सम्पादकीय

राहुल गांधी थक गए हैं या फिर भूलने की बीमारी से ग्रसित होते जा रहे हैं?

Gulabi
13 Aug 2021 6:00 AM GMT
राहुल गांधी थक गए हैं या फिर भूलने की बीमारी से ग्रसित होते जा रहे हैं?
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राहुल गांधी थक गए हैं, शारीरिक और मानसिक तौर पर

अजय झा।

राहुल गांधी (Rahul Gandhi) थक गए हैं, शारीरिक और मानसिक तौर पर. थके भी क्यों नहीं, इतना काम कोई करता है क्या? पर करें भी तो क्या, कांग्रेस पार्टी (Congress Party) की डूबती नाव को किनारे लगाने की सारी जिम्मेदारी जो उनके कंधो पर आ गयी है. ऐसा भी नहीं है कि पार्टी में दूसरे नेता नहीं हैं, पर सभी की नज़र उस कुर्सी पर टिकी है जो खाली भी नहीं है. अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर ही सही, सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) पिछले लगभग दो वर्षों से कुर्सी पर विराजमान हैं. जब भी वह कुर्सी खाली करेंगी तो उस पर राहुल गांधी को ही बैठना होगा. बेचारे राहुल गांधी करें भी क्या, देश हित में पार्टी तो चलानी ही है. अगर गांधी परिवार ना हो तो कांग्रेस पार्टी अंधियारी गलियों में भटकने लगेगा, देश में साम्प्रदायिकता बढ़ जायेगी और अराजकता छा जाएगा. राहुल गांधी की मजबूरी है कि थके बदन और थके मस्तिष्क के बावजूद उन्हें काम करना ही पड़ता है.

अभी पिछले कुछ दिनों पर ही नज़र डालें तो विपक्ष को इकठ्ठा करने के लिए उन्हें नाश्ते पर न्योता दिया और भाषण भी देना पड़ा. लोग विपक्षी एकता की बात करते हैं, पर करता कोई कुछ नहीं. इस लिए राहुल गांधी को देश हित में पहल करनी पड़ी. उन्हें विश्वास था कि विपक्ष को उनके जैसा कोई बड़ा नेता ही एकजुट कर सकता है, यह ममता बनर्जी या शरद पवार जैसे क्षेत्रीय नेताओं के बस की बात नहीं है.
राहुल गांधी बहुत काम करते हैं
देश की राजधानी दिल्ली में एक नौ साल की दलित बच्ची की बलात्कार के बाद हत्या कर दी गयी, राहुल गांधी को वहां जाना पड़ा, अगर नहीं जाते तो शायद दिल्ली पुलिस अपना काम करती ही नहीं. देश को यह सन्देश देने के लिए कि अगर कहीं भी ऐसी घटना होगी तो वह पीड़ित परिवार का आंसू पोछने को तैयार हैं, उन्होंने अपने ट्विटर अकाउंट पर पीड़ित परिवार के साथ अपनी फोटो डाल दी. क्या गलत किया? पर ट्विटर ने उनके राजनीतिक विरोधियों को खुश करने के लिए उनका ट्विटर अकाउंट सस्पेंड कर दिया.

देश में साम्प्रदायिक सौहार्द बना रहे इस लिए श्रीनगर में मंदिर में पूजा और हजरत बल में मत्था टेकना पड़ा, और जब जम्मू-कश्मीर गए थे तो लगे हाथों वहां नवनिर्मित कांग्रेस भवन का उद्घाटन भी करना पड़ा. और उद्घाटन किया तो जनता को यह बताना भी जरूरी था कि उन्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है. कांग्रेस पार्टी उनकी हितैषी है और केंद्र तथा प्रदेश में सत्ता में वापस आते ही वहां पूर्व की तरह स्थिति बहाल हो जाएगी, उन्हें आज़ादी होगी की कि चाहे वह पत्त्थर फेंके, पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाएं, पाकिस्तान का झंडा लहरायें और मर्ज़ी हो तो बम भी फोड़ें.

क्या कांग्रेस पार्टी ने लोगों को उनका हक दिया है?
देश के किसानों और गरीबों को यह अहसास करने के लिए कि कांग्रेस पार्टी उनके साथ है, राहुल गांधी को संसद कभी ट्रेक्टर में और कभी साइकिल चला कर जाना पड़ा. संसद में सरकार मनमानी नहीं करे इसलिए उसे नहीं चलने देने की रूपरेखा भी उन्हें ही बनानी पड़ी. और जब संसद का मॉनसून सत्र स्थगित हो गया तो फिर नई दिल्ली के जंतर मंतर पर कांग्रेस पार्टी की अनुसूचित जाती और अनुसूचित जनजाति विभाग द्वारा आयोजित कार्यक्रम में भी कल उन्हें जाना और भाषण देना पड़ा.

