके हैं. ट्विटर- @viraggupta.
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