राहुल गांधी इतना काम करके शारीरिक और मानसिक रूप से कितना थक गए हैं यह सिद्ध करने के लिए देखते हैं कि जंतर मंतर में कल उन्होंने क्या कहा, "देश की हालत आप सब जानते हो. आजादी से पहले जो हमारे दलित भाई-बहन थे, उनको ये देश अंधेरे में रखता था. अंधेरे से बाहर नहीं निकलने देता था और जो उनके हक थे, उनको नहीं देता था. संविधान के बाद दलितों का जो हक है, उनको मिला. वो कांग्रेस पार्टी ने, बाबा साहेब ने मिलकर हिंदुस्तान के हर नागरिक को और खासतौर से जो हमारे दलित भाई-बहन हैं, उनको उनका अधिकार और उनको उनका हक दिया. आज संविधान पर नरेन्द्र मोदी, आर.एस.एस. और उनके चार-पांच उद्योगपति मित्र आक्रमण कर रहे हैं. जहां भी आप देखिए, कॉन्स्टिट्यूशन पर आक्रमण हो रहा है…"

तो क्या सचमुच कांग्रेस पार्टी ने लोगों को उनका हक़ दिया, संविधान बनाने में सिर्फ कांग्रेस पार्टी का ही योगदान था, बाकी दलों और दूसरे विचारधारा के लोग इस में शामिल नहीं थे? यह आरोप लगाना कि राहुल गांधी ने जानबूझ कर झूठ बोला गलत होगा, और यह सोचना की उन्हें इस बात की जानकारी नहीं होगी वह भी सही नहीं होगा. क्योंकि 2019 में वह चौथी पर सांसद चुने गए, कभी ना कभी संसद के लाइब्रेरी में भी गए ही होंगे और संविधान निर्माण के बारे में पढ़ा भी होगा कि संविधान सभा एक चुनी हुई संस्था थी जिसका चुनाव 1946 में हुआ और कंग्रेस पार्टी को बहुमत मिली. पर संविधानसभा में कम्युनिस्ट, सोशलिस्ट, दक्षिणपंथी नेता भी सदस्य थे. बाबा साहेब आंबेडकर कभी कांग्रेस पार्टी से जुड़े नहीं रहे. पहले उन्होंने इंडियन लेबर पार्टी और बाद में रिपब्लिकन पार्टी का गठन किया.

श्यामाप्रसाद मुखर्जी भी संविधानसभा के सदस्य थे जो कांग्रेस पार्टी से जुड़े नहीं थे. सोमनाथ लाहिरी कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े थे. संविधानसभा में कई अन्य भी ऐसे सदस्य थे जो कांग्रेस पार्टी से नहीं जुड़े थे और संविधानसभा के सभी सदस्यों का संविधान निर्माण में योगदान था. राहुल गांधी का कल जंतर मंतर पर यह कहना कि कांग्रेस पार्टी ने भारत के लोगों को उनका हक़ दिया इसी बात को साबित करता है कि इतना ज्यादा काम करने के कारण वह मानसिक रूप से थक गए हैं और संविधानसभा तथा भारतीय संविधान के बारे में कई तथ्य भूल गए, जो संभव है.

राहुल गांधी को एक छुट्टी की जरूरत है!
क्योंकि संसद को पंगु बनाने में उनकी अहम भूमिका रही और संसद का समय से पहले सत्रावसान हो गया, जरूरत है कि थोड़े दिनों के लिए वह भारत और भारत की राजनीति से दूर हो कर कहीं विदेश में अपनी थकान मिटायें और अपने को रिचार्ज करें क्योंकि नवम्बर-दिसम्बर के महीने में फिर से संसद का शीतकालीन सत्र होगा और जनवरी से मार्च के बीच पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव जिसमें उनकी उतनी भूमिका ही अहम रहेगी जितना कि कुछ महीनों पहले हुए पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी विधानसभा चुनाव में.

वैसे, कल जंतर मंतर में वह एक और बात बोल गए कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जल्द ही सत्ता से बाहर फेंक दिया जाएगा, जैसे कि यह भारत नहीं बल्कि पाकिस्तान या म्यांमार हो, जहां चुनी हुई सरकारों को जब भी सेना चाहे उन्हें सत्ता से दूर कर देती है. अगला लोकसभा चुनाव तो 2024 में होगा और प्रजातंत्र में सरकार बनाने या गिराने का काम पांच साल में एक बार ही होता है. राहुल गांधी शायद भूल गए हैं कि यह 2021 है और अगला चुनाव अभी काफी दूर है. यह कहना तो कठिन है कि वह बिना चुनाव का इंतज़ार किये, मोदी सरकार को सत्ता से भगाने के लिए इतने अधैर्य क्यों हो रहे हैं.

जबसे वह कांग्रेस पार्टी के बड़े नेता बने, 2009 के चुनाव के बाद, तबसे ही कांग्रेस पार्टी को जनता का समर्थन लगातार कम होता चला गया. जनता का समर्थन तो है नहीं और उन्हें मोदी सरकार को गिराने की जल्दी भी पड़ी है, तो क्या वह इस काम के लिए पाकिस्तान और चीन की सहायता लेंगे? लगता तो यही है कि राहुल गांधी को एक लम्बी छुट्टी की दरकार है. अब अपनी थकान मिटने कहां जाएं, थाईलैंड, इटली, अमेरिका या कहीं और इसका फैसला उन्हें ही करना होगा. राजनीति तो चलती ही रहेगी और विधानसभा तथा लोकसभा चुनाव में अभी समय है, इसलिय विपक्षी एकता की भी कोई जल्दबाजी नहीं है. जरूरी है कि देश हित में राहुल गांधी रिफ्रेश और रिचार्ज हो कर वापस लौटें ताकि उन्हें यह भी याद आ जाए कि अगर कांग्रेस पार्टी ने भारत के लोगों को उनका हक़ दिया था तो इमरजेंसी में जनता से उनका मूलभूत अधिकार किस पार्टी ने छीना था?
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